2 बार लोकसभा चुनाव हारे बीआर अंबेडकर क्या इसके लिए कांग्रेस थी जिम्मेदार

BR Ambedkar Lost Lok Sabha Elections Twice: यह बात सही है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर को दो बार लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. दोनों बार उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने हराया था. लेकिन यह आधा सच और आधा फसाना है. उस समय देश में कांग्रेस पार्टी का खुमार था और जवाहरलाल नेहरू जननायक थे. उस पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ना एक कठिन काम था.

2 बार लोकसभा चुनाव हारे बीआर अंबेडकर क्या इसके लिए कांग्रेस थी जिम्मेदार
BR Ambedkar Lost Lok Sabha Elections Twice:  कांग्रेस ने राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भीमराव अंबेडकर के बारे में टिप्पणी के लिए उनसे माफी की मांग की. विपक्षी दल ने आरोप लगाया कि अमित शाह की यह टिप्पणी दर्शाती है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नेताओं में बीआर अंबेडकर को लेकर काफी नफरत है. अमित शाह ने कहा, “अभी एक फैशन हो गया है-अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.” दरअसल संविधान के 75 साल पूरे होने पर राज्यसभा में दो दिवसीय चर्चा हो रही थी. इसके समापन पर अपने संबोधन में मंगलवार को अमित शाह ने कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए यह बात कही. लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कई कांग्रेस नेताओं ने उनकी इस टिप्पणी पर उन पर उलटा निशाना साध दिया और उनसे माफी मांगने की मांग की. बुधवार को कांग्रेस के हंगामे के जवाब में भाजपा के किरण रिजिजू ने उन पर निशाना साधा. रिजिजू ने कहा कि वो कांग्रेस ही थी जिसकी वजह से बीआर अंबेडकर को दो बार लोकसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था. ये भी पढ़ें- कभी सब्जी बेची तो कभी बाहुबली बने, रुतबा ऐसा कि 2 बार डिप्टी सीएम रहे, OBC का वह चेहरा जिसके गुरु हैं शरद पवार अपनी राजनीतिक पार्टी से लड़े थे अंबेडकर यह बात सही है कि देश के संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर को दो बार लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था. दोनों बार उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने हराया था. लेकिन इस सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि  जिस तरह आज बीजेपी का टिकट जीत की गारंटी है, वैसे ही आज से 72 साल पहले कांग्रेस पार्टी लगभग अपराजेय थी. देश में पहले लोकसभा चुनाव 1952 में संपन्न हुए थे और जवाहर लाल नेहरू जननायक थे. उस समय देश में जवाहर लाल नेहरू की लहर थी. उस चुनाव में जिसे कांग्रेस पार्टी से टिकट मिल गया उसकी नैया पार हो गई. इस चुनाव में संविधान निर्माताओं में से एक डॉ. भीमराव अंबेडकर भी खड़े हुए थे. पहले लोकसभा चुनाव में तब अंबेडकर शेड्यूल्‍ड कास्‍ट फेडरेशन पार्टी से लड़े थे. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.  ये भी पढ़ें- Explainer: एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल को मंजूरी मिलने के बाद क्या बदलेगा? समझें पूरा प्रोसेस कांग्रेस के काजरोलकर से हार गए अंबेडकर लेकिन इस चुनाव में सबसे हैरानी वाला परिणाम डॉ. भीमराव अंबेडकर की हार रही थी. उनकी पहचान देश भर में अनुसूचित जातियों के कद्दावर नेता के तौर पर थी. लेकिन बंबई में उनके निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस ने तब अंबेडकर के सामने उनके पीए नारायण एस काजरोलकर को खड़ा किया था. वह भी बैकवर्ड क्लास से थे. इसके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा से भी एक-एक प्रत्याशी था. नारायण काजरोलकर दूध का कारोबार करने वाले एक नौसिखिए नेता थे. लेकिन नेहरू की लहर इतनी तगड़ी थी कि नारायण काजरोलकर 15 हजार वोटों से जीते थे. अंबेडकर चौथे स्थान पर रहे थे.  ये भी पढ़ें- भारत के पहले मुस्लिम CJI जो 2 बार रहे कार्यवाहक राष्ट्रपति, पूर्व पीएम थे उनके स्टूडेंट नेहरू ने किया था उनके खिलाफ चुनाव प्रचार देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद जब जवाहरलाल नेहरू की अगुआई में पहली अंतरिम सरकार बनी थी तो अंबेडकर इसमें कानून मंत्री थे. अंबेडकर अनुसूचित जातियों को लेकर कांग्रेस की नीतियों से खुश नहीं थे. हिंदू कोड बिल पर कांग्रेस से मतभेद के चलते 27 सितंबर, 1951 को उन्होंने अंतरिम सरकार से त्यागपत्र दे दिया था. इसके बाद अंबेडकर अनुसूचित जातियों को संगठित करने में जुट गए. उन्होंने शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन नामक संगठन बनाया था. उनके इस्तीफे के लगभग एक साल बाद देश में पहले आम चुनाव हुए. अंबेडकर ने भी इसमें भाग लेने का फैसला किया. उनकी पार्टी ने देशभर में 35 उम्मीदवार खड़े किए, लेकिन केवल दो को ही जीत नसीब हुई. नेहरू ने कांग्रेस उम्मीदवार काजोलकर के लिए चुनावी सभाएं आयोजित करवाई थीं. वह दो बार इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी के प्रचार के लिए पहुंचे थे. ये भी पढ़ें- कौन थीं पद्मजा नायडू, क्या उनसे वाकई शादी करना चाहते थे जवाहर लाल नेहरू उपचुनाव में भी हार गए अंबेडकर लेकिन अंबेडकर की पारजय का सिलसिला यहीं नहीं थमा. 1954 में बंडारा लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में अंबेडकर ने एक बार फिर अपनी किस्मत आजमायी. लेकिन इस बार भी कांग्रेस के उम्मीदवार ने अंबेडकर को हराकर उनका सपना तोड़ दिया. इस बार वह महज 8 हजार वोटों से हार गए.  अंबेडकर अपनी हार से बेहद निराश हुए थे. कांग्रेस का कहना था कि अंबेडकर सोशल पार्टी के साथ थे इसलिए उसके पास उनका विरोध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. फिर यह लोकतंत्र का तकाजा भी था.  ये भी पढ़ें- वो निजाम जो फ्रेंच फैशन के थे दीवाने, उनके इस्तेमाल मोजे बेचकर करोड़पति बन गया नौकर  उसके बाद रहने लगे थे बीमार पहले लोकसभा चुनाव में हार के बाद अंबेडकर बीमार रहने लगे थे. डॉ. अंबेडकर अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे. यहां तक कि उन्होंने पहले से ही लिस्ट तैयार कर ली थी कि संसद पहुंचने के बाद उन्हें कौन कौन से काम पहले निपटाने हैं. लगातार दो बार हार कर डॉ. अंबेडकर बुरी तरह से टूट चुके थे. उन्हें गहरा सदमा लगा था और इसकी वजह से वह काफी बीमार पड़ गए. फिर इसी बीमारी की वजह से उनका 6 दिसंबर 1956 को निधन हो गया. Tags: Amit shah, Dr. Bhim Rao Ambedkar, Jawaharlal Nehru, Loksabha Elections, Rahul gandhiFIRST PUBLISHED : December 18, 2024, 15:27 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed