Explainer: लांग वर्किंग आवर्स से कैसे भारत में सबसे ज्यादा मौतें कई बीमारियां
Explainer: लांग वर्किंग आवर्स से कैसे भारत में सबसे ज्यादा मौतें कई बीमारियां
देश में अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत के बाद काम की अधिकता और लंबे वर्किंग आवर्स को लेकर फिर बहस चल पड़ी है. लंबे वर्किंग कई ऐसी बीमारियां देते हैं, जो जानलेवा बन जाती हैं
हाइलाइट्स 2016 में लंबे समय तक काम करने के कारण स्ट्रोक और इस्केमिक हृदय रोग से 7.45 लाख मौतें हुईं भूटान में सबसे ज्यादा वीकली वर्किंग हावर्स, भारत दूसरे नंबर पर भारत में कर्मचारी सबसे ज्यादा अपनी पूरी छुट्टियां नहीं ले पाते हर हफ्ते 55 घंटे या ज्यादा काम करने से स्ट्रोक का 35% जोखिम बढ़ जाता है लंबे समय तक काम करने से मनोवैज्ञानिक तनाव के माध्यम से मृत्यु हो सकती है लंबे समय तक काम करने से हृदय रोग और स्ट्रोक से होने वाली मौतें बढ़ रही हैं -WHO, ILO काम से जुड़ी समस्याओं से भारतीय श्रमिकों में आत्महत्या की दर दो दशकों में 2.4 गुना बढ़ी
अर्नेंस्ट यंग की 26 साल की युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की मौत देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई. खासकर इसलिए क्योंकि ये मृत्यु जाहिर कर रही है कि लंबे वर्किंग आवर्स कितने जानलेवा साबित हो रहे हैं. अन्ना अपनी पहली नौकरी में मात्र 4 महीने ही रहीं. कथित तौर पर उनकी मृत्यु अत्यधिक काम के कारण हुई. आंकड़ें कहते हैं कि दो लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत जरूरत से ज्यादा काम करने के कारण बीमारियां पाल लेने से होती है.
मैकिन्से की पिछले साल की एक रिपोर्ट कहती है कि कि भारत में आफिसों में काम करने वालों के बीच बर्नआउट के लक्षण सबसे ज्यादा पाए जाते हैं. इसकी दर करीब 60% बताई. इस सर्वेक्षण में उसने 30 देशों को शामिल किया. 2019 की एक रिपोर्ट में पाया गया कि मुंबई दुनिया का सबसे मेहनती शहर था. दिल्ली इस मामले में चौथे नंबर पर था.
2018 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारतीयों को दुनिया में सबसे अधिक छुट्टियों से वंचित किया गया. यानि जो छुट्टियां उनके पास होती हैं, उसे भी वो आफिस और काम के दबाव में नहीं ले पाते.
2021 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने लंबे समय तक काम करने के असर पर एक अध्ययन प्रकाशित किया, जिसमें कहा गया कि सप्ताह में 55 घंटे या उससे अधिक काम करना, 35-40 घंटे काम करने की तुलना में बहुत घातक होता है. इससे समय से पहले मृत्यु का जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है.
भारत में जरूरत से ज्यादा काम करने के कारण होने वाली बीमारियों से सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं.
49 घंटे का सप्ताह
ILO के आंकड़े कहते हैं कि आधे से ज़्यादा रोज़गार प्राप्त भारतीय (51.4%) हर सप्ताह 49 घंटे या उससे ज़्यादा काम करते हैं. इसके साथ वो दुनिया में दूसरे नंबर पर रहते हैं. आश्चर्यजनक रूप से भूटान (61.3%) इस मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है, भारत में साप्ताहिक औसत कार्य घंटे 46.7 के साथ दुनिया के 170 देशों में 13वें सबसे ज़्यादा हैं. ILO के आंकड़े कहते हैं कि आधे से ज़्यादा रोज़गार प्राप्त भारतीय (51.4%) हर सप्ताह 49 घंटे या उससे ज़्यादा काम करते हैं. इसके साथ वो दुनिया में दूसरे नंबर पर रहते हैं (image generated by Leonardo AI)
भारत की उच्च दबाव वाली कार्य प्रणाली के सबसे नज़दीक चीन है, जो ज़हरीली ‘996’ कार्य संस्कृति का घर है. चीन की 996′ कार्य संस्कृति का मतलब है सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, सप्ताह में छह दिन काम करना. जिसका गुणगान चीनी टेक टाइकून जैक मा ने कुछ साल पहले किया था.
लंबे समय तक काम करने के कारण होने वाली बीमारियों से मृत्यु
देश 2000 2016
भारत 1,37,551 2,01,840
चीन 1,11,227 1,60,331
जापान 13,359 9,139
अमेरिका 8285 7382
ब्रिटेन 3357 1831
जर्मनी 4450 2658
(स्रोत: आईएलओ, डब्ल्यूएचओ, एनसीआरबी) लंबे समय तक काम तनाव के स्तर और पूरे मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है. (Image generated by Leonardo AI)
लंबे वर्किंग आवर्स के कारण भारत में आत्महत्याएं
लंबे काम के घंटों के कारण अवसाद, कुंठा और निराशा की वजह से पूरी दुनिया में लोग आत्महत्या भी करते हैं, जो पिछले दो दशकों में ढाई गुना हो चुकी हैं.
2001 857 आत्महत्याएं
2008 1354
2016 1875
2022 2593
2023 2083
(स्रोत: आईएलओ, डब्ल्यूएचओ, एनसीआरबी)
संचार क्षेत्र में सबसे ज़्यादा काम
भारत के संचार सेक्टर में काम के घंटे सबसे लंबे होते हैं, ये हर हफ्ते औसतन 57.5 घंटे होते हैं. ये अंतरराष्ट्रीय श्रम कानूनों से करीब 9 घंटे ज़्यादा है. 20 सेक्टर ऐसे हैं जहां हर हफ्ते 50 घंटे से ज्यादा काम होता है. यहां तक कि प्रोफेशनल्स , साइंटिफिक और तकनीक गतिविधियों में भी 55 घंटे प्रति सप्ताह काम की डिमांड रहती है.
युवा सबसे अधिक काम करते हैं
आईएलओ के आंकड़ों से पता चलता है कि युवा कर्मचारी अपने वरिष्ठ सहकर्मियों की तुलना में अधिक घंटे काम करते हैं. 20 की उम्र तक, भारतीय कर्मचारी सप्ताह में लगभग 58 घंटे काम करते हैं. 30 के मध्य तक वे लगभग 57 घंटे काम करते हैं. जब औसत कर्मचारी उम्र में 50 के मध्य तक पहुंचते हैं तो वो औसतन 53 घंटे काम करते हैं. जो इंटरनेशनल लेबर मेंडेट के 48 घंटे से ज्यादा है.
सबसे लंबे समय तक काम करने वाले शीर्ष देश
दुनियाभर के कई देशों में कर्मचारी बहुत लंबे समय तक काम करते हैं, अक्सर मानक 40 घंटे के कार्य सप्ताह से भी अधिक हो जाते हैं
संयुक्त अरब अमीरात 52.6 घंटे
गाम्बिया 50.8 घंटे
भूटान 50.7 घंटे
लेसोथो 49.8 घंटे
कांगो 48.6 घंटे
कतर 48 घंटे
भारत 47.7 घंटे
मॉरिटानिया 47.5 घंटे
लाइबेरिया 47.2 घंटे
बांग्लादेश 46.9 घंटे
(स्रोत: आईएलओ, डब्ल्यूएचओ, एनसीआरबी)
मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर होता है
लंबे समय तक काम तनाव के स्तर और पूरे मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है.
अवसाद और चिंता का बढ़ना- अध्ययनों से पता चलता है कि लंबे समय तक काम करने से अवसाद और चिंता बढ़ जाती है. एक मेटा-विश्लेषण कहता है प्रति सप्ताह 50 घंटे से अधिक काम करने से अवसादग्रस्त लक्षणों का जोखिम काफी बढ़ जाता है.
तनाव और बर्नआउट -लंबे समय तक काम करने से तनाव का स्तर बढ़ जाता है. शोध से पता चला है कि प्रति सप्ताह 40 घंटे से अधिक काम करने वाले कर्मचारियों को मनोवैज्ञानिक तनाव में वृद्धि का अनुभव होता है, जिससे बर्नआउट और थकावट होती है.
पूरी सेहत पर असर – काम के घंटों में वृद्धि से श्रमिकों का समग्र स्वास्थ्य खराब होता है. निजी जीवन और खुद की देखभाल के लिए बहुत कम समय बचता है, जिससे अकेलेपन और नाखुशी की भावनाएं बढ़ सकती हैं.
हृदय रोग की बीमारियां – अक्सर हृदय संबंधी बीमारियां बढ़ जाती है. लंबे समय तक काम करने के घंटों को उच्च रक्तचाप और अन्य पुरानी बीमारियों के बढ़ते जोखिम से जोड़ा गया है.
कौन सी बीमारियों का खतरा सबसे ज्यादा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) इसे लेकर रिपोर्ट्स दी हैं. जो बताती हैं कि लंबे काम के घंटों के बाद कई घातक बीमारियां घेर लेती हैं.
हृदय संबंधी बीमारियां – लंबे समय तक काम करने के घंटों से इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक का जोखिम अधिक होता है. 2016 में, यह अनुमान लगाया गया था कि लंबे समय तक काम करने के घंटों के कारण पैदा हुई स्थितियों से दुनियाभर में 745,000 मौतें हुईं, जो 2000 से 29% की बढोतरी दिखाता है. प्रति सप्ताह 55 घंटे या उससे अधिक काम करने से स्ट्रोक का 35% अधिक जोखिम हो जाता है. प्रति सप्ताह 35-40 घंटे काम करने वालों की तुलना में इस्केमिक हृदय रोग से मरने का 17% अधिक जोखिम होता है.
मधुमेह यानि डायबिटीज – शोध से पता चलता है कि प्रति सप्ताह 52 घंटे से अधिक काम करने वाले व्यक्तियों में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का 95% अधिक जोखिम होता है. दुनियाभर में डायबिटीज के लगातार बढ़ने की ये सबसे बड़ी वजह है.
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे – लंबे समय तक काम करने से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विकार, जैसे अवसाद और चिंता बढ़ती है. अध्ययनों से पता चला है कि काम के घंटों में वृद्धि से व्यावसायिक तनाव का उच्च स्तर होता है, जिससे बर्नआउट और अवसादग्रस्तता के लक्षण होते हैं. नौकरी में बर्नआउट हो सकता है, जो मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट से जुड़ जाता है.
Tags: Construction work, Daily Wage Workers, Labour Law, Labour reforms, Migrant Workers, WHO GuidelineFIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 12:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed