दास्तान-गो : हिन्दुस्तानी फिल्मों के ‘पहले’ गायक-गायिका संगीतकार-संगीतकारा…!
दास्तान-गो : हिन्दुस्तानी फिल्मों के ‘पहले’ गायक-गायिका संगीतकार-संगीतकारा…!
Daastaan-Go : First Male-Female Singers, Music Directors of Indian Films : आज ये सवाल इसलिए मौज़ूं बन पड़े हैं कि हिन्दी फिल्मों की ‘पहली फुल-टाइम महिला संगीतकार’ के इंतिक़ाल की बरसी कहीं नौ तो कहीं 10 अगस्त बताई जाती है. वे थीं सरस्वती देवी. सरस्वती देवी को ‘फिल्मों में प्ले-बैक सिंगिंग’ का सिलसिला शुरू कराने का भी श्रेय दिया जाता है. हालांकि, इस मामले में बहुमत संगीतकार आरसी बोराल के साथ रहा है.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, हिन्दी सिनेमा की अलहदा ख़ासियतों की बात करें तो इसमें सबसे अव्वल कौन सी होती है? यक़ीनन इसका जवाब ‘गीत-संगीत’ ही होगा. बल्कि हिन्दी क्या, हिन्दुस्तानी ज़बानों की तमाम फिल्में अपनी इसी ख़ासियत से लैस हुआ करती हैं, ऐसा कहें तो ग़लत न होगा. हिन्दुस्तानी सिनेमा ने इस तरह के कई दौर देखें हैं, जब फिल्मों की कहानी कमज़ोर रही, अदाकारी नई-नवेली सी हुई, फिर भी फिल्में चल निकलीं. सिर्फ़ गीत-संगीत के कारण. कई फिल्मों ने तो महज़ इसी ख़ासियत से कमाई के रिकॉर्ड बना लिए. जैसे- राहुल रॉय और अनु अग्रवाल की अदाकारी वाली साल 1989 की ‘आशिक़ी’. नए, पुराने दौर में ऐसी और बहुत सी हैं. मगर जनाब, क्या कभी सोचा है कि हिन्दुस्तानी सिनेमा की इस ख़ासियत का शुरुआती दौर कैसा रहा होगा? पहला गायक, पहली गायिका, पहले पुरुष व महिला संगीतकार कौन हुए? फिल्म संगीत के दौर में सबसे अहम तब्दीली यानी परदे के पीछे से गाना या अंग्रेजी ज़बान में कहें तो प्ले-बैक सिंगिंग किस तरह शुरू हुई?
आज ये सवाल इसलिए मौज़ूं बन पड़े हैं कि हिन्दी फिल्मों की ‘पहली फुल-टाइम महिला संगीतकार’ के इंतिक़ाल की बरसी कहीं नौ तो कहीं 10 अगस्त को बताई जाती है. वे कौन थीं? इसका ज़वाब आगे देंगे. लेकिन पहले थोड़ी सी जानकारियां उनसे पहले कीं. तो जनाब, मध्य प्रदेश के एक बड़े अफ़सर हैं, पंकज राग. यूं तो सरकारी महकमे चलाना उनका काम है. लेकिन वे फिल्मों पर अच्छी जानकारी रखते हैं. उन्होंने साल 2006 में एक क़िताब लिखी थी, ‘धुनों की यात्रा’. इसमें 1931 से 2005 तक के हिन्दी फिल्म संगीत के बारे में तमाम जानकारियां दर्ज़ हैं. ऐसे ही, हिन्दुस्तानी फिल्मों पर शोध और पढ़ाई-लिखाई कर चुके शख़्स हैं, विजय कुमार बालाकृष्णन. उन्हें ‘फिल्म इतिहासकार’ का तमगा भी दिया जाता है. उन्होंने भी अपने ख़ज़ाने से वक़्त-वक़्त पर तमाम तारीख़ी जानकारियां बाहर निकालीं, जो फिल्मी गीत-संगीत के सफ़र पर रोशनी डालती हैं.
इन सबका लब्बोलुआब यूं है कि हिन्दुस्तान में जो पहली बोलती फिल्म बनी, ‘आलम-आरा’, उसी से गीत-संगीत की भी शुरुआत हुई. इससे पहले तक मूक-फिल्मों का दौर हुआ करता था. जिनमें बोलने-चालने का कोई बंदोबस्त न था. तो जनाब, साल 1931 की बात है, जब पारसी मूल के फिल्मकार खान बहादुर अर्देशिर ईरानी ने ‘आलम-आरा’ फिल्म बनाई. इसमें उन्होंने गीत-संगीत का भी इंतज़ाम किया और उस दौर के जाने-माने मूसीक़ार फिरोज़शाह मिस्त्री को उन्होंने इसका ज़िम्मा सौंपा. सो, इस तरह वे हिन्दुस्तानी फिल्मों के ‘पहले फिल्म-संगीतकार’ हुए. जनाब इसी फिल्म में फ़क़ीर का किरदार अदा किया था, वज़ीर मोहम्मद खान ने. उन्होंने अपनी ही आवाज़ में अपने लिए एक गीत गाया था, ‘दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त है ग़र देने की’. यह हिन्दुस्तानी फिल्मों का पहला गीत हुआ और वज़ीर मोहम्मद खान सिनेमा के पहले गायक/अदाकार.
आगे फिल्म में एक गाना ज़ुबैदा खानम ने भी गाया था, ‘बदला दिलवाएगा या रब तू सितमग़रों से’. इस फिल्म में मास्टर विट्ठल के साथ ज़ुबैदा मुख्य अदाकारा भी थीं. इस तरह वे फिल्मों की पहली गायिका/अदाकारा बनीं. अब जनाब, यहां से चार-पांच साल यही सिलसिला चला. अदाकार या अदाकारा ही अपने लिए फिल्म के गीत भी गाया करते थे. यानी ‘गाना आए या न आए, गाना चाहिए’ वाली बात उनके पल्लू से आ बंधी थी. और वे लोग गाना किस तरह गाते थे, ये पंकज राग साहब की ज़ुबानी समझें तो वह ‘नर्सरी राइम’ की तरह का होता था. मतलब, जैसे स्कूल में बच्चों को कविताएं रटवाईं या गवाई जाती हैं न, वैसे ही. अलबत्ता, वे सब थे तो बड़े फ़नकार ही. लिहाज़ा, उनके फ़न को यूं कमतर आंकना ठीक न होगा. मगर बात ये भी है कि जिस तरह सीखे हुए गवैये गा सकते थे, उस तरह गाना कई अदाकारों, अदाकाराओं के वश की बात न थी.
इसी बीच जनाब, कलकत्ते में एक बड़ा वाक़ि’आ हुआ. वहां फरवरी 1931 में ही फिल्मकार बीरेंद्रनाथ सरकार (बीएन सरकार) ने एक फिल्म कंपनी बना ली थी. नाम था, ‘न्यू थिएटर्स’. यह हिन्दुस्तानी सिनेमा की शुरुआती फिल्म कंपनियों में से एक हुई. इसके बैनर तले डायरेक्टर नितिन बोस एक बांग्ला फिल्म बना रहे थे, ‘भाग्य चक्र’. साल 1933-34 की बात है. साल 1935 में यह फिल्म बांग्ला के साथ-साथ हिन्दी में भी ‘धूप-छांव’ के नाम से रिलीज़ हुई. इसमें मुकुल बोस और रायचंद बोराल यानी आरसी बोराल ने संगीत दिया. साथ ही गायक और संगीतकार पंकज मल्लिक भी फिल्म के गीत-संगीत के काम से जुड़े थे. क्योंकि वे नितिन बोस के अच्छे दोस्त हुआ करते थे. इतने अच्छे कि नितिन क़रीब-क़रीब रोज़ ही स्टूडियो जाते समय रास्ते में उनके घर से उन्हें अपने साथ ले लिया करते थे. ऐसा पंकज मल्लिक ने ख़ुद अपनी आत्मकथा में लिखा है.
तो जनाब, एक बार जब नितिन बोस कार से पंकज मल्लिक को लेने उनके घर पहुंचे तो उन्होंने रोज़ की तरह नीचे से ही हॉर्न बजाया. एक बार, दो बार, तीन बार. लेकिन पंकज हैं कि बाहर ही न निकलें. अलबत्ता, खिड़की से उनके पिताजी झांके और नितिन को इशारा किया कि वे पंकज को भेजते हैं. इसके बाद पिताजी उस कमरे में गए, जहां पंकज बैठे थे. उन्हें बताया कि ‘नीचे नितिन इंतिज़ार कर रहे हैं. कब से वे हॉर्न पे हॉर्न बजा रहे हैं’. पंकज को जैसे ही यह पता चला वे तुरंत भागे-भागे नीचे पहुंचे और नितिन से बोले, ‘माफ़ कराना भाई, मैं कहीं खोया हुआ था आज’. ‘अरे, ऐसा क्या हुआ, जो तुम्हें इतनी तेज़ हॉर्न भी सुनाई न दिया’. ‘कुछ नहीं, वो मैं अपने पसंदीदा अंग्रेजी गाने के साथ-साथ ख़ुद भी बिल्कुल डूबकर गाए जा रहा था. इसलिए कुछ और सुनाई ही नहीं दिया’. पंकज का ज़वाब सुनना था कि नितिन के दिमाग़ में एक विचार कौंध गया.
ख़्याल यूं था कि क्यों न पहले से गाने रिकॉर्ड कर लिए जाएं. फिर उनके साथ-साथ अदाकारों और अदाकाराओं से फिल्म में होंठ हिलवाए जाएं. स्टूडियो पहुंचकर उन्होंने इस विचार को आरसी बोराल के साथ साझा किया. उन्हें भी यह आइडिया अच्छा लगा क्योंकि इससे जो लोग अच्छी अदाकारी कर सकते थे और जो अच्छा गा सकते थे, उन दोनों ही तरह के लोगों की सेवाएं सबसे बढ़िया तरीके से ली जा सकती थीं. उनके बीच तालमेल बिठाया जा सकता था. तो जनाब, तजुर्बा-कारी हुई और केसी डे यानी कृष्ण चंद्र डे से फिल्म के लिए गाना गवाकर रिकॉर्ड कराया गया. हालांकि केसी डे ख़ुद अच्छे अदाकार भी थे, तो यह गाना फिल्माया भी उन्हीं पर गया. यह गाना था, ‘मैं ख़ुश होना चाहूं, खुश हो न सकूं’. इसमें केसी डे के अलावा पारुल घोष, हरिमति दुआ और सुप्रभा सरकार ने भी आवाज़ें दी थीं. इस तरह केसी डे पहले पुरुष प्ले-बैक सिंगर यानी पार्श्व गायक हुए.
महिलाओं में पारुल घोष को पहला पार्श्व-गायक कहा जा सकता है. हालांकि इस कहानी में पेंच अभी और भी हैं, जिसका आगे ज़िक्र करते हैं. लेकिन पहले पारुल घोष के बारे में थोड़ा जान लेना बेहतर होगा. ये हिन्दुस्तान के मशहूर बांसुरी-वादक पन्नालाल घोष की पत्नी थीं. मूसीक़ी यानी कि संगीत से इनका ख़ानदानी रिश्ता हुआ करता था. इनके बड़े भाई अनिल बिस्वास हिन्दुस्तान के बड़े मूसीक़ार हुए. अनिल बिस्वास साहब और पन्नालाल जी बचपन के दोस्त हुआ करते थे. इसी दोस्ती के नाते बचपने में ही पारुल की शादी पन्नालाल जी से कर दी गई थी. और इस सबसे आगे ग़ौर करने की बात ये कि अभी इसी महीने यानी अगस्त की 13 तारीख़ को पारुल घोष के भी इंतिक़ाल की बरसी हुआ करती है. और जनाब, जैसा शुरू में बताया, इसी महीने इंतिक़ाल की पहली बरसी उनकी भी है, जिन्हें ‘पहली फुल-टाइम महिला संगीतकार’ कहते हैं. सरस्वती देवी.
जनाब, बात बहुत पुरानी है. इसलिए सरस्वती देवी के बारे में आज की तारीख़ में शायद ही कुछ लोग जानते हों. यहां तक कि फिल्मों में दिलचस्पी रखने वाले भी इनके नाम और काम से अच्छी तरह वाबस्ता होंगे, वाक़िफ़ होंगे, यह बात पुख़्ता तौर पर नहीं कही जा सकती. हालांकि, इसके बावज़़ूद उन्होंने अपने दौर में अपनी जो शख़्सियत बनाई, जो हैसियत हासिल की, वह क़ाबिल-ए-ग़ौर बन पड़ती है. कुछ लोग उन्हें हिन्दी फिल्मों की ‘पहली महिला संगीतकार’ कहा करते हैं. क्योंकि उनसे पहले जद्दन बाई (नरगिस दत्त की मां) ने फिल्मों में जो संगीत दिया, वह इक्का-दुक्का नग़्मों तक ही सीमित रहा. इतना ही नहीं, ‘पहली महिला पार्श्व-गायक’ होने का ख़िताब भी कोई-कोई लोग इन्हीं सरस्वती देवी को दिया करते हैं. साथ ही ‘फिल्मों में प्ले-बैक सिंगिंग’ का सिलसिला शुरू कराने का भी. दिलचस्प है, इनकी कहानी भी. जो पूरी होगी कल की दास्तान में!
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अगली कड़ी में पढ़िए (कल 10 अगस्त को)
दास्तान-गो : हिन्दी फिल्मों की पहली महिला संगीतकार जद्दन बाई या सरस्वती देवी?
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Tags: Film, Hindi news, Music, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : August 09, 2022, 16:53 IST