आज के दिन से ही करीब 90 सालों तक भारत पर चला था क्वीन का राज

उस हाउस ऑफ कामंस में 02 अगस्त 1858 को गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट1858 को पास किया गया, जिसके प्रधानमंत्री पद के लिए एक भारतीय मूल के ऋषि सुनक चुनाव लड़ रहे हैं. इस कानून के पास होने के बाद भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज खत्म हो गया. अब भारत पर क्वीन विक्टोरिया का राज हो गया. ब्रितानी उपनिवेश के तौर पर ये देश अगले करीब 90 सालों तक उनका गुलाम बना रहा.

आज के दिन से ही करीब 90 सालों तक भारत पर चला था क्वीन का राज
हाइलाइट्स02 अगस्त 1858 को ब्रिटेन के हाउस ऑफ कामंस में भारत के भाग्य का फैसला हुआईस्ट इंडिया का 100 सालों से ज्यादा का प्रभुत्व एक झटके में खत्म हो गयाब्रिटिश दस्तावेज कहते हैं कि 1700 की शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी बड़े घाटे में आ गई 02 अगस्त 1858 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कामंस में कुछ अलग ही माहौल था. गहमा-गहमी और दिनों से कहीं ज्यादा थी. ब्रिटेन की संसद में भारत का भाग्य तय किया जाने वाला था. संसद में कमोवेश सभी सदस्य आ चुके थे. आज का एक ही एजेंडा था. गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट1858 को पास किया जाए. इस एक्ट को पास करने में बहुत ज्यादा देर नहीं लगी. इसके साथ ही इंडिया ब्रिटिश क्राउन का नया उपनिवेश बन गया. इस कानून ने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के राज को खत्म कर दिया. कंपनी की भारत संबंधी सारी ताकतें और संपत्तियां सीधे सीधे ब्रिटिश क्राउन को ट्रांसफर हो गईं. हालांकि इस कानून की भूमिका तभी बनने लगी थी, जब भारत में 1857 के विद्रोह ने ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिला दी थीं. उसे खत्म करने में उसके पसीने छूट गए थे. ये ऐसी क्रांति थी, जिसने केवल ईस्ट इंडिया कंपनी ही नहीं बल्कि ब्रिटिश राजशाही को भी हिला दिया था. ईस्ट इंडिया की संरक्षक ब्रिटेन की महारानी ही थीं लेकिन उसके कार्यकलाप और नीतियों पर ब्रिटिश क्राउन नहीं बल्कि कंपनी का नियंत्रण था. ब्रिटेन के बड़े व्यापारी और अफसर इसके हिस्सेदार थे. कुल मिलाकर इस कंपनी के 1700 हिस्सेदार थे, जो 25 करोड़ भारतीयों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष तरीके से शासन करती थी. हालांकि चार साल पहले ही ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के भारत व्यापार का नवीनीकरण किया था. वर्ष 1600 में स्थापित ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी उस समय दुनिया का सबसे बड़ा कारपोरेशन थी. क्या भारी घाटे में थी ईस्ट इंडिया कंपनी जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत पहुंची तब शुरुआत में तो इसे बहुत मुनाफा हुआ लेकिन ब्रिटिश दस्तावेज कहते हैं कि 1700 की शुरुआत के साथ कंपनी बड़े घाटे में आ गई. 1857 के विद्रोह के बाद कंपनी बुरी तरह वित्तीय संकट का शिकार हो गई. दस्तावेज कहते हैं कि कंपनी को जब ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में लिया तब इसका घाटा 98 मिलियन पाउंड (8.77 अरब रुपए) हो चुका था, जो कुल ब्रिटिश घाटे का पांचवां हिस्सा था. लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी का हेडक्वार्टर कंपनी की ताकतवर लॉबी डालती थी अड़ंगा 1857 के विद्रोह ने ब्रिटेन की सरकार को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों और शासन में गड़बड़ी जरूर है. हालांकि ब्रिटिश सरकार लंबे समय से भारत को उपनिवेश बनाने के बारे में सोच रही थी. लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी की ताकतवर लॉबी के कारण सफल नहीं हो पा रही थी. भारत में हुए व्यापक विद्रोह ने उसे इसके लिए अच्छा मौका दे दिया था. हालांकि ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिकान और अफसरों ने विरोध किया लेकिन इसे अनदेखा कर दिया गया. ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड पामेर्स्टन ऐसा कानून बनाने पर आमादा थे, जिससे भारत ब्रिटिश क्राउन के तहत आ जाए और ब्रिटिश सरकार उस पर नियंत्रण करे. हां, ये जरूर हुआ कि ब्रिटेन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को मोटा पैसा जरूर दिया. 1958 में जब कोलकाता के गर्वनमेंट हाउस में ब्रिटिश क्राउन की घोषणा की गई. अब ताकत सेक्रेट्री इंडिया के हाथों में थी ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड पामेर्स्टन ने 18 फरवरी को इस एक्ट को हाउस ऑफ कामंस में पेश किया. उस समय इस पास भी कर दिया गया लेकिन इसमें फिर कुछ आमूल चूल बदलाव की जरूरत महसूस की गई. लिहाजा 02 अगस्त 1858 को जो बिल हाउस ऑफ कामंस में पेश हुआ, उसका नाम बदल कर “एन एक्ट फॉर द बेटर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया” कर दिया गया. यही वो बिल था, जिसने भारत में हुकुमत की सारी ताकतें ब्रिटिश क्राउन के अधीन ला दीं. इसके लिए एक अलग सेक्रेट्री बनाया गया, जिसे सेक्रेट्री ऑफ स्टेट फॉर इंडिया कहा गया. ये काफी ताकतवर ओहदा था. सीधे फैसला ले सकता था सेक्रेट्री सेक्रेट्री को सलाह देने के लिए 15 लोगों की काउंसिल बनाई गई. लेकिन सेक्रेट्री सीधे ना केवल फैसले ले सकता था बल्कि सीक्रेट हुक्मनामा सीधे भारत में गर्वनर जनरल यानि वाइसराय को भेज सकता था. हालांकि 02 अगस्त को जब ये बिल हाउस ऑफ कामंस में पास हुआ तब तक किसी और मुद्दे के चलते लार्ड पामेर्स्टन गद्दी से हट चुके थे. इसके बाद भारत आजादी मिलने तक ब्रिटिश राज के अधीन रहा. कोलकाता का ये गर्वनमेंट हाउस ईस्ट इंडिया का इंडिया स्थित मुख्यालय था दादाभाई नौरोजी का अभियान दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटेन में इसके खिलाफ जमकर अभियान छेड़ा. उन्होंने ना केवल वहां के अखबारों में लेख लिखे बल्कि सभाओं में भाषण दिए. लेकिन 02 अगस्त से भारत पर ब्रिटिश क्राउन का राज कायम हो गया. हालांकि सत्ता और तमाम संधियों के स्थानांतरण में तीन महीने का समय लगा. एक नवंबर 1858 को भारत में ब्रिटिश क्राउन यानि महारानी विक्टोरिया का शासन पूरी तरह हरकत में आ गया. लॉर्ड विस्काउंट कैनिंग 1858 में भारत के पहले वायसराय बने. इलाहाबाद में लगा था उनका पहला दरबारइलाहाबाद दरबार में कैनिंग ने की घोषणा इलाहाबाद में अपने दरबार में पहले वायसराय लार्ड कैनिंगने इसकी घोषणा की. कैनिंग ने घोषणा की कि महारानी ने मुझे ये ऐलान करने का आदेश दिया है कि हम भारत की जनता के धर्म में दखल नहीं देंगे और राजाओं के साथ हुई सभी संधियों का आदर करेंगे. बेशक भारत में नई शासन व्यवस्था कायम हो गई लेकिन नीतियों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. अंग्रेजों की शोषणकारी और दमनात्म नीतियां जारी रहीं. समय समय पर छोटे मोटे विद्रोह भी होते रहे. कुछ विद्रोह ऐसे भी हुए, जिन्होंने अंग्रेजों को बड़ा झटका दिया. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Britain, British Raj, East India Company, Queen ElizabethFIRST PUBLISHED : August 02, 2022, 16:57 IST