इंसानों के साथ ही जीव-जंतुओं की भी रक्षा करता है यह समाधि स्थल जानें मान्यता

Ballia Religious places: प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने इस प्रसिद्ध स्थान के इतिहास को लेकर बताया कि उत्पत्ति दास का जन्म सन् 1900 ई0 में माघ शुक्ल पंचमी को बलिया जिले के सदर तहसील के हल्दी गाँव में हुआ था.

इंसानों के साथ ही जीव-जंतुओं की भी रक्षा करता है यह समाधि स्थल जानें मान्यता
रिपोर्ट- सनन्दन उपाध्याय बलिया: तमाम पुरातात्विक, धार्मिक, पर्यटन और समाधि स्थल के बारे में आपने जरूर सुना और देखा होगा लेकिन, आज हम जिस समाधि स्थल के बारे में बात करने जा रहे हैं उसकी मान्यता हैरान करने वाली है. बलिया का एक ऐसा समाधि स्थल जो इंसानों के साथ बेजुबानों की भी देखरेख करता है. यहां जहरीले जीव जंतुओं के जहर का भी प्रभाव नहीं है. आइए जानते हैं क्या है इस मान्यता में सच्चाई और क्या कहते हैं सेवक, ग्रामीण और इतिहासकार?… समाधि स्थल के सेवक सुदामा यादव बताते हैं कि यह उत्तपत्ति दास बाबा का समाधि स्थल है जिससे लाखों लोगों की अपार आस्था जुड़ी हुई है. यह स्थान न केवल इंसानों की सुरक्षा करता है बल्कि बेजुबानों की भी देखभाल करता है. ऐसी मान्यता है कि इस क्षेत्र में किसी भी जहरीले जीव जंतुओं का जहर प्रभावी नहीं होता है. यहां उत्पत्ति दास की जिन्दा समाधि के साथ दो शिष्यों की भी समाधि स्थल स्थापित है. इसके अलावा गाय और भैंस में होने वाली तमाम बीमारियों में भी बाबा के स्थान का भस्म (राख) लगाने से लाभ मिलता है. शरीर के उपर से निकल जाते हैं जहरीले जीव जंतु तमाम ग्रामीणों ने बताया कि उत्पत्ति दास बाबा की असीम कृपा है. यहां आज तक जहरीले जीव जंतुओं से कोई अनहोनी नहीं हुई है. बाबा के दरबार में आए हर किसी का बाबा दुःख दर्द खत्म कर देते हैं. यहां पर बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. बाबा के समाधि स्थल के आसपास जंगल जैसा है जहां लोग जमीन पर भी सो जाते हैं लेकिन कुछ होता नहीं है. ऐसी असीम कृपा बाबा की है. कुछ यूं शुरू हुई उत्पत्ति दास की कहानी प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने इस प्रसिद्ध स्थान के इतिहास को लेकर बताया कि उत्पत्ति दास का जन्म सन् 1900 ई0 में माघ शुक्ल पंचमी को बलिया जिले के सदर तहसील के हल्दी गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम गोगा कुवँर था. जनश्रुति के मुताबिक़, इन्होंने पटना फुलवरिया के किसी शाह नाम के मुस्लिम अखाड़े से फकीरी की दीक्षा ली थी. क्षत्रिय कुल के महात्मा उत्पत्ति दास बाबा संगीत और रामलीला के प्रेमी थे. वह छुआछूत भेदभाव को बिलकुल नहीं मानते थे. केवल 19 साल की उम्र में सन् 1919 ई0 में बसंत पंचमी के दिन से इन्होंने यज्ञ शुरू किया था. आखिर क्यों कम उम्र में बाबा ने ली जिन्दा समाधि इसी बीच 1922 ई0 में पूरा गांव प्लेग की चपेट में आ गया. मृत्यु के भय से लोग गांव छोड़ कर भाग रहे थे. लोगों ने बाबा से यह बात बताया तो उन्होंने कहा कि कोई गांव छोड़ कर नहीं जायेगा. गांव का गांव लील जाने वाली महामारी प्लेग से गांव को बचाने के लिए बाबा 9 मार्च 1922 ई0 को ध्यानस्थ हुए. प्लेग की विपदा तो टल गई किन्तु मात्र 22 साल की आयु में बाबा ने जिन्दा समाधि ले ली. हिंदू के साथ मुस्लिम की भी जुड़ी है गहरी आस्था इनके शरीर छोड़ने के बाद 10 मार्च 1922 ई0 को गांव के हिन्दू मुसलमान दोनों सम्प्रदायों के लोगों ने अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार बाबा के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया. मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों ने बाबा की समाधि के लिये जमीन भी दिया. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : September 3, 2024, 11:10 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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