क्या था 1985 में हुआ असम समझौता इसमें बांग्लादेशियों को लेकर क्या कहा गया

बांग्लादेशी अप्रवासियों का मामला असम में पिछले 74 सालों से बड़ा विवाद बना हुआ है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेक्शन 6A को लेकर दिए गए फैसले ने असम समझौते को भी फिर चर्चा में ला दिया है.

क्या था 1985 में हुआ असम समझौता इसमें बांग्लादेशियों को लेकर क्या कहा गया
हाइलाइट्स वर्ष 1979 के किस उपचुनाव से बांग्लादेशी अप्रवासियों का मुद्दा उठ खड़ा हुआ 1979 से ही असम में छात्रों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ, जो बड़ा होता गया 1985 में आखिरकार राजीव गांधी सरकार के साथ समझौता हुआ 1970 के दशक के अंत में, असम की धरती पर एक असाधारण छात्र आंदोलन ने अपनी जड़ें जमा लीं. मंगलदोई निर्वाचन क्षेत्र सांसद हीरालाल पटवारी की मृत्यु के बाद उपचुनाव में मतदान कर रहा था. इस सीट पर अचानक वोटर्स की संख्या में खासी बढोतरी हो गई थी. वजह थी बांग्लादेश से आए अप्रवासियों की बहुत अधिक संख्या. इसने इस चुनाव को पूरे देश में सुर्खियों में ला दिया. इसके बाद इसे लेकर असम में विरोध शुरू हुआ. देश में इसे लेकर एतराज होना शुरू हुआ. असम में इसे लेकर आंदोलन होने लगे. ये मांग की जाने लगी कि राज्य में आए बांग्लादेशियों की बड़ी संख्या की वजह से राज्य का ढांचा असंतुलित हो गया है. सांस्कृतिक पहचान खतरे में है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 में किए गए संशोधन के आधार तैयार कानून सेक्शन 6ए को बरकरार रखने के बाद असम समझौता फिर से चर्चा में आ गया है. दरअसल ये कानून असम समझौते को लागू करने के लिए ही बनाया गया था. उपचुनावों के कुछ ही महीने बाद 8 जून, 1979 को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने सभी विदेशियों को हिरासत में डालने. मताधिकार से वंचित करने और वापस भेजने की मांग करते हुए 12 घंटे की आम हड़ताल की गई. फिर असम में लंबा आंदोलन छिड़ा फिर अगले कुछ महीनों और वर्षों में विरोध आंदोलनों की झड़ी लग गई. सरकार के साथ कई दौर की बातचीत हुई. फिर आल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने लंबी हड़ताल छेड़ दी. राज्य का कामकाज ठप पड़ गया. आखिरकार केंद्र सरकार को 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा, जिसमें अप्रवास के मुद्दे से निपटने के लिए राज्य द्वारा उठाए जाने वाले कई उपायों की सूची बनाई गई. असम समझौता कब लागू हो सका  असम समझौता तो हो गया लेकिन इसके महत्वपूर्ण हिस्से को आखिरकार लागू होने में 33 साल लग गए. वर्ष 2018 में जब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का अंतिम मसौदा जारी किया तो असम के करीब 40 लाख निवासी इस बात से निराश हो गए कि उनके नाम सूची से गायब हैं. ये बड़ा मुद्दा बन गया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कदम की आलोचना की तो केंद्र में बैठी सत्तारूढ़ पार्टी यानि भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने याद दिलाया कि यह समझौता 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने किया था. उन्होंने जुलाई 2018 में राज्यसभा में कहा, “राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो एनआरसी के समान था. उनमें इसे लागू करने का साहस नहीं था, हममें है.” आजादी से पहले असम में ये विवाद रहा है असम में अप्रवासन का मुद्दा आजादी से पहले से ही जातीय संबंधों को प्रभावित करता रहा है. आजाद भारत में इस मुद्दे को 1979 तक दबा दिया गया. जब असम आंदोलन शुरू हुआ तो ये मुद्दा पूरी ताकत के साथ बाहर आ गया. इसने राज्य को हिलाकर रख दिया. आने वाले सालों के लिए जातीय और धार्मिक संबंधों की रूपरेखा तय कर दी. असम इसके बाद लंबे समय तक राजनीतिक उथल-पुथल की राह चल पड़ा. बातचीत में क्या होता रहा 1980 और 1982 के बीच आंदोलन के नेताओं और केंद्र सरकार के बीच करीब 23 दौर की बातचीत हुई. असम आंदोलन को पर्याप्त समर्थन मिला. 1982 के अंत तक केंद्र और आंदोलन के नेताओं के बीच एक समझौता हुआ कि 1951 और 1961 के बीच भारत की सीमा में आने वाले सभी लोगों को नागरिकता का दर्जा दिया जाएगा जबकि 1971 के बाद आने वालों को निर्वासित किया जाएगा. हालांकि 1961 और 1971 के बीच भारत में प्रवेश करने वालों की स्थिति का समाधान नहीं हुआ. आंदोलन ने फिर कैसे जोर पकड़ा निवासी का दर्जा तय करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रियाओं पर भी कोई सहमति नहीं थी. आंदोलन ने फिर जोर पकड़ा और इतना ज़ोर पकड़ लिया था कि 1980 के संसदीय चुनावों और 1983 के विधानसभा चुनावों सहित सरकार के कामकाज को बाधित करने में सक्षम हो गया. तब राजीव गांधी सरकार ने समझौता किया 1984 में फिर आंदोलन के नेताओं और केंद्र सरकार के बीच बातचीत शुरू हुई. इस समय तक जनता पार्टी सत्ता में नहीं थी. सरकार राजीव गांधी के हाथों में थी. नतीजतन, 15 अगस्त 1985 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार, जनवरी 1966 और मार्च 1971 के बीच राज्य में प्रवेश करने वाले सभी अवैध विदेशियों को 10 साल के लिए मताधिकार से वंचित कर दिया जाएगा. मार्च 1971 के बाद आने वालों को निर्वासित कर दिया जाएगा. समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद, राज्य सरकार को भंग कर दिया गया, क्योंकि दिसंबर 1985 में संशोधित मतदाता सूची के आधार पर नए चुनाव हुए. असम समझौता क्या है? 1985 का असम समझौता इस आश्वासन के साथ शुरू हुआ कि “सरकार असम में विदेशियों की समस्या का संतोषजनक समाधान खोजने के लिए हमेशा से ही बहुत उत्सुक रही है.” परिणामस्वरूप, इसने असम में आव्रजन मुद्दे को हल करने के लिए लागू किए जाने वाले प्रस्तावों की एक सूची तैयार की. किसे नागरिकता दी जाएगी समझौते के अनुसार, 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में आए सभी लोगों को नागरिकता दी जाएगी. 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच आने वाले लोगों को “विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश 1964 के प्रावधानों के अनुसार पहचाना जाएगा”. उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे. वे 10 साल की अवधि के लिए मताधिकार से वंचित रहेंगे. समझौते में कहा गया है, “25 मार्च 1971 को या उसके बाद असम में आए विदेशियों का पता लगाना जारी रखा जाएगा, उन्हें हटाया जाएगा तथा ऐसे विदेशियों को निष्कासित करने के लिए व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे.” Tags: Assam, Citizenship Act, Citizenship Amendment Act, Indian CitizenshipFIRST PUBLISHED : October 17, 2024, 15:35 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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