Explainer : क्या है वो बैलेट वोटिंग जो राष्ट्रपति चुनाव में हो रही है
Explainer : क्या है वो बैलेट वोटिंग जो राष्ट्रपति चुनाव में हो रही है
भारत में चुनाव बेशक अब इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से होने लगा हो लेकिन देश के शीर्ष पद यानि राष्ट्रपति का चुनाव अब भी सीक्रेट बैलेट से होता है, ये पूरी प्रक्रिया क्या होती है. राज्यों में भी इसके लिए वोट पड़ते हैं. वहां से बैलेट बॉक्स कैसे दिल्ली आते हैं. फिर कैसे उनकी काउंटिंग होती है.
हाइलाइट्स1952 में पहला राष्ट्रपति चुनाव से लेकर अब तक ये चुनाव बैलेट बॉक्स के जरिए ही होता हैदेश में 2004 से आमचुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का चलन शुरू हुआ लेकिन ये चुनाव पारंपरिक तरीके से हीराष्ट्रपति चुनावों में मतपेटियां और मतपत्र हवाई जहाज हर राज्य की राजधानियों तक पहुंचते हैं
देशभर में आज 16वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए चुनाव हो रहा है. ये चुनाव दिल्ली में लोकसभा और राज्यसभा से लेकर हर राज्य की विधानसभाओं में हो रहा है. ये चुनाव देशभर में सीक्रेट बैलेट वोटिंग से हो रहा है. आखिर क्या होती है बैलेट वोटिंग, क्यों ये चुनाव इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से नहीं होते.
इस चुनाव में जहां 18 जुलाई को वोटिंग हो रही है तो फिर 21 जुलाई को काउंटिंग होगी. इसके लिए सारे बैलेट बॉक्स दिल्ली लाए जाएंगे, जहां इनकी गिनती होगी. ये कैसे लाए जाएंगे और वोटिंग से लेकर काउंटिंग की प्रक्रिया दिल्ली से पूरे देश में किसकी देखरेख में होती है, ये भी हम आपको बताएंगे. वैसे इस चुनाव में इस बार दो ही प्रत्याशी मैदान में हैं. द्रौपदी मुर्मु सत्ताधारी एनडीए की प्रत्याशी हैं तो यशवंत सिंह विपक्ष के साझा उम्मीदवार हैं.
ये चुनाव संसद और दिल्ली समेत 28 राज्यों में एकसाथ चल रहे हैं. आज के दिन हर राज्य और संसद में सभी विधायकों और सांसदों को मौजूद रहने और वोट देने को कहा गया है. इलेक्टोरल कॉलेज के अनुसार 776 सांसद और 4033 विधायक इसमें मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे.
कौन होता है रिटर्निंग अफसर
देशभर में इस चुनाव को संचालित करने के लिए बारी बारी से लोकसभा और राज्य सभा के महासचिव को रिटर्निंग अफसर बनाया जाता है. चूंकि 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में ये काम लोकसभा के महासचिव ने किया था लिहाजा इस बार राज्यसभा के महासचिव पीसी मोदी इस भूमिका में हैं. 13 जून 2022 को भारतीय चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी करके उन्हें ये दायित्व सौंपा था.
कैसे बैलेट बॉक्स और मतपत्र भेजे जाते हैं
चुनाव आयोग के निर्देशों पर बैलेट बॉक्स और सील मतुपत्रों के पैकेट को हवाई जहाज से अधिकारियों के जरिए हर राज्य की विधानसभा को भेजा जाता है. बैलेट बॉक्स के लिए अलग एक सीट आरक्षित की जाती है.
इन्हें चुनाव से पहले विधानसभा भवनों के स्ट्रांग रूम तक पहुंचाते हैं और फिर इसे सील कर दिया जाता है. सील चुनाव के दिन खुलती है. वहां से बैलेट बॉक्कस और मतपत्र निकाले जाते हैं. इनकी सुरक्षा के लिए 24 घंटे आर्म्स गार्ड तैनात रहते हैं. सीसीटीवी रिकार्डिंग होती है.
मतपेटियां कैसे देशभर से दिल्ली आती हैं
अब पूरे देश में हो रही वोटिंग की रेखरेख समेत चुनाव पेटियों की सुरक्षा और काउंटिंग का जिम्मा उन्हीं का होगा. संसद में अगर शाम को मतदान खत्म होने के बाद इन चुनाव पेटियों को सीलबंद कर दिया जाएगा तो 28 राज्यों में भी ऐसा ही होगा. इसके बाद ये चुनाव पेटियां पूरी सुरक्षा में राज्य की विधानसभाओं में सीलबंद होंगी और फिर ट्रेन या विमानों के जरिए संसद परिसर में राज्यसभा सचिवालय पहुंचेंगी, जहां इन्हें स्ट्रांग रूम में सुरक्षा के बीच रखा जाएगा.
वोट काउंटिंग के दिन क्या होता है
वहां फिर इन सभी पेटियों को रिटर्निंग अफसर के सामने खोला जाएगा और वोटिंग का काम शुरू होगा. शाम तक इन वोटों की गणना हो जाएगी. चूंकि ये गणना प्रिफेंशियल सिस्टम से की जाती है लेकिन उसकी नौबत तब आती है, जब कई उम्मीदवार हों और मामला बहुत नजदीकी हो. इस चुनाव में पूरी उम्मीद है कि एक ही दौर की गणना में चुनाव परिणाम साफ हो जाएगा.
किस तरह के होते हैं मतपत्र
हर बैलेट पेपर पर राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे सभी कैंडिडेट्स के नाम होते हैं. इलेक्टर्स (निर्वाचित सांसद/विधायक) सबसे पसंदीदा उम्मीदवारों के नाम के आगे 1 और फिर दूसरे पसंदीदा उम्मीदवार के नाम के आगे 2 और इसी तरह अन्य उम्मीदवारों के सामने प्रिफरेंस देते जाते हैं. हालांकि इस बार केवल दो ही उम्मीदवारों के बीच सीधा मुकाबला है.
किस रंग के बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता है?
राष्ट्रपति चुनाव में सांसदों को हरे रंग का, विधायकों को गुलाबी रंग का बैलेट पेपर दिया जाता है. वोटिंग के दौरान सभी सांसद और विधायक हर पोलिंग स्टेशन पर एक ही रंग की स्याही और एक ही पेन का इस्तेमाल करते हैं. राष्ट्रपति के चुनाव में NOTA का इस्तेमाल भी नहीं होता .
बैलेट बॉक्स से वोटिंग कैसे होती है
अब बैलेट बॉक्स के बारे में जानते हैं. देश में जब पहला आमचुनाव हुआ तो 1952 के इन आमचुनावों में बैलेट बॉक्स ही थे. फिर लंबे समय तक देश में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल ही चुनावों में होता रहा. इसमें वोटर्स कागज के प्रिंटेट मतपत्रों पर ठप्पा लगाकर अपने पसंद के उम्मीदवार पर मुहर लगाते हैं. वर्ष 2004 में पूरे देश में पहली बार इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से चुनाव हुए. तब से अब राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव होते हैं. लेकिन राष्ट्रपति का चुनाव अब भी पारंपरिक बैलेट बॉक्स से ही होता है. हालांकि देश में अब भी कई चुनावों में बैलेट बॉक्स का ही इस्तेमाल होता है.
क्या इसकी कोई वजह है
नहीं इसकी कोई वजह नहीं है. बस ये एक परंपरा का निर्वाह है. चूंकि राष्ट्रपति पद का चुनाव हमेशा से सीक्रेट बैलेट से होता रहा है लिहाजा उसको ही यहां जारी रखा गया है. इसकी वजह ये भी है कि इन चुनावों में बहुत ज्यादा मतपत्रों की गिनती नहीं करनी होती लिहाजा मतपत्रों से इनकी गिनती आसान है और रिजल्ट भी उसी दिन आ जाते हैं.
क्या है सीक्रेट बैलेट चुनाव प्रणाली
गुप्त मतदान का उपयोग विभिन्न मतदान प्रणालियों के साथ किया जाता है. एक गुप्त मतदान का सबसे मूल रूप कागज के खाली टुकड़ों का उपयोग करता है, जिस पर प्रत्येक मतदाता अपनी पसंद लिखता है. मतों को किसी के सामने प्रकट किए बिना, मतदाता आधे में बैलेट पेपर को मोड़कर सील बॉक्स में रखता है. इस बॉक्स को बाद में गिनती के लिए खाली कर दिया जाता है. कई देशों में अब भी आमचुनाव इसी प्रणाली से होते हैं जिसमें अमेरिका और ब्रिटेन शामिल हैं.
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Tags: President of India, Rashtrapati bhawan, Rashtrapati ChunavFIRST PUBLISHED : July 18, 2022, 11:45 IST