Explained: मुस्लिम महिलाओं के हक में SC के बड़े फैसले की 8 खास बातें

Divorced Muslim Women Maintenance news decoded: स्लिम महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए, यह कहते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि शाहबानो फैसले को रद्द करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. जानें आठ बिन्दुओं में हर जरूरी बात...

Explained: मुस्लिम महिलाओं के हक में  SC के बड़े फैसले की 8 खास बातें
Supreme Court Verdict on Muslim Women: मुस्लिम महिलाओं को तलाक के बाद गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए, यह कहते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि शाहबानो फैसले को रद्द करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. तेलंगाना में तलाक के एक केस में गुजारे भत्ते को लेकर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. कोर्ए ने कहा कि मुस्लिम महिला आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है और यह बात सभी महिलाओं पर लागू होती है चाहे वह किसी भी धर्म का हो. पर्सनल लॉ के आधार पर जो कानून है, उसके तहत तलाक हो जाने के बाद 90 से 100 दिनों की इद्दत यानी एकांतवास की अवधि तक ही मुस्लिम महिलाएं अपने एक्स-हसबेंड से गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं. जस्टिस बी वी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा इस पूरे मामले पर क्या क्या कहा, आइए विस्तार से जानें: टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, सीआरपीसी की धारा 125, जो पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है, मुस्लिम महिलाओं को भी कवर करती है. मेंटेनेंस यानी भरण-पोषण विवाहित महिलाओं का अधिकार है, इसे दान न समझा जाए. यह धर्म की परवाह किए बिना सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 सीआरपीसी की धारा 125 के धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान पर हावी नहीं होगा. अदालत ने पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की जरूरत को समझाया और घर के भीतर महिलाओं के लिए फाइनेंशल स्टेबिलिटीज सुनिश्चित करने के लिए कुछ सुझाव बताए जैसे कि जॉइंट बैंक खाते बनाएं. कोर्ट ने कहा, यदि किसी मुस्लिम महिला का सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका के लंबित रहने के दौरान ही तलाक हो जाता है, तो वह धारा 125 की याचिका को जारी रखने के अलावा, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का सहारा ले सकती है. अदालत ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पूर्व पत्नी के पक्ष में गुजारा भत्ता के आदेश को चुनौती देने वाली एक मुस्लिम व्यक्ति की अपील खारिज कर दी. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, हम इस निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी… कोर्ट ने तर्क दिया था कि 1986 अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो फैसले को रद्द करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. इसे सुप्रीम कोर्ट के शाह बानो फैसले को रद्द करने के लिए लागू किया गया था. यह उस तर्क को खारिज कर देता है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं, केवल मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भरण-पोषण की ही मांग कर सकती हैं. Tags: Muslim, Supreme Court, Triple talaqFIRST PUBLISHED : July 10, 2024, 18:15 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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