दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं से छीनना बेल पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं से छीनना बेल पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत देना और उसके बाद भारी एवं दूभर शर्तें लगाना, जो चीज दाहिने हाथ से दी गई है, उसे बाएं हाथ से छीनने के समान है. मामले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को कई जमानतदार ढूंढ़ने में वास्तविक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.
बीते दिनों आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया को मनी लॉउंड्रिंग केस में जमानत देते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक आरोपी के लिए बेल उसका राइट होता है और जेल एक्सेप्शन होता है. यानी बेहद विपरीत परिस्थित में ही किसी आरोपी को सजा सुनाए बिना लंबे समय तक जेल में रखा जा सकता है. बेल हासिल करना उसका अधिकार होता है और अदालतों को सुनवाई के दौरान इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए.
इस अहम टिप्पणी के बाद बेल के मसले पर शीर्ष अदालत ने गुरुवार को भी एक अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि जमानत प्रदान करना और फिर भारी शर्तें लगाना दाएं हाथ से दी गई चीज बाएं हाथ से छीनने जैसा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा आदेश जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करेगा और उसकी उपस्थिति की गारंटी देगा, वह तर्कसंगत होगा.
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसके खिलाफ धोखाधड़ी सहित विभिन्न अपराधों के लिए कई राज्यों में 13 प्राथमिकियां दर्ज हैं. याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दलील दी थी कि उसे इन 13 मामलों में जमानत दी गई थी और उसने इनमें से दो मामलों में जमानत की शर्तें पूरी की हैं.
13 मामलों में जमानत फिर भी नहीं हुआ रिहा
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की मुख्य दलील यह थी कि वह अलग-अलग जमानतदार देने की स्थिति में नहीं है, जैसा कि शेष 11 जमानत आदेशों में निर्देश दिया गया है. पीठ ने कहा कि आज स्थिति यह है कि 13 मामलों में जमानत मिलने के बावजूद याचिकाकर्ता जमानतदार नहीं दे पाया है.
पीठ ने कहा कि जमानत पर रिहा हुए आरोपी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानतदार होना आवश्यक है. कोर्ट ने कहा कि जमानतदार अकसर कोई करीबी रिश्तेदार या पुराना मित्र होता है तथा आपराधिक कार्यवाही में यह दायरा और भी कम हो सकता है, क्योंकि सामान्य प्रवृत्ति यह होती है कि अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए ऐसी कार्यवाही के बारे में रिश्तेदारों और मित्रों को नहीं बताया जाता.
पीठ ने कहा कि ये हमारे देश में जीवन की भारी वास्तविकताएं हैं और एक अदालत के रूप में हम इनसे आंखें नहीं मूंद सकते. हालांकि, इसका समाधान कानून के दायरे में ही तलाशना होगा. इसने कहा कि राजस्थान में दर्ज एक प्राथमिकी में जमानत के आदेशों में से एक में स्थानीय जमानतदार उपलब्ध कराने का आदेश था.
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता हरियाणा का रहने वाला है और स्थानीय जमानतदार हासिल करना उसके लिए कठिन होगा. पीठ ने कहा कि उपरोक्त चर्चा किए गए सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और उत्तराखंड में लंबित प्राथमिकी के लिए, प्रत्येक राज्य में याचिकाकर्ता 50,000 रुपये का निजी मुचलका भरेगा और दो जमानतदार पेश करेगा जो 30,000 रुपये का मुचलका भरेंगे और यह संबंधित राज्य में सभी प्राथमिकी के लिए मान्य होगा.
Tags: Supreme Court, Supreme court of indiaFIRST PUBLISHED : August 22, 2024, 23:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed