Birthday Nehru : नेहरू युग में ही कौन थे उनके 03 प्रबल आलोचक नेता

जिस समय जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे, तब वह देश के सबसे लोकप्रिय नेता थे. कांग्रेस को उनके नाम पर वोट मिलते थे. आजादी के बाद से 1964 में अपने निधन तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे. मुद्दों पर उनकी आलोचना करना तब आसान काम नहीं था लेकिन तीन नेता ऐसे थे, जिन्होंने उस दौर में ये काम किया औऱ ये भी जाहिर किया कि लोकतंत्र में विपक्ष या विरोधी आवाज का होना कितना जरूरी होता है.

Birthday Nehru : नेहरू युग में ही कौन थे उनके 03 प्रबल आलोचक नेता
हाइलाइट्सनेहरू युग में वो 03 नेता जो उनके प्रबल विरोधी थे और जोरदार वक्ताये तीन नेता थे मुखर्जी, कृपलानी और राममनोहर लोहियानेहरू के बारे में क्या कहते थे ये तीनों नेता जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे तो उस दौर में तीन ऐसे नेता थे, जो उनके विरोधी थे और उनके प्रबल आलोचक भी. नेहरू के जन्मदिन के अवसर पर वह निश्चित तौर पर तमाम तरीके से याद किए जाएंगे. जिस समय वह देश के पहले प्रधानमंत्री थे, तब वह बहुत लोकप्रिय थे. जनता उन्हें बहुत पसंद करती थी. ऐसे समय में उनका विरोधी बनना या उनके खिलाफ बोलना आसान नहीं था. इन तीन में दो नेता ऐसे थे जो आजादी तक या उसके बाद कांग्रेस में ही थे. उसके बाद इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाई. ये तीन नेता थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी, आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी और राममनोहर लोहिया. हालांकि 1923 में मुखर्जी ने भी अपना करियर कांग्रेस से ही शुरू किया था लेकिन एक साल बाद ही उन्होंने इससे इस्तीफा दे दिया. वहीं कृपलानी और लोहिया ने कांग्रेस के साथ लंबी पारी खेली थी. महात्मा गांधी के ये दोनों नेता बहुत प्रिय थे लेकिन नेहरू युग में उन्होंने विरोध का पचरम थाम लिया, जो यकीयन उस दौर में आसान नहीं था. तीनों नेता बहुत अच्छे वक्ता भी थे. हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व संपादक और पत्रकार दुर्गादास ने अपनी किताब फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर में इसके बारे में विस्तार से लिखा है. वह अपनी किताब में लिखते हैं, मुखर्जी उस बड़े दल के प्रवक्ता थे, जो नेहरू की नीतियों के खिलाफ था. वाककला और चातुर्य में उन जैसा प्रतिभाशाली व्यक्ति नहीं था. कृपलानी हमेशा विरोधी और एकाकी कार्यकर्ता रहे थे. वह अधिक असरदार हो सकते थे यदि किसी विरोधी दल का नेतृत्व करते. लोहिया में धिक्कारने की प्रतिभा थी. लोहिया हर संभव अवसर पर नेहरू पर निर्ममता से आघात करते थे-बार-बार आऱोप लगाते थे कि प्रधानमंत्री की हैसियत से नेहरू आलीशान तरीके से रह कर और सहायकों तथा अंगरक्षकों की पूरी फौज नियुक्त करके अपने ऊपर व्यक्तिगत तौर पर 25,000 रुपए प्रतिदिन व्यय कर रहे थे. श्रीमती गांधी को उन्होंने गूंगी गुड़िया का नाम दिया था. दुर्गादास ने आगे लिखा, मुखर्जी मुझसे कहा करते थे कि कांग्रेस के स्थान पर कोई भी पार्टी केवल सफलता से तभी खड़ी की जा सकती है जब नेहरू की प्रतिमा को खंडित कर दिया जाए. मुखर्जी का देहांत 1953 में हो गया. , जब वो कैद थे और इस तरह एक प्रतिभाशाली और होनहार राजनीतिक जीवन का अंत हो गया. कृपलानी का भी यही मत था कि देश में जो बुराइयां थीं, वो ऊपर के स्तर से ही उपजी थीं और सत्ता तथा सरकारी प्रश्रय के दुरुपयोग के मामले में नेहरू मार्गदर्शक थे. लोहिया का विश्वास था कि नेहरू परिवार का राष्ट्र से एकात्म होना ना केवल जनतंत्रात्मक सिद्धांतो के खिलाफ था बल्कि हानिकारक भी और ये भी कि नेहरू पाश्चात्य सांस्कृतिक मान्यताओं को स्वीकार करते थे. किताब में दुर्गादास लिखते हैं, लोहिया ने कई बार मुझे बताया कि उत्तरी इलाके, खासकर यूपी पिछड़े हुए इसलिए रहे थे कि प्रधानमंत्री हमेशा उसी क्षेत्र से चुना जाता था. इस कारण होता ये था कि प्रतिक्रियावश, आर्थिक विकास औऱ मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग देने के मामलों में उत्तर भारतीय प्रधानमंत्री दक्षिण को खुश करने की कोशिश करते थे. श्यामा प्रसाद मुखर्जी  डॉ. मुखर्जी ने लियाकत अली ख़ान के साथ दिल्ली समझौते के मुद्दे पर 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया. मुखर्जी जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में ‘भारतीय जनसंघ’ की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने. सन 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ ने संसद की तीन सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक सीट पर डॉ. मुखर्जी जीतकर आए. उन्होंने संसद के भीतर ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी’ बनायी, जिसमें 32 सदस्य लोक सभा तथा 10 सदस्य राज्य सभा से थे, हालांकि अध्यक्ष द्वारा एक विपक्षी पार्टी के रूप में इसे मान्यता नहीं मिली. जे बी कृपलानी  वह गांधीजी के करीबी और विश्वासपात्र थे. करियर टीचर के तौर पर शुरू किया था. 1935 से 1945 तक उन्होंने कांग्रेस के महासचिव के रूप में काम किया. वर्ष 1946 में मेरठ में कांग्रेस अधिवेशन में वह पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. कई सवालों पर जवाहरलाल नेहरू से मतभेद हो जाने कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी. किसान मज़दूर प्रजा पार्टी बनाकर विपक्ष में चले गए. वह लोकसभा के सदस्य भी रहे. जे. बी. कृपलानी ने सभी आंदोलनों में भाग लिया था. जेल की सज़ाएं भोगीं. देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले आचार्य कृपलानी जी का 19 मार्च, 1982 में निधन हुआ. राम मनोहर लोहिया राममनोहर लोहिया गांधीजी के करीबी थे. उन्हें गांधीजी बहुत पसंद करते थे. वह गांधीजी प्रभावित थे लेकिन गांधीजी की हत्या के बाद उन्होंने अपने रास्ते कांग्रेस से अलग कर लिये. वह नेहरू की नीतियों के प्रबल विरोधी थे. वह प्रखर चिंतक और समाजवादी राजनेता थे. देश की राजनीति में आजादी के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख़ बदला, जिनमें राममनोहर लोहिया सबसे ऊपर थे. अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों के कारण डॉ. लोहिया ने अपार सम्‍मान हासिल किया. ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी| Tags: Jawahar Lal Nehru, Jawaharlal Nehru, Jawaharlal Nehru's birth anniversary, Pandit Jawaharlal Nehru, PM NehruFIRST PUBLISHED : November 14, 2022, 11:26 IST