Explainer: क्या अब कृत्रिम बारिश ही दिला सकती है दिल्ली-NCR को स्मॉग से राहत
Explainer: क्या अब कृत्रिम बारिश ही दिला सकती है दिल्ली-NCR को स्मॉग से राहत
दिल्ली-एनसीआर को स्मॉग से जकड़े हुए करीब दस दिन हो रहे हैं. अगले दस दिनों तक बारिश की भी कोई संभावना मौसम पूर्वानुमानों में नहीं है. ऐसे में कृत्रिम बारिश ही इस इलाके के लिए आसमान और हवा दोनों को साफ कर सकती है.
हाइलाइट्स दिल्ली - एनसीआर में AQI यानि हवा गुणवत्ता इंडैक्स लगातार 400 के आसपास पिछले 70-72 सालों में भारत ने कई इलाकों में कृत्रिम बारिश कराई है चीन ऐसी बारिश अपने यहां कराता है. खाड़ी देशों में गर्मी से निपटने के लिए ऐसा होने लगा है
पिछले दस दिनों से दिल्ली-एनसीआर में छाई स्मॉग की घनी चादर छंटने का नाम नहीं ले रही. दीवाली के बाद शुरू हुआ ये सिलसिला रोज इस पूरे इलाके को 400-500 या इससे भी खराब AQI में रहने के लिए मजबूर कर रहा है. इस हालत में अगर कोई खुली हवा में बाहर निकल जाए तो उसके गले से लेकर फेफड़ों तक में बुरी तरह जहरीली हवा घुस जाएगी. ग्रैप 4 लगा देने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं. अब ऐसा लगता है कि दिल्ली एनसीआर की इस स्थिति को आर्टिफिशियल बारिश से ही छुटकारा दिलाया जा सकता है. नोएडा की कुछ कॉलोनियां भी अपने यहां ऐसा करने पर विचार कर रही हैं.
यहां सबसे ज्यादा चिंता वाली बात ये भी है कि मौसम के पूर्वानुमान अगले 8-10 दिनों में किसी भी तरह की बारिश से इनकार कर रहे हैं कि ऐसा होने पर हवा में घुल चुके विषैले तत्व बारिश से साथ बह जाएं.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने मंगलवार को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के बिगड़ते स्तर से निपटने के प्रयास के तहत कृत्रिम बारिश के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग की. मंत्री ने मंगलवार को मीडिया से कहा, “उत्तर भारत में धुंध की परतें छा गई हैं. धुंध से छुटकारा पाने के लिए कृत्रिम बारिश ही एकमात्र उपाय है. यह एक चिकित्सा आपातकाल है.”
स्मॉग के इतने लंबे समय से ठहरे रहने पर बडे़ पैमाने पर लोगों की तबीयत खराब हो रही है. आंखों में जलन. सांस लेने में तकलीफ. खांसी की शिकायत. सबसे ज्यादा मुश्किल में वो लोग, जो सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं. ग्रैप 4 लगा देने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं. अब ऐसा लगता है कि दिल्ली एनसीआर की इस स्थिति को आर्टिफिशियल बारिश से ही छुटकारा दिलाया जा सकता है. (IMAGE GENERATED BY LEONARDO AI)
भारत के पास इसकी तकनीक मौजूद
ऐसे में तो यही लगता है कि अब कृत्रिम बारिश ही अकेला उपाय बचा है, जो दिल्ली, एनसीआर और उत्तर भारत को कुछ राहत दे सकता है. भारत के पास कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक है. हमारे देश में कई जगहों पर समय समय पर ऐसी बारिश कराई भी गई है. ऐसी बारिश होने पर हवा एकदम साफ हो जाएगी.ये लोगों की हेल्थ के लिए बहुत नियामत होगा.
पिछले साल गरमी से तपते संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरिए बादलों को इलैक्ट्रिक चार्ज करके अपने यहां आर्टिफिशियल बारिश कराई थी. हालांकि ये बारिश कराने की नई तकनीक है. इसमें बादलों को बिजली का झटका देकर बारिश कराई जाती है. इलैक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण हुआ और दुबई और आसपास के शहरों में जमकर बारिश हुई.
70 साल पहले ही कराई जा चुकी है ऐसी बारिश
50 के दशक में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र और यूपी के लखनऊ में कृत्रिम बारिश कराई थी. दिल्ली में 02-03 साल पहले वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश की तैयारी कर ली गई थी.
वैसे दुबई और उसके आसपास के शहरों में हुई कृत्रिम बारिश बिल्कुल नई तकनीक से हुई है. इसमें द्रोन का प्रयोग हुआ. दरअसल यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वैज्ञानिक इस पर पिछले कुछ समय से बढ़िया काम कर रहे हैं. हालांकि ये बारिश कराना काफी मंहगा है. कृत्रिम बारिश और भी तरीकों से होती रही है. उसमें आमतौर पर पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं और फिर उनसे बारिश कराई जाती है. कई देशों में ऐसा होता रहा है. इस तरह क्लाउड सीडिंग विमानों के जरिए कराई जाती है और बारिश इससे चार्ज होकर बारिश करने लगते हैं. (news18)
कैसे होती है कृत्रिम बारिश
कृत्रिम बारिश करना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. इसके लिए पहले कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं. पुरानी और सबसे ज्यादा प्रचलित तकनीक में विमान या रॉकेट के जरिए ऊपर पहुंचकर बादलों में सिल्वर आयोडाइड मिला दिया जाता है. सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ की तरह ही होती है. इसकी वजह से बादलों का पानी भारी हो जाता है और बरसात हो जाती है.
कुछ जानकार कहते हैं कि कृत्रिम बारिश के लिए बादल का होना जरूरी है. बिना बादल के क्लाउड सीडिंग नहीं की जा सकती. बादल बनने पर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है. इसकी वजह से भाप पानी की बूंदों में बदल जाती है. इनमें भारीपन आ जाता है और ग्रैविटी की वजह से ये धरती पर गिरती है. वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के 56 देश क्लाउड सीडिंग का प्रयोग कर रहे हैं.
इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है
कृत्रिम बारिश की ये प्रक्रिया बीते 50-60 वर्षों से उपयोग में लाई जा रही है. इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है. क्लाउड सीडिंग का सबसे पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट में हुआ था. इसे जनरल इलेक्ट्रिक लैब ने अंजाम दिया था.
60 और 70 के दशक में अमेरिका में कई बार कृत्रिम बारिश करवाई गई. लेकिन बाद में ये कम होता गया. कृत्रिम बारिश का मूल रूप से प्रयोग सूखे की समस्या से बचने के लिए किया जाता था. देश के कई हिस्सों में पहले भी कृत्रिम बारिश कराई जा चुकी है. (news18)
बारिश के खतरे को टालने के लिए भी होता है ऐसा प्रयोग
चीन कृत्रिम बारिश का प्रयोग करता रहा है. 2008 में बीजिंग ओलंपिक के दौरान चीन ने इस विधि का प्रयोग 21 मिसाइलों के जरिए किया था. जिससे बारिश के खतरे को टाल सके. हालांकि हाल ही में चीन की ओर से ऐसी कोई खबर नहीं आई जिससे जाहिर हो कि वह अब भी इस विधि का प्रयोग प्रदूषण से निपटने के लिए करता है. जानकारों का कहना है कि चीन ने अब प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग बंद कर दी है.
वर्ष 2018 में थी दिल्ली में कृत्रिम बारिश की तैयारी
वर्पिष 2018 में दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने पर कृत्रिम बारिश करवाने की तैयारी की गई थी. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति से निपटने के लिए आर्टिफिशियल रेन की तैयारी कर ली थी. बस मौसम अनुकूल होने का इंतजार किया जा रहा था. आईआईटी के प्रोफेसर ने कृत्रिम बारिश करवाने के लिए इसरो से विमान भी हासिल कर लिया था. लेकिन मौसम अनुकूल नहीं होने की वजह से कृत्रिम बारिश नहीं करवाई जा सकी.
लखनऊ और महाराष्ट्र में हो चुका है प्रयोग
कृत्रिम बारिश की तकनीक महाराष्ट्र और लखनऊ के कुछ हिस्सों में पहले ही परखी जा चुकी है. लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए किसी बड़े भूभाग में इसका प्रयोग नहीं हुआ है. हालांकि भारत में कई दशकों से कृत्रिम बारिश सफलता के साथ कराई जाती रही है. इसे लेकर आईआईटी से संबद्ध द रैन एंड क्लाउड फिजिक्स रिसर्च का काफी योगदान रहा है. दिल्ली – एनसीआर में स्मॉग की चादर घनी होती जा रही है. जैसे जैसे दिन आगे बढ़ता है, ये स्मॉग की धुंध भी बढ़ती जाती है. (news18)
भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1951 में हुआ था. भारतीय मौसम विभाग के पहले महानिदेशक एस के चटर्जी जाने माने बादल विज्ञानी थे. उन्हीं के नेतृत्व में भारत में इसके प्रयोग शुरू हुए थे. उन्होंने तब हाइड्रोजन गैस से भरे गुब्बारों में नमक और सिल्वर आयोडाइड को बादलों के ऊपर भेजकर कृत्रिम बारिश कराई थी. भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निपटने और डैम का वाटर लेवल बढ़ाने में किया जाता रहा है.
देश में लगातार ऐसी बारिश कराई जाती रही है
टाटा फर्म ने 1951 में वेस्टर्न घाट में कई जगहों पर इस तरह की बारिश कराई. फिर पुणे के रैन एंड क्लाउड इंस्टीट्यूट ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र कई इलाकों में ऐसी कृत्रिम बारिश कराई. भारत में वर्ष 1983, 84 में ऐसी बारिश कराई गई तो 93-94 में सूखे से निपटने के लिए तमिलनाडु में ऐसा काम हुआ. 2003-04 में कर्नाटक में आर्टिफिशियल बारिश कराई गई. वर्ष 2008 में आंध्र प्रदेश के 12 जिलों में इस तरह की बारिश कराने की योजना थी. कहने का मतलह ये है कि भारत कृत्रिम बारिश के क्षेत्र में काफी आगे रहा है.
करीब दो साल पहले साल आईआईटी के प्रोफेसरों ने बताया था कि मॉनसून से पहले और इसके दौरान कृत्रिम बारिश कराना आसान होता है. लेकिन सर्दियों के मौसम में ये आसान नहीं होती. क्योंकि इस दौरान बादलों में नमी की मात्रा ज्यादा नहीं होती.
Tags: Air Pollution AQI Level, Air Quality Index AQI, Delhi AQI, Delhi Rain, Pollution AQI LevelFIRST PUBLISHED : November 19, 2024, 20:24 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed