गुजरात का वो राजा जिसे कहा जाता था गरीबों का डॉक्टर महाराजा टैक्स भी हटाए

गुजरात में एक रियासत है गोंदल, जिसके राजा ने इंग्लैंड के एडिनबरो यूनिवर्सिटी में जाकर मेडिकल की पढाई तब की जबकि विदेश जाने वालों को जाति से बहिष्कृत कर दिया जाता था.

गुजरात का वो राजा जिसे कहा जाता था गरीबों का डॉक्टर महाराजा टैक्स भी हटाए
हाइलाइट्स इस राजा का नाम था भगवंत सिंह वह पिता की मृत्यु के बाद 04 साल की उम्र में शासक बन गया था बाद में उसने रियासत में अस्पताल से लेकर कॉलेज तक खुलवाए भारत राजा और महाराजाओं की इमेज आमतौर पर शानदार जीवन जीने वाले लोगों की है. जिनके पास बेपनाह दौलत होती थी. जो अपनी रियासतों के मालिक थे. परले दर्जे के अय्याश और सनकी होते थे. वो कारों के दीवाने थे. इन्हीं राजाओं के बीच एक राजा ऐसा भी था, जो इनसे एकदम अलग था. वो 04 साल में अपनी रियासत का शासक बना. विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई की. बाद में अपनी गरीब प्रजा की मुफ्त चिकित्सा की. वह गुजरात की गोंडल रियासत के महाराजा भगवत सिंह थे. वह एक प्रशिक्षित डॉक्टर थे. वह एमडी थे और एमएस भी यानि मास्टर इन मेडिसिन और मास्टर इन सर्जरी भी. गुजरात में अपने छोटे से राज्य में जरूरतमंदों के लिए उन्होंने जो काम किया वह वाकई काबिले तारीफ है. 18वीं और 19वीं शताब्दी में गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र 217 छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था, जिनमें से गोंडल भी एक था. भगवतसिंह का जन्म 24 अक्टूबर 1865 ई. को गुजरात के मौजूदा राजकोट जिले के धोराजी में हुआ था. वे ठाकोर संग्रामसिंह द्वितीय के तीसरे बेटे थे, जो गोंडल के ठाकोर यानि राजा थे. यह जडेजा वंश द्वारा स्थापित एक छोटी सी रियासत थी, जिसने जामनगर और कच्छ जैसे अन्य राज्यों पर भी शासन किया. गोंडल सौराष्ट्र के मध्य में स्थित था. 1000 वर्ग मील में फैला हुआ था. उन दिनों यह एक बहुत पिछड़ा क्षेत्र था, जहा विभिन्न राज्यों के बीच छोटी-मोटी लड़ाइयां होती रहती थीं. बुनियादी ढांचा बहुत खराब था. केवल 04 साल की उम्र में शासक बन गए भगवत सिंह इसी माहौल में पले-बढ़े थे. नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था. 1869 ई. में, उनके पिता ठाकोर संग्रामसिंह की 45 वर्ष की आयु में अचानक मृत्यु हो गई. एकमात्र जीवित पुत्र के रूप में, भगवत सिंह 04 वर्ष की आयु में गोंडल के शासक बन गए. चूंकि भगवत सिंह नाबालिग थे, इसलिए प्रशासन का काम कैप्टन लॉयड नामक एक अंग्रेज अधिकारी ने किया. राजकुमारों के लिए स्कूल में पढ़ने गए 1875 ई. में दस वर्ष की आयु में, भगवतसिंह को अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए राजकोट ले जाया गया, जहां उन्होंने राजकुमार कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की, जो अंग्रेजों द्वारा भारतीय राजकुमारों के लिए बनाया गया स्कूल था. इसने उनके दिमाग की खिड़कियां तो खोली हीं, नए जमाने के लिहाज से चलना भी सिखाया. गोंडल के डॉक्टर महाराजा भगवत सिंह विदेश घूमने की इच्छा ने जिंदगी बदल दी अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 1884 ई. में रियासत का काम संभालने के लिए वह गोंडल वापस आ गए. हालांकि इसी समय के आसपास उनका मन दुनिया देखने का हुआ. उन्होंने फैसला किया कि इंग्लैंड की यात्रा करनी चाहिए. हालांकि उनकी मां और दरबार ने इसका कड़ा विरोध किया. तब रूढ़िवादी हिंदू मानते थे कि समुद्र पार करने से वे ‘अशुद्ध’ हो जाते हैं. इसके बावजूद भगवत सिंह ने इसी पर जोर दिया. मेडिकल कॉलेज में घूमते ही तय कर लिया डॉक्टर बनेंगे यूरोप की यात्रा के दौरान उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से जुड़े मेडिकल कॉलेज का भी दौरा किया. कुछ सप्ताह बाद वह लंदन के सेंट जॉर्ज अस्पताल गये. उन्होंने अपनी डायरी में लिखा कि वह वास्तव में डॉक्टर बनना चाहते हैं. उन्होंने लिखा, ” मैं एक मेडिकल छात्र बनना चाहता हूं ताकि मुझे गरीब लोगों को उन बीमारियों से मुक्ति दिलाने में व्यक्तिगत संतोष मिल सके.” 1885 ई. की अपनी डायरी में भगवतसिंह ने यह भी उल्लेख किया, “यह सबसे परोपकारी पेशा है अगर डॉक्टर अपने पर्स से ज्यादा अपने मरीजों की परवाह करता है “ आखिरकार महाराजा ने डॉक्टर बनने का मन बना लिया. 1892 ई. में उन्होंने गोंडल की जिम्मेदारी अपने पारसी मुख्यमंत्री बेजंजी मेरवानजी के हाथों में सौंपी और खुद एडिनबर्ग विश्वविद्यालय चले गए, जहां उन्होंने मेडिकल की डिग्री के हासिल करने के लिए एडमिशन लिया. मेहनती मेडिकल स्टूडेंट थे भगवत सिंह एक मेहनती छात्र थे. मेडिकल की पढ़ाई में उनकी गिनती अच्छे स्टूडेंट में होती थी. उन्होंने अपने शोध प्रबंध “ए शॉर्ट हिस्ट्री ऑफ आर्यन मेडिकल साइंस” पर भी कड़ी मेहनत की, जो आयुर्वेदिक चिकित्सा पर एक पेपर था. आखिरकार उन्होंने ये पढ़ाई पूरी और 1895 ई. में विश्वविद्यालय के संकाय ने उनके मेहनती शोध और उनकी वैज्ञानिक दृष्टि की सराहना की. एम.डी. की डिग्री हासिल करके वह डॉक्टर बन गए. डॉक्टर बनकर लौटे तो राज्य को बदल दिया भगवत सिंह ने जब डॉक्टर बनकर लौटे तो उन्होंने राज्य प्रशासन में बहुत सुधार किये. स्कूल, कॉलेज और अस्पताल बनवाए. विश्वविद्यालय के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं दोनों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था की. उनका राज्य महिलाओं के अधिकारों के लिए एक मिसाल बन गया. उन्होंने चौथी कक्षा तक लड़कियों के लिए अनिवार्य शिक्षा लागू की.कहना चाहिए कि हर तरह से उन्होंने अपनी रियासत को बदलकर रख दिया. 1928 में गुजराती का पहला शब्दकोष और गुजराती विश्वकोश, ” भगवद्गोमंडल ” प्रकाशित किया. रोज बीमारों को देखते और इलाज करते थे भगवंत सिंह के डॉक्टर बनने के बाद उन्होंने खासतौर पर रियासत के लोगों के इलाज और चिकित्सा का एक समुचित ढांचा बनवाया. उनके बारे में कहा जाता है कि वो रोज नियमित रूप से बीमार लोगों को देखते थे और उनके इलाज का काम भी करते थे. टैक्स भी हटाया और महिलाओं का पर्दा भी अपने शासनकाल के दौरान भगवत सिंह ने राज्य में सभी दरों, करों, सीमा शुल्क, चुंगी और निर्यात शुल्कों को समाप्त कर दिया. तब गोंडल कर-मुक्त होने वाला अकेला राज्य बन गया था. उन्होंने तब न महिलाओं के लिए जरूरी पर्दा प्रथा को भी हटाया. वह भारतीय इतिहास में सबसे प्रगतिशील राजाओं में थे, जिन्होंने खुद को गरीबों की सेवा में भी लगा दिया. Tags: Gujarat, Royal TraditionsFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 16:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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