गर्मियों में पशुओं को खिलाएं यह चारा बढ़ जाएगा दूध का उत्पादन
गर्मियों में पशुओं को खिलाएं यह चारा बढ़ जाएगा दूध का उत्पादन
कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के एडीओ एजी दिलीप कुमार सोनी बताते हैं कि ज्वार खरीफ के मौसम में चारे के रूप में प्रयोग होने वाली मुख्य फसलों में से एक है, जो दुधारू पशु गाय भैंस के लिए अच्छा हरा चारा माना गया है.
सौरभ वर्मा/रायबरेली: हमारे देश की अधिकतर आबादी खेती किसानी पर निर्भर है. क्योंकि अधिकतर आबादी गांव में निवास करती है. तो वह लोग खेती किसानी के साथ पशुपालन का भी काम करते हैं. क्योंकि पशुपालन करने वाले किसान दुग्ध उत्पादन कर अच्छा मुनाफा कमाते हैं. इसके बारे में जानकारी देते हुए रायबरेली के राजकीय पशु चिकित्सालय शिवगढ़ के पशु चिकित्सा अधीक्षक डॉ इंद्रजीत वर्मा(एमवीएससी वेटनरी) बताते हैं कि गर्मी का मौसम चल रहा है, ऐसे में दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता में कमी आ जाती है. क्योंकि इस मौसम में उन्हें हरा चारा या पौष्टिक चारा नहीं मिल पाता है. इसीलिए पशुपालक किसान इस मौसम में होने वाली ज्वार की घास जिसे चरी के नाम से भी जाना जाता है, उसे अपने पशुओं को खिलाएं, जिससे उनके दुग्ध उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होगी और उनका स्वास्थ्य भी सही रहेगा.
यह है ज्वार की उन्नत किस्म
कृषि के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के एडीओ एजी दिलीप कुमार सोनी बताते हैं कि ज्वार खरीफ के मौसम में चारे के रूप में प्रयोग होने वाली मुख्य फसलों में से एक है, जो दुधारू पशु गाय भैंस के लिए अच्छा हरा चारा माना गया है. इसकी देसी प्रजातियों में प्रोटीन की मात्रा कम होती है. तो वहीं उन्नत किस्म की प्रजाति में 7 से 9 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है. वह बताते हैं कि इसकी उन्नत किस्म में यूपी चरी 1, यूपी 2, पंत चरी 3, एचसी 308, हरियाली चरी 1711, पीसी 6, पीसी 9, कानपुरी सफेद मीठी ज्वार प्रजातियां हैं. इन प्रजातियों को हरे चारे के रूप में पशुओं को खिलाने से उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होती है.
बुवाई का यह है उपयुक्त समय
वह बताते हैं कि ज्वार की बुवाई के लिए जून जुलाई का महीना उपयुक्त समय माना जाता है. परंतु अगर आपके क्षेत्र में बारिश नहीं हो रही है, तो आप पलेवा करके इसकी बुवाई कर सकते हैं. साथ ही वह बताते हैं कि छोटी प्रजाति के बीज 25 से 30 किलोग्राम और दूसरी किस्म के बीच 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करनी चाहिए. वहीं अगर आप चाहे तो लोबिया के साथ भी 2: 1के अनुपात में इसकी बुवाई कर सकते हैं. इससे हरे चारे की पौष्टिकता व उत्पादकता बढ़ जाती है.
दो से ढाई माह में होता है तैयार
Local 18 से बात करते हुए एडीओ एजी बताते हैं कि इसकी बुवाई में उर्वरक का प्रयोग मिट्टी की गुणवत्ता के अनुरूप ही करना चाहिए. सामान्यतः 80 से 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में उपयोग करना चाहिए. साथ ही इस बात का विशेष ध्यान दें कि नाइट्रोजन की मात्रा दो तिहाई फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में डालनी चाहिए. शेष एक तिहाई नाइट्रोजन की मात्रा 30 से 35 दिनों के बाद डाल देनी चाहिए. ऐसा करने से यह हरा चारा दो से ढाई माह में पशुओं को खिलाने वाला हो जाएगा.
Tags: Hindi news, Local18FIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 11:34 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed