अगर ओम बिरला स्पीकर का चुनाव नहीं जीते तो क्या होगा जीते तो क्या
अगर ओम बिरला स्पीकर का चुनाव नहीं जीते तो क्या होगा जीते तो क्या
Speaker Election: लोकसभा में स्पीकर पद के लिए कल चुनाव होगा. इसमें बीजेपी के ओम बिरला और कांग्रेस के सुरेश आमने-सामने होंगे. ये चुनाव एक तरह से मोदी सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा होंगे. इसमें हार जीते के क्या होंगे मायने.
हाइलाइट्स 26 जून को होगा लोकसभा में स्पीकर पद का चुनाव ये चुनाव मोदी सरकार की ताकत को भी साबित करेगा बिरला जीतने के पूरे चांस लेकिन नहीं जीतने पर सरकार के अस्तित्व पर ही होगा खतरा
18वीं लोकसभा में पैनी सियासी बिसात बिछने लगी है. पहले दिन से पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी शुरू हो चुकी है. बीजेपी ने पिछले टर्म में स्पीकर रह चुके तीन बार के सांसद ओम बिरला को इस पद के लिए फिर खड़ा किया है. वहीं कांग्रेस इस पद के लिए के सुरेश को खड़ा कर रही है. दरअसल इस पद के लिए सत्ता पक्ष ने सर्वानुमति से राय बनाने की कोशिश नहीं की. नतीजा ये है कि साफ टकराव सामने नजर आ रहा है. सत्ता के समीकरण देखें तो यद्यपि संसद में एनडीए का पलटा मजबूत है लेकिन इंडिया ब्लाक भी कमर कस चुका है.
स्पीकर के चुनाव में सबकी निगाहें एनडीए और इंडिया ब्लाक के अलावा उस तीसरे पक्ष की ओर भी होगी, जो किसी ओर नहीं है. वो जिधर जाएंगे, उधर पलड़ा मजबूत हो सकता है और तभी एनडीए सरकार के सीधे ना सही लेकिन अपरोक्ष तौर पर बड़ा झटका लगेगा.
लोकसभा में वोटों का समीकरण क्या होगा, ये तो हम आगे देखेंगे लेकिन उससे पहले ये भी जान लेते हैं कि अगर ओम बिरला जीते तो क्या होगा और नहीं जीते तो क्या होगा. हालांकि ये कहना चाहिए लोकसभा में ताकत के हिसाब से एनडीए भारी पड़ेगा और ओम बिरला के हारने की स्थिति नहीं दिखती. कहने को ये महज स्पीकर का चुनाव है लेकिन मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा होगी.
स्पीकर पद के लिए आज नामांकन की तारीख है. चुनाव के लिए कल वोटिंग होगी. इसमें वही सदस्य हिस्सा ले पाएंगे, जिन्होंने शपथ ले ली है. पिछली बार ओम बिरला निर्विरोध स्पीकर चुने गए थे. तब विपक्षी दलों ने भी उन्हें समर्थन दिया था.
अगर ओम बिरला जीते तो…
– सदन में एनड़ीए की पकड़ और मजबूत हो जाएगी. उसका अपना स्पीकर होगा तो ताकत में और इजाफा होगा. साथ ही विपक्ष का मनोबल टूटेगा
– सरकार को इस जीत के साथ बड़ा आत्मविश्वास मिलेगा, जो उसके आगे काम करने के लिए उसे ताकत देगा
– इस तरह एनडीए लोकसभा में अपनी मजबूत पकड़ का प्रदर्शन करेगा
– चूंकि लोकसभा में एनडीए गठबंधन के पास पर्याप्त सीटें हैं, लिहाजा वो उसे ताकत मिलेगी कि वो अपने तरीके से काम करता रहे
– लोकसभा में बेशक बीजेपी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं है लेकिन गठबंधन दलों को मिलाकर उसके पास भी कुछ भी करने की भरपूर ताकत है
– प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की पकड़ और दमदार होगी और उसकी सरकार को तीसरे टर्म में काम करने के लिए इसी जोश की जरूरत भी है.
अगर ओम बिरला नहीं जीते तो…
– अगर ऐसा हुआ तो तभी होगा यदि जेडीयू या टीडीपी वोटिंग के समय अलग राह चुनते हैं, तब ये इस सरकार के लिए बड़ा झटका होगा
– सरकार के लिए ये इतना बड़ा झटका होगा कि वो इस दबाव में आ जाएगी कि उसके पास सरकार चलाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है
– तब मोदी सरकार को तुरंत विश्वास मत लाकर सदन में अपना बहुमत साबित करना होगा. ऐसे में विपक्ष भी उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है
– ऐसे में सरकार के गिरने का खतरा लगातार बना रहेगा और विपक्ष के दबाव के आगे सरकार दिक्कत में होगी.
– अपना स्पीकर नहीं होने से एनडीए को विधायी कामों में लगातार मुश्किलों से गुजरना ही होगा
– एनडीए सरकार अगर बच भी जाती है तो अस्थिर ही नजर आएगी और उसका मनोबल टूटा हुआ नजर आएगा.
– स्पीकर अपना नहीं होने पर सरकार को सदन को चलाने और नए विधेयकों को पास कराने में ही नहीं बल्कि हर काम में दिक्कत होगी.
किसकी कितनी ताकत
543 सदस्यीय लोकसभा में बीजेपी के पास 240 सीटें हैं लेकिन एनडीए की कुल ताकत 293 की है, इसमें टीडीपी और जेडीयू का हिस्सा 28 सदस्यों का है यानि अब सरकार को चलाने और हर काम के लिए इन दोनों दलों पर पूरी तरह निर्भर रहना होगा. स्पीकर के चुनावों में भी एनडीए में सबसे ज्यादा इन दोनों दलों की भूमिका अहम होगी.
एनडीए की ताकत
भारतीय जनता पार्टी 240
तेलुगु देशम पार्टी 16
जनता दल (यूनाइटेड) 12
शिवसेना 7
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 5
राष्ट्रीय लोक दल 2
जनता दल (सेक्युलर) 2
जन सेना पार्टी 2
असम गण परिषद 1
यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल 1
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 1
अखिल झारखंड छात्र संघ 1
अपना दल (सोनेलाल) 1
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा 1
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा 1
कुल 293
इंडिया गठबंधन की ताकत कितनी
लोकसभा में इंडिया गठबंधन के पास 234 सीटें हैं, जिसमें सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है तो दूसरी बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी. हालांकि इस गठबंधन के पास सरकार को दबाव में लाने के लिए संख्याबल तो है लेकिन इतना पर्याप्त भी नहीं कि वो सरकार की चीजों को रोक पाए.
इंडिया गठबंधन
कांग्रेस 99
सपा 37
तृणमूल 29
डीएमके 22
सीपीएम 4
आरजेडी 4
शिवसेना उद्धव 9
एनसीपी एसपी 8
सीपीआई 2
जेएमएम 3
सीपीआई लेनिन 2
मुस्लिम लीग 3
नेशनल कांफ्रेंस 2
विद्युतलाई 2
बीएपी 1
केरल कांग्रेस 1
एमडीएमके 1
आरएलटीपी 1
कुल 234
लोकसभा में ये 15 सदस्य किसी के लिए भी बन सकते हैं ताकत
लोकसभा में एनडीए और इंडिया गठबंधन के अलावा 15 ऐसे भी सांसद हैं, जो लोकसभा में ताकत समीकरण में खास भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते कि वो किसी ओर रहें.
हालांकि वाईएसआर इस बार एनडीए को इसलिए समर्थन नहीं देगी, क्योंकि आंध्र की उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी टीडीपी मोदी सरकार के एनडीए गठबंधन में शामिल है. हालांकि मोदी सरकार के पिछले टर्म में वाईएसआर कांग्रेस हर पग पर सत्ता पक्ष के साथ ही खड़ी नजर आई थी.
अकाली दल जरूर सत्ता पक्ष के साथ भी जा सकते हैं. इस सदन में 07 निर्दलीय भी हैं. जिन्हें 14 दिनों के अंदर तय करना होगा कि वो किसी पार्टी में शामिल होंगे या फिर अपनी यही स्थिति बनाकर रखेंगे.
अन्य जो किसी गठबंधन में नहीं हैं
वाईएसआर 04
अकाली दल 01
एआईएमआईएम 01
आजाद समाज पार्टी 01
वायस ऑफ पीपुल्स पार्टी 01
निर्दलीय 07
कुल – 15
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है और क्या होती है उसकी पॉवर
संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है. सांसद अपने में से दो सांसदों को सभापति और उप-सभापति चुनते हैं. सदस्यों को इस लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से एक दिन पहले उम्मीदवारों को समर्थन का नोटिस जमा करना होता है.
चुनाव के दिन, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत के ज़रिए किया जाता है. यानी जिस उम्मीदवार को उस दिन लोकसभा में मौजूद आधे से ज़्यादा सांसद वोट देते हैं, वह लोकसभा अध्यक्ष बनता है. इसके अलावा लोकसभा अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए किसी अन्य शर्त या योग्यता को पूरा करना ज़रूरी नहीं है.
जो व्यक्ति स्पीकर होता है उसे सदन के कामकाज, उसके नियमों, देश के संविधान और कानूनों के बारे में जानकारी होना ज़रूरी है. लोकसभा अध्यक्ष कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए ज़िम्मेदार होता है. इसलिए ये पद काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. लोकसभा अध्यक्ष संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं और सदन में विवाद होने पर स्पीकर नियमानुसार कार्रवाई करते हैं.
सदन में सत्ता और विपक्ष दोनों पक्षों के सदस्य होते हैं. इसीलिए लोकसभा अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह तटस्थ रहकर कामकाज चलाएं. लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे पर अपनी राय घोषित नहीं करते. वे किसी प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लेते लेकिन अगर प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर वोट हों तो वे निर्णायक मत डाल सकते हैं. लोकसभा अध्यक्ष विभिन्न समितियों का गठन करते हैं और इन समितियों का कार्य उसके निर्देशानुसार होता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोई सदस्य सदन में दुर्व्यवहार करता है तो लोकसभा अध्यक्ष उसे निलंबित कर सकते हैं.
Tags: Loksabha Speaker, Om BirlaFIRST PUBLISHED : June 25, 2024, 14:41 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed