Delhi Pollution: दिल्ली में दमघोंटू हवा के बीच हरियाणा से अच्छी खबर- पराली जलाने के मामलों में 30% की कमी
Delhi Pollution: दिल्ली में दमघोंटू हवा के बीच हरियाणा से अच्छी खबर- पराली जलाने के मामलों में 30% की कमी
Delhi Pollution: दिल्ली प्रदूषण की गिरफ्त में आता है तो सबसे पहले इसका दोष हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली पर लगाया जाता रहा है. यह बात काफी हद तक सही भी है कि पराली जलाने से हमेशा प्रदूषण की गिरफ्त में रहने वाले दिल्ली-एनसीआर के लिए कोढ़ में खाज जैसी हालत हो जाती है.
हाइलाइट्स 3 नवंबर तक हरियाणा में इस साल 2,377 मामले सामने आए जो पिछले साल इसी दौरान करीब 3,438 दर्ज किए गए थे. हरियाणा में बीते छह सालों में पराली जलाने के मामलों मे उल्लेखनीय कमी दर्ज (55 फीसदी) की गई है.
नवंबर का महीना शुरू होते ही हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली एनसीआर स्मॉग (धुआं युक्त कोहरा) के गिरफ्त में आ चुका है. पूरा क्षेत्र गैस चैंबर बन चुका है. इसके साथ ही सरकारों के बीच पल्ला झाड़ने और आरोप प्रत्यारोप का राजनीतिक प्रदूषण भी फैल रहा है. लेकिन, इन तमाम बहस मुबाहिस के बीच हरियाणा से एक अच्छी खबर है. यहां पराली जलाने के मामले में काफी कमी दर्ज की गई है. पिछले कई सालों से जब भी दिल्ली प्रदूषण की गिरफ्त में आता है तो सबसे पहले इसका दोष हरियाणा और पंजाब में जलाई जा रही पराली पर लगाया जाता रहा है. यह बात काफी हद तक सही भी है कि पराली जलाने से हमेशा प्रदूषण की गिरफ्त में रहने वाले दिल्ली-एनसीआर के लिए कोढ़ में खाज जैसी हालत हो जाती है.
क्या कहते हैं पराली जलाने के आंकड़े
इस बीच सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3 नवंबर तक हरियाणा में इस साल 2,377 मामले सामने आए जो पिछले साल इसी दौरान करीब 3,438 दर्ज किए गए थे, यानी पराली जलाने के मामलों में करीब 30 फीसद की कमी रिकॉर्ड की गई है. जिलों के आधार पर पराली जलाने के जो मामले सितंबर 15 से 3 नवंबर तक देखे गए उसमें ज्यादातर मामले- फतेहाबाद, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर से हैं, जो पिछली साल की तुलना में काफी कम रहे हैं. करनाल में जहां पिछले साल 763 मामले दर्ज हुए वहीं इस बार मामलों में दो तिहाई (264) की कमी दर्ज की गई. इस तरह कैथल में पिछले साल के 865 मामलों के मुकाबले इस बार सिर्फ 563 घटनाएं ही सामने आईं, जबकि कुरक्षेत्र में 2021 में जहां 476 खेत जलाने की घटनाएं हुई वहीं इस साल यह घटकर 289 दर्ज हुई.
हालांकि यह कमी आज की नहीं है. हरियाणा में बीते छह सालों में पराली जलाने के मामलों मे उल्लेखनीय कमी दर्ज (55 फीसदी) की गई है. 2016 में पराली जलाने की करीब 15,685 घटनाएं सामने आई थी जो 2021 में घटकर 6987 रह गई थी.
क्या होता है बेलर, क्यों है यह काम का
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक करनाल के किसानों का कहना है कि इसके पीछे की अहम वजह इस साल जिलों में बड़े स्तर पर निजी ठेकेदारों का बेलर मुहैया कराना है. बेलर एक तरह की मशीन होती है जो फसल के बचे हुए हिस्सों को सिकोड़ कर गांठों या गट्ठर में तब्दील कर देती है. यह मशीन किसानों को मुफ्त में उपलब्ध करवाई गई. इस तरह बने गट्ठर कार्डबोर्ड फैक्ट्री, बायोमास प्लांट, बॉयलर और इथेनॉल प्लांट में बेचे जा सकते हैं. यह ठेकेदारों और किसानों, दोनों के लिए अच्छी बात है.
बेलर के दाम और अवशेष निपटान की लागत
एक बेलर की लागत 15 लाख होती है और पराली से गट्ठर बनाने के लिए ट्रैक्टर से तीन मशीन जोड़ने की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा डीजल और मजदूरी अलग से देनी पड़ती है, जो किसी भी किसान के लिए काफी मंहगा सौदा होता था, जबकि सरकार इस पर सब्सिडी भी दे रही है. तो बेलर के मालिक अब किसान की जमीन की धान को साफ करते हैं और पराली से बने गट्ठरों को करीब 170 रू क्विटंल के हिसाब से बेच देते हैं. इसकी लागत बेलर मालिक वहन करता है. एक बेलर चुटिकियों में 20 एकड़ की ज़मीन को साफ कर सकता है. पिछले साल की तुलना में इस साल यहां ज्यादा मशीन आ गई हैं और किसान भी प्रदूषण को लेकर जागरुक हो गए हैं.
हरियाणा कृषि और किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इसके अलावा सरकार किसानों को पराली नहीं जलाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कई लाभकारी योजनाएं चला रही है, जिसमें नगद पुरस्कार, सब्सिडी शामिल है. किसान खेतों में सुपर सीडर या हेप्पी सीडर मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह गेंहू को सीधे धान की बचे हुए खेतों में उगाने में मदद करता है.
सरकार और कैसे कर रही प्रोत्साहित
सरकार किसानों को पराली नहीं जलाने पर 1000 रू प्रति एकड़ दे रही है, वहीं 50 रू प्रति क्विंटल राशि और सब्सिडी पराली की गट्ठर बनाने के लिए जरूरी उपकरण के प्रबंध के लिए प्रदान किए जा रहे हैं. सरकार किसानों को फसल के अवशेषों के प्रबंधन के लिए ज़रूरी उपकरण पर 50 फीसदी की सब्सिडी और कस्टम हायरिंग सेंटर पर 80 फीसदी की सब्सिडी प्रदान कर रही है. अगर किसान पराली के गट्ठर करनाल और पानीपत के प्लांट में लेकर जाते हैं तो उसे 2000 रू प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है, वहीं गौशाला में देने पर यह राशी 1500 रू प्रति एकड़ हो जाती है.
हालांकि छोटे किसानों के लिए अभी भी खेत जलाना ही सबसे आसान और सस्ता विकल्प है, यहां तक की खेतों को ठेके पर देने वाला जमींदार भी उन्हें मशीन मुहैया कराते हैं जो बड़ी ज़मीन लेते हैं, क्योंकि वहां से मिलने वाले गट्ठरों से उनकी बचत होती है, जबकि छोटी जोत के किसान के यहां से उन्हें कुछ हासिल नहीं होता है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस मामले में किसान कल्याण विभाग के महानिदेशक डॉ हरदीप सिंह का कहना है, पिछले साल तक करीब 72,770 फसल अवशेष प्रबंधन मशीन किसानों को दी गई थी, और इस साल भी 7,146 मशीन दी जाएंगी. इसके अलावा सरकार मशीन के लिए संचालन दाम भी मुहैया करा रही है. ऐसे गांव जो पराली जलाने के मामले में रेड जोन ( जहां 6 या उससे ज्यादा पराली जलाने के मामले दर्ज हुए) गांवों में पंचायत को शून्य की स्थिति लाने पर नगद पुरस्कार और प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. कई टन भूसा राज्य में बायोमास पॉवर परियोजना में इस्तेमाल हो रहा है. इसी तरह पूसा की डीकंपोजर कैप्सूल की 2.5 लाख किट, इतनी ही ज़मीन के लिए प्रदान की जाएगी.
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Tags: Delhi pollution, Stubble BurningFIRST PUBLISHED : November 04, 2022, 11:51 IST