दास्तान-गो : ‘शिव-शाहीर’ बाबा साहब पुरंदरे जिनके नाटक में हाथी-घोड़े भी एक्टिंग करते थे!
दास्तान-गो : ‘शिव-शाहीर’ बाबा साहब पुरंदरे जिनके नाटक में हाथी-घोड़े भी एक्टिंग करते थे!
Daastaan-Go ; Baba Sahab Purandare Jaanta Raja : नाटक शुरू हुआ, ‘जाणता राजा’, यानी ‘जनता के राजा’. छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी अवाम ने यह तमगा दिया था. ज़ाहिर तौर पर नाटक उन्हीं के इर्द-गिर्द बुना गया था. एक-एक कर उनकी ज़िंदगी से जुड़े दृश्य मेरे जैसे हजारों देखने वालों की निग़ाहों के सामने से गुजरते जाते थे. किलों पर धावे. सैनिकों की ललकारें. लड़ाइयां. चमकती तलवारें. चिंघाड़ते हाथी. हिनहिनाते घोड़े. कभी जीत. कभी हार. कहीं मार्मिक दृश्य. कहीं विजय का उल्लास. सब कुछ ऐसा, मानो अदाकारी न होकर अस्ल में सामने घट रहा हो.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, आज अपने तजरबे से जुड़ी दास्तान सुनाता हूं. वह आज मौज़ू (प्रासंगिक) बन पड़ी है. साल 2005 की बात है. तब तक अपनी क़स्बाई-जन्मस्थली से निकलकर अपने प्रदेश की राजधानी भोपाल आए हुए मुझे साढ़े चार साल का वक़्त हो चुका था. इतने वक़्त में भोपाल की तहज़ीब (सभ्यता), यहां की सक़ाफ़त (संस्कृति) कुछ-कुछ समझ आने लगी थी. ‘भारत भवन’ क्या चीज़ है और क्यों है. उसकी कितनी अहमियत है, इससे भी वाक़फ़ियत (परिचय) हो चुकी थी. वहां आना-जाना और संगीत, साहित्य, रंगमंच से जुड़े लोगों के साथ उठना-बैठना शुरू हो चुका था. तभी एक रोज़ उन्हीं लोगों से दिलचस्प जानकारी लगी. पता चला कि महाराष्ट्र से एक नाटक-मंडली भोपाल में अपने ‘नाटक’ के शो करने आई है. उस वक़्त मध्य प्रदेश की सियासत में असरदार नेता हुआ करते थे अनिल माधव दवे. वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में देश के पर्यावरण मंत्री भी रहे. साल 2017 में उनका निधन हो गया. उन्होंने ही उस नाटक-मंडली को भोपाल बुलाया था.
मेरे लिए यहां तक तो इस जानकारी में कोई नई बात नहीं थी. भोपाल की तो पूरे मुल्क़ में पहचान ही इस तरह की बनी है, जहां संगीत की महफ़िलें सजा करती हैं. साहित्य की सभाओं में बड़े लोगों का आना होता है. रंगमंच के, यहां तक कि अब तो फिल्मों के लोगों का भी आना-जाना लगा रहता है. उनके शो वग़ैरा भी हुआ करते हैं. लेकिन जनाब, जब मुझे बताया गया कि महाराष्ट्र से आने वाली मंडली के नाटक का प्रदर्शन भारत-भवन में नहीं हो रहा है, तब मेरा ध्यान अटका. मैंने पूछा उनसे, कहां हो रहा है फिर? तो बताया गया, ‘लाल परेड ग्राउंड पर. वहां भी क़रीब 20-30 हजार लोगों की मौज़ूदगी में’. यह मेरे लिए चौंकने की बात थी. ज़ाहिर बात है, मेरी जिज्ञासा अब बढ़ गई थी. सो, मैंने फिर सवाल किया, ‘ऐसी क्या ख़ास बात है उस नाटक में, जो इतने बड़े मैदान पर खेला जा रहा है, जहां आम तौर पर 15 अगस्त, 26 जनवरी की परेड ही हुआ करती है?’
इसके जवाब में मुझे जो बताया गया, यक़ीन जानिए वह न मैंने पहले सुना था और न उसके बाद कभी. मुझे जानकारी दी गई कि इस ‘नाटक में मराठा साम्राज्य के किलों के बड़े-बड़े सैट लगाए जाते हैं. हाथी, घोड़े, ऊंट भी नाटक-मंडली में शामिल रहते हैं. मराठाओं ने जो लड़ाईयां लड़ीं, उनके दृश्य भी अस्ल जैसे होते हैं. इस सबके लिए 150 से ज़्यादा तो फ़नकार ही इस नाटक-मंडली में शामिल हैं. इसके अलावा मेक-अप मैन, सैट डिज़ाइनर, लाइट-साउंड वाले और ऐसे ही तमाम लोग अलग से हैं. इस तरह 200-250 लोगों की मंडली होती है’. जनाब, इतना सुनना था कि मुझसे रहा न गया फिर. मैंने किसी तरह जान-पहचान वालों की मदद से उस शो में अपने पहुंचने का बंदोबस्त किया. अकेला था, तो ज़्यादा दिक़्क़त न हुई. मीडिया वालों के लिए जो गैलरी बनी थी, उसमें बैठने की जगह मिली मुझे. शाम का वक़्त था. अप्रैल का महीना. रामनवमी के आस-पास का दिन.
नाटक शुरू हुआ, ‘जाणता राजा’, यानी ‘जनता के राजा’. छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी अवाम ने यह तमगा दिया था. ज़ाहिर तौर पर नाटक उन्हीं के इर्द-गिर्द बुना गया था. एक-एक कर उनकी ज़िंदगी से जुड़े दृश्य मेरे जैसे हजारों देखने वालों की निग़ाहों के सामने से गुजरते जाते थे. किलों पर धावे. सैनिकों की ललकारें. लड़ाइयां. चमकती तलवारें. चिंघाड़ते हाथी. हिनहिनाते घोड़े. कभी जीत. कभी हार. कहीं मार्मिक दृश्य. कहीं विजय का उल्लास. सब कुछ ऐसा, मानो अदाकारी न होकर अस्ल में सामने घट रहा हो. इधर, शाम का अंधियारा गहराता जाता था. लेकिन शिवाजी महाराज को, उनके कामों को, उनके समर्पण, उनके संषर्ष को यूं सामने सजीव देखकर दिल-ओ-दिमाग़ में कोई सूरज सा उगता जाता था. उसकी रोशनी में वे तमाम धुंधलके हटते जाते थे, जिन्होंने किसी न किसी वज़ह से अब तक शिवाजी महाराज से जुड़े इतिहास के तथ्यों को ढंक कर रखा हुआ था.
जनाब, तीन घंटे का नाटक था. बीच में एक छोटा सा इंटरवल. लेकिन मुझे याद नहीं आता कि मैं उस दौरान भी अपनी सीट से उठकर कहीं गया. मेरे जैसे और हज़ारों थे, जो उस दौरान ठगे से बस, बैठे ही रहे अपनी-अपनी कुर्सियों पर. फिर जब ये नाटक पूरा हुआ न, तो वह मेरी तरह के ही सैकड़ा, हजार लोगों के ज़ेहन में जा बैठा. हमेशा के लिए. यही वज़ह है, आज 17 बरस बाद भी, जब यूं मौका बना तो वे तमाम चीजें इस तरह याद आ गईं गोया, कि कल की ही बात हों. और मौका जनते हैं जनाब, क्या है? इस नाटक को लिखने वाले, इसे यूं सूरत देने वाले के जन्म की तारीख़. पूरे सौ बरस हो चुके हैं, बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे की पैदाइश को, जिन्हें उनके चाहने वाले ‘बाबा साहब’ कहा करते थे. इस तरह वे हो गए बाबा साहब पुरंदरे. मराठी अदब (साहित्य) के बड़े लेखक हुआ करते थे. पुणे के पास एक जगह है, सासवड़. वहीं 29 जुलाई 1922 को पैदाइश हुई.
पढ़ाई पूरी करने के बाद तारीख़ी (इतिहास) किताबों और नाटकों में ख़ास दिलचस्पी हुई उनकी. कई किताबें लिखी. नाटक भी लिखे. शिवाजी के बारे में बाबा साहब पुरंदरे ने सबसे ज़्यादा काम किया. और सिर्फ़ काम ही नहीं किया, बल्कि ‘जाणता राजा’ के मार्फ़त शिवाजी की शख़्सियत और उनके कामों को भी सीधे आम लोगों के बीच ले आए. देश ही नहीं, दुनियाभर में. इसीलिए उन्हें मुकम्मल सी पहचान मिली ‘जाणता राजा’ से. लोग उन्हें ‘शिव-शाहीर’ के नाम से भी जानने लगे. मराठी ज़बान में ‘शाहीर’ उसे कहा जाता है, जो किसी विचार, तारीख़ी वाक़ि’आ, वग़ैरा के बारे में अवाम को आगाह (जागरुक) करता है. उसके बारे में उनकी आंखें खोलने का काम करता है. बाबा साहब ने शिवाजी के सिलसिले में अपने नाटक ‘जाणता राजा’ के जरिए यही किया. बताते हैं, यह नाटक पहली बार अप्रैल 1984 में खेला गया था. पुणे में रेणुका स्वरूप हाईस्कूल के मैदान पर.
इसके बाद से ‘जाणता राजा’ का जो कारवां बनकर चला तो कहते हैं, वह देश-दुनिया के 1,550 से ज़्यादा पड़ावों पर ठहरता हुआ गुज़रा. इसकी शुरुआत कैसे हुई, इस बारे में ख़ुद बाबा साहब पुरंदरे ने अप्रैल-2018 में एक इंटरव्यू के दौरान बताया था, ‘ये 1974 की बात है. शिवाजी महाराज के 300वें राज्याभिषेक समारोह के अवसर पर पुणे में एक प्रदर्शनी लगाई गई थी. उसमें शिवाजी महाराज के दौर की इमारतें, किले, महल, वग़ैरा की प्रतिकृतियां लगाई गई थीं. वहीं दिमाग में आया कि शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक (नाटक ‘जाणता राजा’ इसी पर पूरा होता है) को पूरी गरिमा के साथ आम लोगों तक ले जाना चाहिए. मेरे पास पटकथा तैयार थी. इस बारे में ‘शिवराय प्रतिष्ठानम्’ के सदस्यों को मैंने बताया तो वे कहने लगे कि शिवाजी महाराज के विस्तृत चरित्र को तीन घंटे में पेश करना आर्थिक और शारीरिक रूप से संभव नहीं. पर मैं अपने विचार पर दृढ़ रहा’.
बाबा साहब बताते हैं, ‘इस नाटक की यात्रा बहुत भावुक है. शुरू में हमारे पास संसाधन नहीं थे. यहां तक कि कलाकरों को नाटक के लिए वस्त्र देने को भी कुछ नहीं था. इसलिए हमने कलाकारों को स्वयं के साधन से सब कुछ लाने को कहा. और आश्चर्य कि वे लोग ले भी आए. शिवाजी के प्रति श्रद्धा ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया. इन कलाकारों में कोई बड़ा नाम नहीं है. ज़्यादातर स्थानीय कलाकार हैं. फिर भी यह नाटक वर्षों से लोगों को आकर्षित कर रहा है. क्योंकि शिव-चरित्र स्वयं में बहुत ही अद्भुत और पवित्र है. ‘शिवाजी’ अपने आप में जादुई शब्द है. उसके बिना यह यात्रा संभव नहीं थी. यह नाम और उसका आख्यान हम सभी को प्रेरित करता है. नाटक की सफलता का पहला और सबसे ज़्यादा श्रेय इसी को जाता है. फिर उन सभी कलाकारों को, जो 30 से भी अधिक सालों से परिश्रम कर रहे हैं. एक से दूसरे शहर में इसका मंचन कर रहे हैं’.
जनाब, अभी दिसंबर 2019 की 25 से 29 तारीख़ों के बीच ‘जाणता राजा’ का प्रदर्शन 12 साल बाद फिर पुणे में हुआ था. बाबा साहब की मौज़ूदगी में. लेकिन तभी कोरोना महामारी का हमला हो गया और दुनियाभर के तमाम सिलसिलों के साथ इसका सिलसिला भी ठहरा रहा. हालांकि ‘जाणता राजा’ के सिलसिले को उससे भी बड़ी चोट तब पड़ी, जब इसे सूरत देने वाले ‘शिव-शाहीर’ की सांसें ही ठहर गईं. वह 15 नवंबर की तारीख़ थी, साल 2021 की. बाबा साहेब पुरंदरे को निमोनिया की एक मामूली सी लगने वाली बीमारी इस दुनिया से खींचकर ले गई. ‘जाणता राजा’ के हजारों शो करने वाले ‘शिव-शाहीर’ अपने जीवन का शतक पूरा किए बिना ही दुनिया से रुख़्सत हो गए.
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Tags: Birth anniversary, Chatrapati Shivaji, Hindi news, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : July 29, 2022, 15:49 IST