हाइलाइट्स केन्या की हाथियों की एक सफारी में लंबे समय तक उन पर शोध किया गया इसमें एलिफेंट वॉयस नामक मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया इस शोध से जाहिर हो गया कि हाथी एक दूसरे को नाम लेकर बुलाते हैं
हाथियों में कितनी बुद्धि होती है, वो अपने साथियों को कैसे पहचानते हैं और उनसे कैसे संवाद करते हैं, इसे लेकर केन्या में हाथियों के अभयारण्य में एक शोध किया गया, जिसमें पता चला कि कैसे ये विशाल स्तनधारी जीव एक-दूसरे को अलग-अलग नामों से पुकारकर संबोधित करते हैं.
अल जजीरा में इस संबंध में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, जो नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन मैगजीन के हवाले से दी गई है. इसके अनुसार, केन्या में अफ्रीकी सवाना हाथियों का निरीक्षण किया गया. उनकी आवाज सुनी गई. इसके लिए एलिफेंट वॉयस नामक मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर का उपयोग किया गया, जिसमें हाथियों के दो झुंडों के बीच की आवाजों का विश्लेषण किया गया.
ये शोध साम्बुरू नेशनल रिजर्व और एम्बोसेली नेशनल पार्क में 04 साल तक चला, जिसमें 14 महीने का फील्डवर्क शामिल था, जिसमें हाथियों को ट्रैक किया गया. उन पर नजर रखी गई. उनकी “कॉल” रिकॉर्ड की गई. प्रयोग में अफ्रीकी हाथियों की करीब 469 अनोखी कॉल या “रंबल” रिकॉर्ड की गईं.
हाथी काफी ज्यादा सामाजिक प्राणी है
ये तो लंबे समय से मालूम है कि हाथी काफी ज्यादा सामाजिक प्राणी है. केन्या अध्ययन में शामिल संस्थानों में एक कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के बिहेवियर इकोलॉजिस्ट जॉर्ज विटमीयर के अनुसार, “हाथियों का सामाजिक नेटवर्क अविश्वसनीय रूप से समृद्ध, अविश्वसनीय रूप से सूक्ष्म और कई तरह के संबंधों, प्राथमिकताओं और उनकी गतिविधियों की संरचना के साथ काफी जटिल है. हाथी जानवरों में काफी सामाजिक प्राणी होता है. (courtesy save the elephants)
मादा ने जब गड़गड़ाहट की तो दूर खड़े हाथी ने जवाब दिया
ये देखा गया कि हाथियों के झुंड की मादा नेता, हाथियों के समूह के भीतर से एक आवाज़ निकालती थीं, जो गड़गड़ाहट जैसी लगती थी. पूरा झुंड जवाब देता था. हालांकि, कुछ ही देर बाद वही मादा हाथी फिर से ऐसी ही गड़गड़ाहट करती. समूह से दूर खड़ा केवल एक हाथी ही प्रतिक्रिया देता. फिर जल्दी समूह में वापस आ जाता.
शोधकर्ताओं ने इससे निष्कर्ष निकाला कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ये आवाज मादा हाथी ने दूसरे हाथी के लिए उसका नाम लेकर निकाली थी. इसी वजह से केवल उसने ही इस पर प्रतिक्रिया दी. मतलब हाथी आपस में नाम लेकर ही एक दूसरे को संबोधित करते हैं.
इस दहाड़ में खास बात होती है
लगातार नजर रखने पर पता चला कि हाथियों की दहाड़ में एक खास पहचान हो सकती है जिसे हर हाथी पहचान सकता है. माना जाता है कि ये अनोखी आवाज़ें इंसानों द्वारा एक-दूसरे को पहचानने के तरीके के समान हैं. हाथियों की दहाड़ अपने हर साथी के लिए अलग अलग होती है. इसकी वजह ये है कि वो इस खास दहाड़ के जरिए दूसरे का नाम पुकारते हैं. (courtesy save the elephants)
हाथियों की आवाज़ें कैसे रिकॉर्ड की गईं?
मनुष्य हाथियों की तेज़ तुरही की आवाज़ से परिचित हैं, कुछ हाथियों की आवाज़ें इन्फ्रासोनिक होती हैं, जिसका अर्थ है कि वे मनुष्यों द्वारा सुनी जाने वाली आवृत्ति से बहुत कम आवृत्ति का उपयोग करते हैं. इसलिए गड़गड़ाहट को रिकॉर्ड करने और उसका विश्लेषण करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया गया. “वे स्वर रज्जु का उपयोग कर रहे हैं. वे ये ध्वनियाँ उत्पन्न कर रहे हैं, लेकिन उन ध्वनियों की संरचना हमारी आवाज़ से बहुत अलग है.
विशेष हाथियों के संदर्भ में इस्तेमाल किए जा रहे विशिष्ट, अनोखे नामों की पहचान करने के लिए विशेषज्ञ एआई लर्निंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया, जो कि गड़गड़ाहट के दौरान काम कर रहे थे. इस सॉफ्टवेयर का उपयोग करके, शोधकर्ता यह निर्धारित करने में सक्षम थे कि लगभग एक तिहाई (27.5 प्रतिशत) “कॉल” में हाथियों के बीच गड़गड़ाहट में नामों का इस्तेमाल किया जा रहा था.गड़गड़ाहट के अन्य भागों की पहचान करने और उन्हें समझने के लिए अतिरिक्त शोध की आवश्यकता होगी.
परीक्षण के दौरान, शोधकर्ताओं ने स्पीकर से एक ध्वनि बजाई, जिसके बारे में उनका मानना था कि वह एक हाथी का नाम है. जब भी ये होता था तब हाथी सिर उठाकर कान फड़फड़ाकर और स्पीकर की ओर चलते हुए बड़बड़ाकर प्रतिक्रिया देता था.
क्या अन्य जानवर भी ऐसी ही संकेत आवाज का इस्तेमाल करते हैं
बिल्कुल नहीं.डॉल्फ़िन और तोते एक-दूसरे को संबोधित करने के लिए अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों की आवाज़ की नकल करते हैं, हाथी पहले गैर-मानव जानवर हैं जो नकल पर निर्भर हुए बिना अनोखे नामों का उपयोग करते हैं.
पिछले महीने नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका द्वारा प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट में, शोधकर्ताओं ने शुक्राणु व्हेल द्वारा की गई हज़ारों रिकॉर्ड की गई कॉलों का विश्लेषण किया, जिससे उनकी “क्लिक” ध्वनियों के तारतम्यता से एक “ध्वन्यात्मक वर्णमाला” का पता चला. ये खोज बताती है कि व्हेल पहले से कहीं ज़्यादा जटिल संचार प्रणालियों का उपयोग करते हैं, जिन्हें “कोडा” के तौर पर जाना जाता है.
शुक्राणु व्हेल इकोलोकेशन नामक एक प्रक्रिया का उपयोग करके क्लिकिंग ध्वनियां बनाती हैं, जिसके द्वारा ध्वनि तरंगें दूरी पर स्थित वस्तुओं से टकराती हैं, और व्हेल के पास वापस आती हैं ताकि वह यह पता लगा सके कि वस्तु कहाँ है. व्हेल शिकार करने और गहरे समुद्र में नेविगेट करने के लिए इकोलोकेशन का उपयोग करती हैं. इसी तरह चमगादड़ रात में उड़ने के लिए एक खास फ्रीक्वेंसी निकालते हैं, जो जब आसपास की चीजों से टकराकर लौटती हैं तो उनको पता लग जाता है कि उनके रास्ते में कहां बाधाएं हैं.
Tags: Baby Elephant, Terror of elephants, Wild animalsFIRST PUBLISHED : June 24, 2024, 11:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed