भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर में कब किस पार्टी की रही सरकार जानें सब कुछ

Election history of Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. साल 2018 में बीजेपी ने पीडीपी की महबूबा मुफ्ती से अपना समर्थन वापस ले लिया था. तब से वहां पर कोई सरकार नहीं है. यहां तीन चरणों में मतदान होगा. उसके बाद जल्द ही इस राज्य को नई सरकार मिल जाएगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर में कब-कब किसकी सरकार रही.

भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर में कब किस पार्टी की रही सरकार जानें सब कुछ
हाइलाइट्स जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के लिए पहले चुनाव सितंबर-अक्टूबर 1951 में हुए. शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसके बाद से जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर समय नेशनल कांफ्रेंस का शासन रहा. Election history of Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर ऐसी रियासत थी, जिसने भारत के राजनीतिक एकीकरण के समय अपने भविष्य के बारे में फैसला लेने में देरी की थी. राज्य के पश्चिमी जिलों में हुए विद्रोह और पाकिस्तान समर्थित नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस से किए गए हमलों ने तत्कालीन महाराजा हरि सिंह को फैसला लेने पर मजबूर किया. आखिरकार महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय किया. इसके बदले भारत ने पाकिस्तान समर्थित सेनाओं से युद्ध करने के लिए अपनी सेनाओं को कश्मीर भेजा. उस युद्ध में पाकिस्तान ने गिलगित बाल्टिस्तान पर कब्जा कर लिया, जिसे पाकिस्तान के नियंत्रण वाला कश्मीर (POK) कहा जाता है. जबकि जो इलाका भारत के पास रहा उसे जम्मू-कश्मीर कहा जाता है. अब्दुल्ला परिवार जम्मू-कश्मीर का प्रमुख राजनीतिक परिवार हैं. जिनकी तीन पीढ़ियों में कम से कम चार लोग मुख्यमंत्री रहे हैं. शेख अब्दुल्ला ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) की स्थापना की थी.  अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता उमर अब्दुल्ला भी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. जबकि उनके पिता फारूक अब्दुल्ला 2009 और 2014 के बीच यूपीए-2 सरकार में केंद्रीय मंत्री होने के अलावा कई बार राज्य की कमान संभाल चुके हैं. उमर के दादा शेख अब्दुल्ला, जिन्हें लोकप्रिय रूप से ‘शेर-ए-कश्मीर’ (कश्मीर का शेर) कहा जाता है, उन्होंने कश्मीर के प्रधानमंत्री और बाद में मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के लिए चुनाव सितंबर-अक्टूबर 1951 में हुए. शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की. उसके बाद से जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर समय नेशनल कांफ्रेंस का शासन रहा. इस राज्य में कई बार राष्ट्रपति शासन भी रहा. इसके अलावा कई मौकों पर गठबंधन सरकारें भी इस राज्य ने देखी हैं. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने भी कई मर्तबा शासन किया. लेकिन उन्हें दूसरी पार्टियों से सहयोग लेना पड़ा. पहले बात 1951 में हुए चुनाव की. 1951 में हुए पहले चुनाव जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल होने के बाद 15 अक्टूबर 1947 से लेकर 5 मार्च, 1948 तक मेहरचंद महाजन राज्य के प्रधानमंत्री रहे. उस समय इस राज्य के प्रमुख को प्रधानमंत्री ही कहा जाता था. मेहरचंद महाजन के हटने के बाद शेख मोहम्मद अब्दुल्ला नए प्रधानमंत्री बने. जम्मू-कश्मीर में पहली बार अगस्त-सितंबर 1951 में पहली बार संविधान सभा के लिए चुनाव हुए. शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की. 73 सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए. इस तरह शेख अब्दुल्ला राज्य के पहले चुने हुए प्रधानमंत्री बने. कुछ समय बाद शेख अब्दुल्ला को पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया. वह लगभग दस सालों तक सलाखों के पीछे रहे. उनके स्थान पर बख्शी गुलाम मोहम्मद ने शेख अब्दुल्ला के विरोधी नेताओं की मदद से राज्य की सत्ता संभाली. वह नौ अगस्त, 1953 तक प्रधानमंत्री रहे. ये भी पढ़ें- कश्मीर में वंशवादी राजनीति का अगला दौर, नेताओं के तीसरी और चौथी पीढ़ी के बेटे-बेटियां लड़ रहे चुनाव 1957 में गुलाम मोहम्मद बने पीएम अगले चुनाव 1957 में हुए. इस समय तक जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा विधान सभा में तब्दील हो गई थी. इस चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस ने 75 में से 68 सीटों पर जीत दर्ज की. प्रजा परिषद ने पांच सीटों पर कब्जा जमाया. जबकि एक-एक सीट हरिजन मंडल और निर्दलीय प्रत्याशी ने जीती. बख्शी गुलाम मोहम्मद ने एक बार फिर राज्य के प्रधानमंत्री बने. शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थक नेताओं ने जनमत संग्रह मोर्चा बनाया और किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया. यह स्थिति 1975 तक रही, जब तक शेख अब्दुल्ला और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच समझौता नहीं हो गया.  1962 में एनसी ने फिर बनाई सरकार साल 1962 में जम्मू-कश्मीर में तीसरी बार चुनाव हुए जिनमें नेशनल कॉन्फ़्रेंस को 75 में से 70 सीटें मिलीं. इस बार प्रजा परिषद को तीन और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं. 1963 में बख्शी गुलाम मोहम्मद को अपना पद छोड़ना पड़ा. क्योंकि हजरत बल की मस्जिद से पैगंबर मोहम्मद साहब की निशानी गायब हो गए थी. गुलाम मोहम्मद की जगह 12 अक्टूबर, 1963 को ख्वाजा शम्सुद्दीन को राज्य का नया प्रधानमंत्री बनाया गया. 29 फरवरी, 1964 को ख्वाजा शम्सुद्दीन को भी पद से हटा दिया गया. क्योंकि एनसी के काफी नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल गए. उनकी जगह जीएम सादिक नए प्रधानमंत्री बनाए गए. मार्च 1965 को प्रधानमंत्री का पद बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया गया. जीएम सादिक जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने. ये भी पढ़ें- Explainer: भारत, चीन और रूस मिलकर चांद पर क्यों बना रहे बिजलीघर, इससे करेंगे क्या काम 1967 में सादिक फिर बने मुख्यमंत्री साल 1967 में जब अगले चुनाव हुए तो जीएम सादिक के नेतृत्व में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल किया. कांग्रेस पार्टी को 61 सीटें मिलीं, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को आठ और भारतीय जनसंघ को तीन सीटें मिलीं. तीन सीटों पर उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. 12 दिसंबर, 1971 को जीएम सादिक का निधन हो गया. उनकी जगह सैयद मीर कासिम राज्य के नए मुख्यमंत्री बने.  1972 में फिर कांग्रेस की सरकार जम्मू-कश्मीर में पांचवीं बार  विधानसभा चुनाव 1972 में हुए. इस बार कांग्रेस को 58, भारतीय जनसंघ को तीन, जमाते इस्लामी को पांच और निर्दलीय उम्मीदवारों को नौ सीटें मिलीं. सैयद मीर कासिम ने एक बार फिर राज्य की बागडोर संभाली. जमाते इस्लामी ने पहली बार चुनाव में भाग लिया था. जमाते इस्लामी के जीतने वाले नेताओं में सैयद अली शाह जिलानी भी थे, जो मौजूदा समय में कट्टरपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस के मुखिया हैं. सैयद मीर कासिम 25 फरवरी, 1975 तक सीएम रहे. इंदिरा-शेख अब्दुल्ला समझौते के बाद उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ी. शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन कांग्रेस ने शेख अब्दुल्ला को दिया समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद 26 मार्च, 1977 से 9 जुलाई, 1977 तक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन रहा. 1977 में शेख अब्दुल्ला की वापसी साल 1977 में हुए चुनावों में शेख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने धमाकेदार वापसी की. देश में इंदिरा विरोधी लहर थी. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 76 में से 47 सीटें हासिल हुईं. कांग्रेस को केवल ग्यारह सीटें मिल पाईं. जनता पार्टी को 13, जमाते इस्लामी को एक और जनसंघ से बागी हुए निर्दलीय उम्मीदवारों को चार सीटें मिलीं. शेख अब्दुल्ला सरकार ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्य के संविधान में संशोधन कर विधानसभा की अवधि पांच से बढ़ाकर छह साल कर दी. 1982 में शेख अब्दुल्ला का निधन हो गया. उनके स्थान पर उनके बेटे  फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने. ये भी पढ़ें- वो देश जो 80 पैसे में बनाकर देता था शर्ट, भारत में बिकती थीं 3000 रुपये में, अब क्यों वो नहीं कर पा रहा ऐसा 1983 में फारूक ने दिलाई एनसी को जीत 1983 में हुए चुनावों में फारूक अब्दुल्ला ने नेशनल कॉन्फ्रेंस का नेतृत्व किया. पार्टी ने 46 सीटें जीतकर सरकार बनाई. कांग्रेस को 26 सीटें मिलीं. लेकिन एक ही साल बाद फारूक अब्दुल्ला के बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस का एक धड़ा पार्टी से अलग हो गया. उसने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई जो 1986 तक चली. बाद में कांग्रेस ने गुलाम मोहम्मद शाह से समर्थन वापस ले लिया.छह मार्च, 1986 से सात नवंबर 1986 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा.  1987 में एनसी-कांग्रेस गठबंधन की जीत 1987 का चुनाव नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर लड़ा. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 40, कांग्रेस को 26, भारतीय जनता पार्टी को दो और निर्दलीयों को आठ सीटें मिलीं. फारूक अब्दुल्ला फिर मुख्यमंत्री बने. इन चुनावों में हुई कथित अनियमितताएं राज्य में चरमपंथ के पनपने का कारण बनीं. 1990 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया. 1996 में एनसी को बहुमत चुनाव आयोग ने 1995 में जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए जाने की केंद्र सरकार की सिफारिश को ठुकरा दिया. नतीजा यह हुआ कि 1996 में 87 सीटों के लिए चुनाव हुए. इसमें एनसी ने अपने बल पर 57 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया. भाजपा को आठ, कांग्रेस को सात, जनता दल को पांच, बहुजन समाज पार्टी को चार, पैंथर्स पार्टी को एक, जम्मू-कश्मीर आवामी लीग को एक और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं. फारूक अब्दुल्ला फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने. राज्य ने एक बार फिर राष्ट्रपति शासन देखा. इस बार 18 अक्टूबर 2002 से दो नवंबर 2002 तक राष्ट्रपति शासन रहा.  ये भी पढ़ें- Explainer: कौन सी हैं अंडमान की वो जनजातियां, जिनमें सामाजिक बदलाव को लेकर मचा है विवाद 2002 में बनी कांग्रेस-पीडीपी सरकार 2002 में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव एकदम अलग थी. इन चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस विरोधी लहर सामने आई थी. नेशनल कॉन्फ्रेंस को पिछली बार की 57 से घटकर मात्र 28 सीटें मिलीं, वहीं कांग्रेस को 20 और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को 16 सीटें मिलीं. पैंथर्स पार्टी को चार, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को दो, बसपा को एक और भाजपा को एक सीट मिली. कई निर्दलीय भी चुनाव में जीते. पीडीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई. पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस-पीडीपी में तीन-तीन साल तक सीएम बनाने का समझौता हुआ था. लेकिन जब कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने तो पीडीपी ने समर्थन वापस ले लिया. अमरनाथ भूमि विवाद के बाद हुए विरोध प्रदर्शन के कारण राज्य में फिर 11 जुलाई 2008 को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.  2008 में उमर बने मुख्यमंत्री साल 2008 में हुए चुनावों में किसी को बहुमत नहीं मिला. नेशनल कॉन्फ्रेंस 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. पीडीपी ने 21 और कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की. भाजपा को 11 और अन्य को दस सीटें मिलीं. कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनवा दिया. उन्होंने पांच जनवरी, 2009 को राज्य की बागडोर संभाली. जम्मू-कश्मीर में नया इतिहास बना. अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी राज्य की शीर्ष सत्ता पर काबिज हुई. 2014 में पीडीपी-बीजेपी सरकार जम्मू-कश्मीर में 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कोई भी दल पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सका था. पीडीपी ने 28 सीटें और बीजेपी ने 25 सीटें जीतीं. सीटों के लिहाज से पीडीपी बड़ी पार्टी थी. नेशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें ही मिली थीं. दो बड़े दलों बीजेपी-पीडीपी ने गठबंधन में सरकार बना ली. महबूबा मुफ्ती सीएम बनीं, लेकिन ये सरकार अपना कार्यकाल पूरा ही नहीं कर सकी. साल 2018 में बीजेपी ने पीडीपी से अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई. तब से अब तक वहां पर कोई भी चुनी हुई सरकार नहीं है. जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव होने जा रहा है. यहां 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्‍टूबर को तीन चरणों में चुनाव होगा.  जम्मू-कश्मीर को नई सरकार जल्द ही मिल जाएगी.     Tags: BJP, Congress, Dr Farooq Abdullah, Jammu kashmir, Jammu Kashmir Election, Jammu kashmir election 2024, Mehbooba mufti, National Conference, Omar abdullahFIRST PUBLISHED : September 11, 2024, 15:25 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed