तीन-तीन दिन चलती थी मतगणना अब रुझान और नतीजे देखना T- 20 जैसा
तीन-तीन दिन चलती थी मतगणना अब रुझान और नतीजे देखना T- 20 जैसा
लोकसभा चुनाव 2024 के रुझान बहुत तेजी से आ रहे हैं. आप भी टीवी पर देख रहे होंगे. आपको भी समझ में आ गया होगा कि दिल्ली तख्त पर कौन बैठेगा. चुनावी प्रक्रिया में लंबा वक्त भले लगा लेकिन तेजी से आते रुझान देख कर पुराने दिन याद आ जाते हैं. ज्यादा वक्त थोड़े न बीता है. दो दशक पहले तक तीन-तीन गिनती का दौर चलता था. लोग चना चबैना लेकर टीवी से चिपके रहते थे.
हाइलाइट्स लंबी चुनावी कार्यक्रम के बाद तेजी से मिल रहे रुझान और नतीजे पहली कई राते लग जाती थी चना-चबैना लेकर टीवी पर चुनावी नतीजे देखते थे लोग
बहुत पुरानी बात नहीं है. माइक टॉयसन की मुक्केबाजी देखने के लिए लोग सब कुछ छोड़ कर आए थे. कुर्सी पर ठीक से बैठे भी नहीं थे, कि टायसन ने प्रतिद्वंदी को नॉक आउट कर दिया. उसमें कुल वक्त लगा था महज 11 सेकेंड. लोग कम से कम दो-तीन राउंड के मुकाबला देखने की उम्मीद कर रहे थे. सेकेंड्स में फैसला भले न हो रहा हो, लेकिन ईवीएम ने चुनाव का जायका बदल दिया है. 1998 में पहली बार एमपी, दिल्ली और राजस्थान की 25 विधान सभा सीटों पर इवीएम का इस्तेमाल किया गया था. 21वीं सदी में भारत जब पहुंचा तो 2004 में पहली बार देश भर में इवीएम से चुनाव हुए. नतीजे भी ईवीएम से निकाले गए और कुछ ही घंटों में सरकार का फैसला हो गया.
तीन-तीन दिन की मतगणना का दौर
यहां तक पहुंचने से पहले के दौर में वोटों की गिनती कम से कम दो या तीन दिन तक चलती थी. देश में व्यापक तौर से टेलीविजन आ जाने के बाद 1984 का दौर याद है. उस वक्त टीवी पर फिल्में गिने चुने दिनों में ही आती थी. लेकिन चुनाव के दौरान तीन-चार फिल्में देखने को मिल जाती थी. इलेक्शन पर विनोद दुआ और डॉ प्रणव की कमेंट्री चलती रहती थी. ब्रेक होते और इतने लंबे होते कि आधी फिल्म दिखा दी जाती थी.
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चना चबैना और फिल्में भी
चुनाव नतीजे देखने वाले बाकायदा चना-चबैना, खैनी-तंबाकू लेकर बैठते थे. टेलीविजन भी ऐसी चीज नहीं थी जो सबके घरों में हो. उस वक्त तक दस-बीस घरों के बीच एक टीवी और वो भी ज्यादातर ब्लैक एंड ह्वाइट होता था. पास पड़ोस के सारे जिज्ञासु टीवी वाले के घर जमा होते थे. किशोर और बच्चे फिल्मों की लालच में चले आते थे. बहरहाल, सबको कुछ न कुछ खिलाने की जिम्मेदारी टीवी रखने वाले घर की होती थी. वरना मोहल्ले में शिकायत होने का अंदेशा रहता.
अब T-20 का दौर
ब्रेक में कभी कभार गरमागरम बहसे भी हो जाती. हालांकि टीवी ही बहस रोकता भी था. फिल्म शुरु हुई नहीं कि लोग उसमें डूब जाते. एक नया अनुभव मिल रहा था. कस्बाई और छोटे शहरों की जिंदगी करवट बदल रही थी. जो कुछ कहीं हो रहा था, उसे लोग देख पा रहे थे. वैसे तो इलाके के बड़े और तजुर्बेकार लोगों को ही काउंटिंग देखने का मौका हासिल हो पाता. वही लोग वहां तक पहुंच पाते, जो किसी प्रत्याशी का एजेंट बनते. एजेंट उन्हें ही बनाया जाता जिनका रसूख होता था. साथ ही दो-दो, तीन-तीन दिन काउंटिंग में जुटे रहने का माद्दा भी जरूरी था. आखिर गिनती पूरी होने तक डटा जो रहना पड़ता. प्रत्याशी की गैरहाजिरी में उन्हें ही सब कुछ देखना होता था. अब हालात बदल गए है. इवीएम ने चुनावी गिनती का मजा खत्म किया है, तो नतीजे भी बहुत तेज दे रही है.
और अब…
गिनती शुरु होने के तीन से चार घंटे के भीतर देश के हालात सामने आ जा रहे हैं. सभी को पता चल जा रहा है कि कौन दिल्ली की कुर्सी पर काबिज हो रहा है. वैसे तो नतीजों की केंद्रीय चुनाव आयोग से तसदीक हो जाने के बाद ही उसे जारी किया जाता है, लेकिन एक बार ट्रेंड रफ्तार पकड़ लेता है तो सभी को सब कुछ पता चल जाता है. लंबी चुनावी प्रक्रिया के बाद नतीजे के दिन लगता है टी-20 का क्रिकेट मैच देख रहे हो. शुरु हुआ और कुछ ही घंटे में हार जीत का नतीजा आ गया.
सारा क्रेडिट इवीएम को
हां, इवीएम पर तरह तरह के इल्जाम लगे हैं. कोर्ट तक मामला गया है. लेकिन अभी तक कुछ साबित नहीं हो सका है. न्याय के नैसर्गिग सिद्धांत का तकाजा है कि जब तक कोई इल्जाम पूरी तरह साबित न हो जाय, तब तक किसी को गुनाहगार नहीं कहा जा सकता. लिहाजा, किसी भी इल्जाम के वाबजूद इवीएम ने नतीजों को तो रोचक बना ही दिया है.
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, 2024 Loksabha ElectionFIRST PUBLISHED : June 4, 2024, 09:18 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed