Unsung Hero: देश की आजादी का मासूम मतवाला 13 साल की उम्र में हो गया शहीद
Unsung Hero: देश की आजादी का मासूम मतवाला 13 साल की उम्र में हो गया शहीद
14 अगस्त, 1942 को उत्तर प्रदेश के देवरिया की कहचरी में अंग्रेजों की गोलियों के बीच मासूम रामचंद्र विद्यार्थी ने यूनियन जैक को फाड़कर उसके स्थान पर तिरंगा झंडा फहरा दिया.
Azadi ke Matwalo ki Kahani: देश आजादी के उत्सव की तैयारी कर रहा है. वीर शरीदों को याद करने का दिन आ रहा है. क्या खूब कहा है- “शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा.” वतन पर मर-मिटने वाले बहुत से लोगों को तो सभी जानते हैं, लेकिन सैकड़ों-हजारों लोग ऐसे भी हैं जो खामोशी से तिरंगा शरीर पर लपेटे हुए या तो अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हो गए या फिर फांसी के फंदे पर झूल गए.
इनमें एक ऐसा ही एक वीर हुआ है रामचंद्र विद्यार्थी. उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में हथियागढ़ गांव के रामचंद्र विद्यार्थी बचपन से ही देशभक्त थे. उनके भीतर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इतना आक्रोश था कि विद्यार्थी जीवन में ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े. रामचंद्र विद्यार्थी भारतीय इतिहास में आजादी के आंदोलन के सबसे कम उम्र के बलिदानी है. उनका जन्म 1 अप्रैल, 1929 को हुआ था. उनके परिवार का पुश्तैनी काम मिट्टी के बर्तन बनाने का था. जब वे आजादी के आंदोलन में कूद उस समय वे 5वीं कक्षा में पढ़ते थे. उनकी माता का नाम मोती रानी और पिता बाबूलाल प्रजापति थे. रामचंद्र के दादा भर्दुल प्रजापति भी देशभक्त थे. वह पास ही गांव बसंतपुर धूसी के स्कूल में पढ़ते थे.
1942 में जब महात्मा गांधी के आह्वान पर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की ज्वाला पूरे भारत में धधक रही थी. देश के कोने-कोने से युवाओं की टुकड़ी गांधीजी के एक इशारे पर आंदोलन में शामिल होने के लिए घरों से निकल पड़ी थी. उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी बगावत का शंखनाद हो चुका था. यहां से देश के नौजवान आजादी का झंडा उठाकर अंग्रेजों को देश से बाहर करने के लिए कूच कर रहे थे. इस टोली में एक छात्र रामचंद्र विद्यार्थी भी शामिल था.
बताते हैं कि रामचंद्र विद्यार्थी 14 अगस्त, 1942 को अपने गांव से लगभग 32 किलोमीटर दूर पैदल चलकर ही देवरिया पहुंचे. जहां अब गांधी आश्रम में स्वास्थ्य विभाग का दवा भंडार है, वहां कभी कचहरी हुआ करती थी. ये नौजवान कचहरी पहुंचे और वहां लहरा रहे यूनियन जैक के झंडे को उतारकर तिरंगा फहराने लगे.
अंग्रेजी फौज को जैसे ही पता चला कि नौजवानों का एक दल कचहरी की तरफ जा रहा है तो फौज ने पूरे इलाके को अपने कब्जे में ले लिया. लेकिन ये नौजवान कहां रुकने वाले थे. तमाम चेतावनी के बाद भी जब ये नौजवान नहीं रुके तो अंग्रेजों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं. गोलियों के बीच रामचंद्र विद्यार्थी कचहरी की छत पर चढ़ गए और तिरंगा फहरा दिया. तिरंगा फहराने के बाद भारत माता की जय करते हुए विद्यार्थी ने वहीं प्राण त्याग दिए. जिस रामचंद्र ने यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहराया था, उसकी उम्र मात्र 13 साल थी. रामचंद्र विद्यार्थी की शहादत की खबर आग की तरह फैल गई और देखते ही देखते पूरे इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन होने लगे.
मासूम शहीद रामचंद्र विद्यार्थी के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेट कर उनके गांव नौतन हथियागढ़ लाया गया. जिन-जिन रास्तों से रामचंद्र के पार्थिव शरीर को लाया गया, वहां उन्हें देखने के लिए जनसैलाव उमड़ पड़ा. जहां गंडक नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया.
आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू 1949 में शहीद रामचंद्र विद्यार्थी के गांव नौतन हथियागढ़ गए थे. उनके गांव में शहीद की एक प्रतिमा लगाई गई है. जिला मुख्यालय में भी रामलीला मैदान में शहीद स्मारक बना है. जिस कचहरी में उन्होंने तिरंगा फहराया था, वहां उनके नाम पर एक स्मारक और पार्क बनाया गया है. जिस स्कूल में रामचंद्र पढ़ते थे उसका नामकरण भी उन्हीं के नाम पर शहीद रामचंद्र विद्यार्थी इंटर कॉलेज बसंतपुर धूसी किया गया है.
Tags: 15 August, Freedom fighters, Independence dayFIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 07:01 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed