दिल्ली में बढ़े वॉकिंग निमोनिया के केस जानें ये कैसी बीमारी क्या हैं लक्षण
दिल्ली में बढ़े वॉकिंग निमोनिया के केस जानें ये कैसी बीमारी क्या हैं लक्षण
दिल्ली की हवा में स्मॉग यानी जहरीले तत्व बढ़ने के साथ ही वाकिंग निमोनिया जैसी नई बीमारी ने जन्म लिया है. ये बढ़ रही है. जानें ये बीमारी क्या है और क्या हैं इसके संकेत...
हाइलाइट्स शरीर के वायुमार्ग में सूजन आ जाती है फेफड़ों की वायु थैलियों में बलगम जमा हो जाता है गंभीर प्रदूषण ने रोगियों में इसके लक्षणों को और बढ़ा दिया है
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ से लेकर ‘अति-गंभीर’ श्रेणियों के बीच बनी हुई है. इसके चलते दिल्ली में ‘वॉकिंग निमोनिया’ के मामले बढ़े हैं. ये एक तरह की नई बीमारी है या ये भी कह सकते हैं कि ये हल्के निमोनिया का मामला है.
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली की वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ से लेकर ‘गंभीर से अधिक’ श्रेणी के बीच झूल रही है. इस बीमारी के कारण अस्पताल और डॉक्टर के पास जाने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई है. इसे वाकिंग निमोनिया कहा जा रहा है.
बिगड़ती एयर क्वालिटी पहले से हेल्थ की दिक्कतों से ग्रस्त लोगों को ज्यादा प्रभावित कर रही है. लेकिन ये स्वस्थ लोगों पर भी असर डाल रही है, उन्हें बीमार कर रही है. इसके चलते ‘वॉकिंग निमोनिया’ के मामलों में भी वृद्धि हुई है. आखिर क्या है ये बीमारी और इसके लक्षण.
वॉकिंग निमोनिया क्या है?
वॉकिंग निमोनिया एक गैर-चिकित्सीय शब्द है, जो निमोनिया के एक हल्के मामले के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वायुमार्ग में सूजन आ जाती है और फेफड़ों की वायु थैलियों में बलगम जमा हो जाता है. इसे अक्सर साइलेंट निमोनिया कहा जाता है, ये बीमारी माइकोप्लाज्मा निमोनिया के सामान्य जीवाणु से होती है.
इसका यह नाम 1930 के दशक में पड़ा, क्योंकि इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अपनी नियमित गतिविधियां जारी रखने की अनुमति होती थी. अस्पताल में भर्ती होने या लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने की जरूरत भी नहीं होती थी.
गंभीर प्रदूषण से मामले बढ़े
गंभीर प्रदूषण ने मरीजों में लक्षणों को और बढ़ा दिया है. 2009 के एक अध्ययन के अनुसार, जो लोग नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और महीन कणों की उच्च सांद्रता में एक साल बिताते हैं, उनमें निमोनिया होने की आशंका दोगुनी हो जाती है.
यह निमोनिया से किस तरह अलग
सामान्य निमोनिया फेफड़े के एक विशिष्ट भाग या क्षेत्र को प्रभावित करती है.इससे फेफड़ों के ऊतकों में सूजन पैदा होती है और हवा की थैलियों में द्रव भर जाता है. इससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. खांसी आने लगती है. जबकि वॉकिंग निमोनिया तब छिटपुट रूप से फैलता है. जब प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय कारक इसे बदतर बना देते हैं, तब ये पूरी तरह से संक्रमित बन जाता है.
किस उम्र के लोगों को प्रभावित करता है
यह रोग अधिकतर सबसे कम आयु वर्ग को प्रभावित करता है, जो पांच से 14 वर्ष के बीच है. ये 40 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को भी हो सकता है.
इस वायरस से अस्थमा, दीर्घकालिक बीमारियों, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों तथा कुछ चिकित्सीय स्थितियों के लिए स्टेरॉयड लेने वाले लोगों के भी संक्रमित होने की अधिक आशंका है.
इसके लक्षण क्या हैं?
वॉकिंग निमोनिया के लक्षण फ्लू जैसे ही होते हैं. इसमें बुखार, ठंड लगना, खांसी, सिरदर्द, गले में खराश, कमजोरी और चकत्ते शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, वॉकिंग निमोनिया से पीड़ित व्यक्ति को हल्की सांस की दिक्कत जैसे लक्षण फील होते हैं. ये तेज भी हो सकते हैं. ये तीन से पांच दिनों से अधिक समय तक बने रहते हैं. इसका निदान आमतौर पर शारीरिक परीक्षण या एक्स-रे द्वारा किया जाता है।
यह कैसे फैलता है?
यह बीमारी तब फैलती है जब कोई संक्रमित व्यक्ति दूसरों के पास सांस लेता है, बात करता है, खांसता है या छींकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि रोगाणु की सांस की बूंदें हवा में तैरती रहती हैं. वायरस के मामले में, संक्रमण का प्रसार अधिक तेज़ होता है. वाहक के पास 10 दिनों का संक्रामक काल होता है. यह आमतौर पर व्यस्त स्थानों जैसे कॉलेजों और स्कूलों में फैलता है।
इसका इलाज कैसे किया जाता है?
यदि संक्रमण जीवाणुजन्य है, तो डॉक्टर एंटीबायोटिक्स दे सकता है. यदि ये वायरस है, तो संक्रमण अपने आप ठीक हो जाता है. केवल लक्षणात्मक देखभाल की आवश्यकता होती है.
इसकी रोकथाम कैसे की जा सकती है?
फ्लू से संबंधित निमोनिया से बचाव के लिए हर साल फ्लू का टीका लगवाएं.
निमोनिया का टीका लगवाने के बारे में डॉक्टर से सलाह लें. हालांकि वायरल या माइकोप्लाज्मा निमोनिया को रोकने के लिए कोई टीका नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को न्यूमोकोकल निमोनिया को रोकने के लिए टीका लगवाना चाहिए. पर्याप्त नींद लें, स्वस्थ आहार लें और व्यायाम करें. अपने हाथों को बार-बार और अच्छी तरह धोने के लिए गर्म, साबुन वाले पानी का प्रयोग करें. इन वायरसों के प्रसार को रोकने के लिए, खांसते या छींकते समय अपना मुंह ढकें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए कहें.
दिल्ली की हवा कितनी जहरीली है?
दिल्ली में हवा की क्वालिटी अब भी गंभीर स्थिति में है. करीब 15 दिनों से दिल्ली में नीला आसमान नजर नहीं आ रहा. राष्ट्रीय राजधानी में धुंध और प्रदूषण की हल्की परत छाई रही. यहां करीब सात करोड़ लोग रहते हैं.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (पीएम 2.5) दिल्ली की हवा में प्रमुख प्रदूषक है, जिसमें कुछ हद तक सुधार हुआ है, लेकिन यह 373 के समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के साथ “बहुत खराब” श्रेणी में बना हुआ है.
FIRST PUBLISHED : November 22, 2024, 19:38 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed