लद्दाख पर मंडरा रहा क्लाइमेट चेंज का खतरा किस समस्या से जूझ रहा यह प्रदेश
लद्दाख पर मंडरा रहा क्लाइमेट चेंज का खतरा किस समस्या से जूझ रहा यह प्रदेश
Climate Change in Ladakh: लद्दाख के सामने जलवायु परिवर्तन इस समय सबसे बड़ा संकट बनकर खड़ा है. इसकी केवल एक वजह है और वो है ओवरटूरिज्म. या दूसरे शब्दों में कहें तो अनियंत्रित पर्यटन. जिसके कारण सीमित संसाधनों वाले इस राज्य में सभी मौजूदा सुविधाओं का जबर्दस्त दोहन हो रहा है.
Climate Change in Ladakh: दरअसल लद्दाख एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहा है. उसकी पहली लड़ाई तो राजनीतिक है. लद्दाख की जनता अपने राज्य को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कराना चाहती है. इसके लिए वहां के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक अपने समर्थकों के साथ लगातार आंदोलन कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने लेह से दिल्ली तक पैदल मार्च किया और आमरण अनशन भी किया. ये लोग केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए एक लोक सेवा आयोग और लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग लोकसभा सीटों की भी मांग कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने उनकी मांगे पूरी करने का आश्वासन किया है.
क्लाइमेट चेंज का खतरा
लेकिन लद्दाख के सामने सबसे बड़ा संकट जो इस समय खड़ा है, वो है क्लाइमेट चेंज और इसकी वजह है ओवरटूरिज्म. पहले बात लद्दाख आने वाले पर्यटकों की संख्या की. अक्टूबर की शुरुआत तक लद्दाख में पर्यटन का सीजन आधिकारिक तौर पर खत्म हो जाता है. इस सीजन में ‘हाई पासेस की धरती’ पर कितने लोग आए इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं हैं. लेकिन ये पिछले साल या 2022 से कम नहीं हो सकता. अगर हम दो साल पहले का भी आंकड़ा मान लें तो, जनवरी से अगस्त तक करीब 4.5 लाख पर्यटक लद्दाख आए थे. इनमें से 2.5 लाख पर्यटक जून और जुलाई के महीनों में ही पहुंचे थे. 2023 में ये संख्या और भी ज्यादा हो सकती है, करीब सात लाख के आसपास. जाहिर है कि 2024 में ये आंकड़ा बढ़ा होगा.
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इतना बोझ नहीं संभाल सकता
भले ही हमारे पास इसका कोई निश्चित आंकड़ा न हो, लेकिन यह एक बहुत बड़ी संख्या है. खासकर एक ऐसी जगह के लिए जो पारिस्थितिक रूप से नाजुक और कम संसाधनों वाली है. सिंधु, श्योक, नुब्रा और ज़ांस्कर नदियों की तंग घाटियां इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों के बोझ को इतनी कम अवधि में संभालने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं. लेकिन कोई भी यह सवाल पूछ सकता है कि इसका क्लाइमेट चेंज से क्या लेना-देना है? ऊपर से देखने पर तो कुछ भी नहीं. लेकिन बात यह है कि, जैसे किसी अन्य अव्यवस्थित और अनियोजित आर्थिक गतिविधि के साथ होता है, अनियंत्रित पर्यटन, और इसके साथ आने वाले पर्यावरणीय दबाव, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कई गुना बढ़ा देते हैं. परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र में होने वाले प्रतिकूल बदलाव एक पीढ़ी से भी कम समय में दिखने लगते हैं.
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गर्म हो रहा है ठंडा रेगिस्तान
मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार लद्दाख पर विशेष रूप से बहुत कम अध्ययन किए गए हैं, लेकिन सिर्फ अनुभव से भी स्पष्ट है कि लद्दाख की ठंडी रेगिस्तानी जलवायु तेजी से बदल रही है. यह जानने के लिए बस 2024 की कुछ खबरें देख लीजिए. जनवरी में, ज़ंस्कार नदी के ऊपर प्रसिद्ध ‘चादर’ ट्रेक को बड़े पैमाने पर कम करना पड़ा, क्योंकि अत्यधिक गर्मी के कारण नदी जमी ही नहीं. इस ट्रेक का यह नाम ज़ांस्कर नदी पर हर साल सर्दियों में बनने वाली बर्फ की चादर के नाम पर रखा गया है. जनवरी में लेह का एक सामान्य दिन न्यूनतम तापमान -15 डिग्री सेल्सियस का होता था, और दिन का तापमान -5 डिग्री सेल्सियस के आसपास. इस जनवरी में, न्यूनतम तापमान -8 डिग्री सेल्सियस था, और अधिकतम 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.
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33 डिग्री हो गया लेह का तापमान
वर्षों से पर्याप्त लद्दाख में बर्फबारी भी नहीं हो रही है. भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, पिछले साल नवंबर-दिसंबर में लेह में केवल 1.2 सेमी बर्फबारी हुई थी. 2022 में यह आंकड़ा 2.6 सेमी था, जबकि 2013 की सर्दियों में 13.6 सेमी बर्फबारी हुई थी. इस जनवरी में, लेह के आइस हॉकी रिंक को सतह को जमा हुआ रखने के लिए इलेक्ट्रिक पंखों का उपयोग करना पड़ा. इस बिना बर्फ की सर्दी के बाद गर्मियों में एक भयंकर गर्मी की लहर आई, जिसमें 28 जुलाई को लेह का तापमान 33.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि कारगिल का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस तक चला गया.
सितंबर में भी मौसम गर्म
गर्मी इस कदर बढ़ी कि यहां लेह के होटलों को पंखे खरीदने पड़े ताकि पर्यटकों को गर्मी से राहत मिल सके. एक स्थानीय व्यक्ति का कहना है कि जुलाई और अगस्त पारंपरिक रूप से सबसे गर्म महीने होते हैं, लेकिन कभी इतनी गर्मी नहीं हुई. तीन-चार साल पहले जुलाई में दिन के समय इतनी गर्मी होने लगी थी कि बढ़े हुए तापमान के कारण ग्लेशियरों का पानी बहुत तेजी से पिघलने लगा था, जिससे नदियों और धाराओं में बाढ़ की नौबत आ गई थी. लेकिन इस साल सितंबर में मौसम वैसा हो गया है जैसा जुलाई में हुआ करता था.
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कम होती जा रही है ठंड
पिछले पचास सालों में हिमालय धीरे-धीरे कम ठंडा होता जा रहा है. पिछले दशक में अत्यधिक ठंडे दिनों की संख्या लगभग चार दिन कम हो गई है, जबकि ठंडी रातों की संख्या 12 रातें कम हो गई हैं. एक-दो दशक पहले तक लद्दाख के कुछ हिस्सों में सर्दियों में औसतन 4-5 फीट बर्फ गिरती थी. आजकल इतनी बर्फ की तो केवल कल्पना ही की जा सकती है. बर्फ की कमी के कारण सर्दियां और भी हल्की होती जा रही हैं.
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ज्यादा बारिश खतरे का संकेत
जहां तक बारिश की बात है तो इस मामले में भी लद्दाख को अति का सामना करना पड़ रहा है. मानसून के महीनों में लद्दाख में अचानक भारी बारिश हो रही है. जबकि पिछले कुछ सालों में इन महीनों में बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. जबकि लद्दाख की गर्मियों में जलवायु में हमेशा थोड़ी बारिश होती थी. लद्दाख में पहले मानसूनी बाढ़ नहीं आती थी, लेकिन अब आ रही हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती जाती है, गर्म हवा अधिक नमी धारण करने में सक्षम हो जाती है, जिससे ह्यूमिडिटी और बारिश बढ़ जाती है. लद्दाख एक ऐसा इलाका है जो मुख्य रूप से हिमपात के पानी पर निर्भर है. लेकिन बारिश केवल पहले से ही कम उपजाऊ मिट्टी को बहा कर ले जाती है. बारिश होती तो है, लेकिन लद्दाख के भूजल को रिचार्ज नहीं करती. कई जगहों पर झरने सूख रहे हैं, जबकि ग्लेशियर धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं. यानी ओवरटूरिज्म का खतरा साफ दिख रहा है. जरूरत है समय रहते इससे निपटने की.
Tags: Best tourist spot, Climate Change, Climate change report, Jammu and kashmir, Ladakh Border, Ladakh NewsFIRST PUBLISHED : October 23, 2024, 12:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed