ये एक पेड़ तैयार कर लिया तो बना देगा करोड़पति सोने से महंगी है इसकी लकड़ी

Agarwood farming: वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक यादव बताते हैं कि इसकी लकड़ी 2 लाख रुपए से लेकर 7 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक बाजार में बिक जाती है. लोग इसके बारे में कहते हैं कि इसकी लकड़ी सोने से भी महंगी होती है.

ये एक पेड़ तैयार कर लिया तो बना देगा करोड़पति सोने से महंगी है इसकी लकड़ी
रजनीश यादव/प्रयागराज: भारत में हजारों पेड़ पौधों और वनस्पतियों की प्रजातियां पाई जाती हैं. भारत का उत्तर पूर्वी भारतीय क्षेत्र अपनी जैव विविधता की वजह से ही हॉटस्पॉट क्षेत्र माना जाता है. यह कई प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पतियों का स्थल है. उत्तर पूर्वी भारत में ही स्थित त्रिपुरा की राजधानी अगरतला का नाम ही उत्तर पूर्वी भारत में पाए जाने वाले अगरवुड के नाम से ही रख दिया गया है. अब इसी अगरवुड की खेती उत्तर प्रदेश में भी हो रही है. अगरवुड का मिलता है दोहरा लाभ अगरवुड उत्तर पूर्वी भारत का एक अच्छा स्थानिक पौधा है जो लकड़ियों के देवता के नाम से भी जाना जाता है. प्रदेश के एकमात्र पारिस्थितिकी पुनर्स्थापना केंद्र की ओर से जिले में पहली बार अगरवुड की खेती की शुरुआत कराई गई है. इसके लिए प्रयागराज में इसकी नर्सरी भी तैयार की गई है जहां से किसानों को इसका पौधा उपलब्ध कराया जाता है. इस पेड़ की राल और लकड़ी दोनों से किसान मोटी कमाई कर सकते हैं. कीमती चीजें होती हैं तैयार अगरवुड की लकड़ी से कीमती फर्नीचर तैयार होते हैं. इसका उपयोग इत्र, परफ्यूम और धूपबत्ती बनाने में भी किया जाता है. यही वजह है कि इस लकड़ी की कीमत भी काफी अधिक होती है. इस संस्थान के वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक यादव बताते हैं कि इसकी लकड़ी 2 लाख रुपए से लेकर 73 लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक बाजार में बिक जाती है. लोग इसके बारे में कहते हैं कि इसकी लकड़ी सोने से भी महंगी होती है. इस वजह से इसे लकड़ियों का देवता कहा जाता है. प्रयागराज में करछना ब्लॉक के हरी गांव के अशोक श्रीवास्तव ने दस बिस्सा में अगरवुड के 50 पौधे लगाकर इसका व्यवसाय शुरू किया है. उन्हें देखते हुए प्रयागराज के अन्य किसानों ने भी इसकी शुरुआत कर दी है. 8 साल बाद बढ़ जाती इसकी कीमत वन अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आलोक यादव बताते हैं कि 8 साल की आयु पूरी कर लेने के बाद अगर पौधे में एक परजीवी का प्रवेश करवाया जाता है जिसके इन्फेक्शन के बाद इस पौधे से राल निकलता है. यह राल काले रंग का ठोस होता है. जिस पेड़ का या हिस्से से यह राल निकलती है वह हिस्सा सबसे कीमती हो जाता है. इस प्रक्रिया को होने में 2 साल का समय लगता है. बाजार की है उपलब्धता बताते हैं कि अगरवुड के पौधे को लगाने वाले किसानों से व्यापारी पहले से ही उसी समय बुकिंग कर लेते हैं जैसे ही पेड़ की से काले रंग का द्रव निकलना शुरू होता है. यहीं से किसानों को लाभ मिलना शुरू हो जाता है. ऐसे पेड़ की खेती है जो की बहुत कीमती है इसी वजह से व्यापारी खुद किसानों को खोज-खोजकर इसकी कीमत लगाते हैं. Tags: Local18FIRST PUBLISHED : July 22, 2024, 09:02 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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