दास्तान-गो : बंदूक की नाल से सुर भी निकलते हैं उस्ताद अलाउद्दीन ने बताया!

Daastaan-Go ; Ustad Allauddin Khan Death Anniversary Special : अब ‘आलम रामपुर में आबिद अली के घर पर ही रहा करता. कच्चा मकान. मिट्टी की दीवारें और उसके रहने का ठिकाना? पाखाने के पास का एक कमरा, जहां बदबू के कारण दो मिनट ठहरना भी मुश्किल. मगर उसका जीवट ही था कि कई दिनों तक वहीं रहकर वह अपनी संगीत साधना करता रहा. बाद में अहमद अली की मां को उस पर तरस आया और उन्होंने उसे रहने के लिए कुछ ठीक सी जगह दी.

दास्तान-गो : बंदूक की नाल से सुर भी निकलते हैं उस्ताद अलाउद्दीन ने बताया!
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…  ———– जनाब, उस रोज़ जगत किशोर बाबू के घर पर सुबह से तीन-चार घंटे तक सरोद बजाया अहमद अली साहब ने. उनके एक-एक सुर में ऐसा रोमांच था कि तमाम हिन्दुस्तानी और अंग्रेजी साज़ों के ‘उस्ताद’ हो रहे ‘आलम की आंखों से लगातार आंसू झरते जाते थे. सो, जैसे ही अहमद अली ठहरे, उसी असर में उसने उठकर वहीं, उनके पैरों पर सिर रख दिया, ‘मुझे शाग़िर्द बना लीजिए उस्ताद. ऐसा सरोद बजाना सीखना है’. अहमद अली ने भी ए’तिराज़ न किया. इस तरह, अब अहमद अली के साथ हो लिया ‘आलम. उनकी महफ़िलों में कभी तबला बजाता, कभी वॉयलिन. उस्ताद थोड़ा सरोद सिखाते, वह ज़्यादा सीख लेता. सुनकर, याद कर के. इसी चक्कर में एक बार उस्ताद की फटकार भी पड़ी. यहां तक सुनना पड़ा कि मेरा ‘हुनर तू चोरी कर रहा है’. गुस्ताख़ी के लिए मुआफ़ी मांगनी पड़ी पर उस्ताद का साथ न छोड़ा. उन्होंने भी उसे नहीं छोड़ा. फिर, उस्ताद कलकत्ते से रामपुर लौटने को हुए तो रास्ते में जगह-जगह महफ़िलें होती गईं. इनमें बड़े लोग ख़ुश होकर उस्ताद-शाग़िर्द को नज़राने, तोहफ़े दिया करते. वह पूरा हिसाब ‘आलम के पास ही रहता. रामपुर पहुंचकर उसने अहमद अली साहब से पूछा, ‘उस्ताद जी आपने पैसों का हिसाब-क़िताब नहीं लिया’. ‘अरे, वह क्या लेना. रकम तो खाने-ख़र्चे में ही चुक गई होगी न? पहले के तमाम शाग़िर्द ऐसा ही बताते थे’. ‘नहीं उस्ताद जी. ऐसा नहीं है’. और इतना कहकर उसने संदूक से 10 हजार रुपयों की थैली निकालकर उस्ताद के पैरों पर रख दी. यह देख उस्ताद अहमद अली और उनके वालिद आबिद अली की आंखें नम हो गईं. आबिद अली अपने लड़के से बोले, ‘तूने तो बताया था कि यह चोर, चालाक है. लेकिन ये तो बड़ा ईमानदार निकला’. अहमद अली कुछ न बोल सके अब. और यहां से ‘आलम की शुरू हुई सरोद की ता’लीम. अब ‘आलम रामपुर में आबिद अली के घर पर ही रहा करता. कच्चा मकान. मिट्टी की दीवारें और उसके रहने का ठिकाना? पाखाने के पास का एक कमरा, जहां बदबू के कारण दो मिनट ठहरना भी मुश्किल. मगर उसका जीवट ही था कि कई दिनों तक वहीं रहकर वह अपनी संगीत साधना करता रहा. बाद में अहमद अली की मां को उस पर तरस आया और उन्होंने उसे रहने के लिए कुछ ठीक सी जगह दी. लेकिन तभी मकान में काम लग गया. ईंट-चूना तक ढोना पड़ा. बीमार पड़ गया. फिर भी टूटा नहीं. इस तरह पांच-छह बरस बीते. इसके बाद उस्तादों ने कह दिया, ‘अब कहीं और जाकर सीखो. हम जो सिखा सकते थे, सिखा चुके’. अब ‘आलम जाए तो जाए कहां? रामपुर के दूसरे उस्तादों के दरवाजे खटखटाए. पर कोई सिखाने के लिए राजी न हुआ. हताश ‘आलम जान देने पर आमादा. लेकिन मस्ज़िद के मौलवी ने रोक लिया. उसकी पूरी कहानी सुनी. बाद उसे एक चिट्‌ठी दी और कहा, ‘नवाब हाजिद अली से मिल लो’. वे खुद गायक. वीणा भी बजाते थे. उन्होंने ‘आलम को सुना, तो उसके क़ायल हो गए. अपने दरबारी फ़नकार उस्ताद वज़ीर खां को बुला भेजा. उनके कहने पर वजीर खां ने उसे शाग़िर्द बना लिया. लेकिन ढाई साल तक सिखाया कुछ नहीं. इस बीच वह रोज उस्ताद के घर जाता. सेवा-टहल करता. दोपहर को लौटता. फिर शाम को चार बजे जाता. यही सब काम करता और रात को लौटता. पर उस्ताद उसे भूल ही चुके थे शायद. हालांकि वज़ीर खां के शाग़िर्द की हैसियत मिलने से रामपुर के दूसरे उस्तादों ने उसे कुछ सिखाना शुरू कर दिया था. लिहाज़ा, ता’लीम आगे बढ़ती जाती थी. इसी बीच, ‘आलम के घर से उस्ताद वज़ीर खां के पास ख़बर आई, ‘इसकी बीबी ने फांसी लगाकर जान देने की कोशिश की है. इसे वापस भेज दें’. तब कहीं जाकर उस्ताद को याद आई. उन्होंने अपने बेटों, शागिर्दों को टेर दी, ‘अरे बाबू (बंगालियों को वे बाबू कहते थे) कहां हैं? प्यारे मियां, मंझले साहब, छोटे साहब. बाबू कहां है?’ ‘ये तो सुबह से दोपहर और शाम से रात तक यहीं रहता है हुज़ूर’. ‘अरे, तो तुम लोगों ने अभी तक इसे कुछ सिखाया या नहीं?’ ‘आपका हुक्म नहीं था हुज़ूर. इसलिए कुछ नहीं सिखाया’. ‘चलो कोई बात नहीं. अब आज से ता’लीम शुरू’. उस्ताद का हुक्म हुआ. और ता’लीम का अगला दौर शुरू हो गया. रात-रात भर सिर्फ उस्ताद, शागिर्द और संगीत. इनके सिवा कोई चौथा न होता. दिन में मौका मिलने पर उस्ताद के बेटे भी सिखा देते. कुछ सालों तक यही सिलसिला चला. फिर एक रोज़ उस्ताद का हुक्म हुआ, ‘देश में घूमो. गुणीजनों से सुनो और उन्हें सुनाओ. शिक्षा, दीक्षा और परीक्षा- यह तीन बातें माने ही विद्या है. शिक्षा, दीक्षा हो चुकी. अब परीक्षा की बारी है’. उस्ताद का हुक़्म सिर-माथे पर. यहां से रबाब, सुरसिंगार जैसे कई साज़ सीख लिए थे. उनकी ता’लीम के साथ ‘आलम ने फिर कलकत्ते की राह ली. भबानीपुर में संगीत सम्मेलन था. उसे भी बजाने का न्यौता मिला. बड़े-बड़े उस्तादों के बीच मुश्किल से मौका बना. अलबत्ता, जब बना तो लोग चार घंटे तक अपनी जगह से हिल नहीं पाए. सुनने वालों ने पहली ‘तान’ से पहचान लिया कि यह वज़ीर खां की ता’लीम है. बताते हैं, इसी महफिल में एक श्यामलाल खत्री भी थे. मैहर (मध्य प्रदेश) के राजा बृजनाथ सिंह के परिचित. श्यामलाल चाहते थे कि ‘आलम मैहर आकर शाग़िर्द तैयार करे. इसके लिए वह पहले राज़ी न हुआ. उस्ताद का ऐसा हुक्म नहीं था. श्यामलाल को उसने यह बता भी दिया. तब कहते हैं, श्यामलाल ने राजा बृजनाथ सिंह से कहकर रामपुर के नवाब हाजिद अली तक संदेश भिजवाया. वहां से उस्ताद वज़ीर खां के पास बात पहुंची और उनसे बाक़ायदा इजाज़त ली गई. इधर, श्यामलाल ने ‘आलम को यह भी समझाया कि राजा ख़ुद बहुत शौक़ीन हैं, गाने-बजाने के. तो इस तरह, बात बनी और ‘आलम ने राह पकड़ी मैहर की. दुर्गा पूजा की सप्तमी थी, जब वह मैहर पहुंचा. राजा बृजनाथ सिंह के सामने अपने हुनर को पेश किया और चंद घंटों बाद ही राजा ख़ुद ‘आलम के पहले शाग़िर्द बन चुके थे. और ‘आलम उस्ताद. दोनों तरह की गायकी ध्रुपद और ख़्याल में पारंगत उस्ताद. कई हिन्दुस्तानी, अंग्रेजी साज़ों (क़रीब 200) को साध लेने वाले उस्ताद. उस्ताद अलाउद्दीन खां. हालांकि एक मसला और था अभी. उस्ताद पैसे लेने को तैयार न थे. कहते थे, ‘मैंने तय किया है कि विद्या दान कर के किसी से कुछ नहीं लूंगा. क्योंकि संगीत सीखने में मैंने बहुत कष्ट सहे हैं’. तब राजा ने उन्हें दरबार में एक ओहदा देकर उनकी तनख्वाह तय कर दी, 150 रुपए महीना. अलबत्ता, इससे ज़्यादा कहीं शायद ‘मैहर की शारदा-भवानी’ रास आईं उन्हें. इससे फिर उस्ताद अलाउद्दीन मैहर के ही होकर रह गए. अब तक साल 1900 के आस-पास हो चुका था. उस्ताद अलाउद्दीन ने ‘कलकत्ते में गंगा को गले में बिठाया था. मैहर में उनके साज़ों से शारदा बहने लगी थीं’. नाम हो रहा था. कि तभी उस्ताद वज़ीर खां का संदेशा आया. रामपुर पहुंचे तो उस्ताद बीमार से थे. बड़े बेटे का इंतिक़ाल को गया था. उस्ताद को पछतावा था कि उन्होंने पुरा हुनर ‘आलम को नहीं सिखाया, इसी वज़ह से ऊपर वाले ने उनका बेटा उनसे छीन लिया. वे भरपाई करना चाहते थे. सो, इसके बाद उन्होंने थोड़े ही वक़्त में अपना सब कुछ दे दिया ‘आलम को. इधर उस्ताद अलाउद्दीन की हैसियत से ‘आलम भी अपना सब कुछ शाग़िर्दों का बांटते जाते थे. और शाग़िर्द भी कैसे, कैसे. अन्नपूर्णा देवी (बेटी), अली अकबर खा़न (बेटा), आशीष खान (पोता), पंडित रविशंकर (सितार वादक), पंडित निखिल बनर्जी (सितार वादक), पंडित पन्नालाल घोष (बांसुरी वादक), सरन रानी (सरोद वादक) और ऐसे न जाने कितने. दुनिया भर में नाम रोशन किया इन शाग़िर्दों ने उस्ताद और उनके मैहर घराने का. पंडित हरिप्रसाद चौरसिया (बांसुरी वादक, अन्नपूर्णा देवी के शिष्य) जैसे दिग्गज शाग़िर्दों की अगली पीढ़ियां भी तैयार कीं, जो सिलसिला अब भी जारी है. और उस्ताद? वे तो हिन्दुस्तान ही नहीं, दुनिया के 24-25 मुल्कों में, जब-जहां गए, सुनने वालों को अपना मुरीद बनाते गए. बंदूक की नलियों की मदद से ‘नालतरंग’ जैसा वाद्य-यंत्र बनाकर दुनिया को संदेश देते गए कि ‘बंदूक की नाल से सुर भी निकलते हैं. सिर्फ़ गोली नहीं’. ज़िंदगी के 100 बरस के क़रीब उन्होंने ‘संगीत-संसार’ को अपने भीतर समाने में लगा दिए. फिर ख़ुद में पूरा ‘संगीत-संसार’ होकर हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गए. मैहर की माटी, शारदा-भवानी की गोद में सो रहे. साल 1972 के सितंबर महीने की छह तारीख़ थी वह. — पिछली कड़ी में आपने पढ़ा दास्तान-गो : ‘आलम का सफ़र… ‘संगीत-संसार’ उस्ताद अलाउद्दीन खां तक! —- (नोट- यह दास्तान लिखने में उस्ताद अलाउद्दीन खां की ज़िंदगी के क़िस्सों वाली किताब ‘मेरी कथा’, भारत सरकार के फिल्म्स डिवीज़न की डॉक्यूमेंट्री, ख़ुद उस्ताद की ओर से उनके शाग़िर्दों को बताए गए वाक़ि’ओं तथा उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत नाटक अकादमी, मध्य प्रदेश सरकार के पास उपलब्ध सामग्री से मदद ली गई है.) ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें up24x7news.com हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट up24x7news.com हिंदी | Tags: Death anniversary special, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 06, 2022, 11:18 IST