इंदिरा ने संविधान को खेला इमरजेंसी में विरोधी रहे मुलायाम-लालू का परिवार आज

मीसा इमरजेंसी के दौरान इस्तेमाल होने वाला सरकार का सबसे बड़ा हथियार था. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act-MISA) के बारे में थोड़ा जान लीजिए. पहली बार छह शब्दों के संक्षिप्तीकरण से बने ‘मीसा’ शब्द से लोगों का पाला 1971 में पड़ा था.

इंदिरा ने संविधान को खेला इमरजेंसी में विरोधी रहे मुलायाम-लालू का परिवार आज
ओमप्रकाश अश्क आजादी के 77 साल बाद देश के नेताओं का संविधान के प्रति अचानक उमड़ा प्रेम देख कर जितना मन आनंदित हो रहा है, उतना ही आश्चर्य भी हो रहा है. आनंद इसलिए कि गीता, रामायण, कुरान और बाइबिल जैसे पवित्र धर्मग्रंथ की तरह आज भी लोगों का संविधान पर विश्वास बरकरार है. आस्था अक्षुण्ण है, लोकिन आश्चर्य इसलिए कि उस दल के नेता भी संविधान के प्रति अतिशय प्रेम का प्रदर्शन कर रहे, जिन्होंने कभी संविधान की धज्जियां उड़ाने में तनिक भी संकोच नहीं किया था. इससे भी अधिक आश्चर्य उन नेताओं को लेकर है, जो आज के अपने वरिष्ठ साथी दल कांग्रेस के साथ भले कदमताल कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी संविधान के साथ मजाक करने वाली पार्टी का घोर विरोध किया था. राहुल गांधी को छोड़ दें, तो अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल समेत कई समाजवादी पहचान वाले नेता जब सांसदी की शपथ के दौरान हाथ में संविधान की प्रति लिए दिखे तो लगा कि इसे ही समय का फेर कहते हैं. यह भी कि राजनीति में कभी कोई स्थायी दुश्मन नहीं होता. संविधान का राग अलापने वाले इमरजेंसी को भूल गए 25-26 जून 1975 को देश पर थोपी गई इमरजेंसी और मौलिक संवैधानिक हक छीनने वाले प्रावधान संविधान में शामिल करने के लिए 42वां संशोधन किसने किया था, यह बताने की जरूरत नहीं. अखिलेश यादव तो जरूर जानते होंगे कि राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी की थोपी गई इमरजेंसी में उनके पिता के साथ क्या गुजरी थी. संभव है कि तब उनकी उम्र यह समझने की नहीं रही होगी, लेकिन जब से उन्होंने राजनीति की राह पकड़ी है, तब से अब तक उन्होंने इमरजेंसी की त्रासदियों के बारे में जरूर सुना या जाना होगा. इतना ही नहीं, राहुल के साथ संविधान का राग सम्मिलित स्वर में अलापने वाले लालू प्रसाद यादव भी इमरजेंसी की जिल्लत नहीं भूले होंगे. इसलिए भी कि इमरजेंसी के दौरान ही पैदा हुई अपनी बेटी का नाम लालू ने मीसा ही रख दिया, जो इस बार चुनाव लड़ कर लोकसभा पहुंची हैं, हालांकि संसद में उनका आगमन पहले ही राज्यसभा के जरिए हो चुका है. मीसा में बंद लालू ने बेटी का नाम मीसा रख ही लिया मीसा इमरजेंसी के दौरान इस्तेमाल होने वाला सरकार का सबसे बड़ा हथियार था. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act-MISA) के बारे में थोड़ा जान लीजिए. पहली बार छह शब्दों के संक्षिप्तीकरण से बने ‘मीसा’ शब्द से लोगों का पाला 1971 में पड़ा था. बहुमत वाली इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने संसद से पारित करा कर यह विवादास्पद कानून बनाया था. इमरजेंसी के ज्यादातर बंदियों पर यही कानून लागू हुआ था. इसमें ना तो न्यायालय कुछ कर सकते थे और ना ही पीड़ित के पास बचाव की कोई गुंजाइश ही होती थी. लालू यादव पर भी मीसा ऐक्ट के तहत ही कार्रवाई हुई थी. बेटी के जन्म के वक्त लालू मीसा बंदी होने के कारण नहीं पहुंच सके थे. इस त्रासदपूर्ण स्थिति को यादगार बनाए रखने के लिए उन्होंने बेटी का नाम मीसा (मीसा भारती) ही रख दिया. इसके बावजूद लालू की पार्टी आरजेडी ने कांग्रेस से गहरी यारी गांठ ली है. मुलायम सिंह यादव के साथ क्या हुआ था इमरजेंसी में कांग्रेस के नेतृत्व में मंगलवार को विपक्षी दलों ने जब संसद भवन के परिसर में संविधान बचाओ जुलूस निकाला तो उसमें समाजवादी विचारधारा की पार्टियों के सांसद भी शामिल थे. उनमें मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव और बहू डिंपल यादव भी थे. आरजेडी के नवनिर्वाचित सदस्य भी थे. सांसदी का शपथ लेने के दौरान राहुल गांधी के हाथ में संविधान की प्रति थी तो अखिलेश और डिंपल ने भी संविधान की प्रति लेकर ही शपथ ली. अक्तूबर 2022 में जब मुलायम सिंह यादव का निधन हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको श्रद्धाजंजलि देते हुए इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया था- ‘आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के लिए प्रमुख सैनिक थे.‘ यानी इमरजेंसी के दौरान खत्म कर दिए लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई में मुलायम शामिल रहे थे. उन्होंने कांग्रेस का विरोध ऐसा किया कि 1977 के आम चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का नामलेवा भी कोई नहीं बचा. तब से लेकर मुलायम जब तक जीवित रहे, कांग्रेस को यूपी में पनपने नहीं दिया. आज उनके ही बेटे-बहू इमरजेंसी लगाने वाली इंदिरा की वंशावली के सदस्यों के साथ कदमताल करते दिख रहे हैं. आपातकाल की क्रूरता की कहानियां अभी और भी तो हैं -इमर्जेंसी की क्रूरता के खिलाफ महाराष्ट्र के समाजसेवी प्रभाकर शर्मा ने 1976 में आत्मदाह कर लिया था. कोलकाता (तब का कलकत्ता) से प्रकाशित साप्ताहिक ‘रविवार’ ने 9 दिसंबर 1979 को एक स्टोरी छापी थी. उसमें यह जिक्र था कि प्रभाकर शर्मा ने आत्मदाह से पहले तत्कालीन पीएम और इमरजेंसी के लिए जिम्मेदार इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखा था. उस पत्र की कॉपी उन्होंने विनोबा भावे को भी भेजी थी. विनोबा जी ने किसी से इसका जिक्र नहीं किया. उन्होंने ऐसा शायद इसलिए नहीं किया होगा कि सरकारी दमन का भय उन्हें भी सता रहा होगा. सरकारी भय का आलम यह था कि इमर्जेंसी में जिन पत्र-पत्रिकाओं पर सरकर की गाज गिरी थी, उनमें विनोबा भावे की पत्रिका ‘मैत्री’ भी थी, जिसे महाराष्ट्र पुलिस ने जब्त कर लिया था. विनोबा ही उसके संपादक थे. इमरजेंसी के मुद्दे पर विनोबा भावे सच में सरकार के साथ थे या किसी दबाव में, यह तो उन्होंने कभी किसी को नहीं बताया, लेकिन उन्होंने आपातकाल को सार्वजनिक रूप से ‘अनुशासन पर्व’ बता कर अपनी आदरणीय स्थिति को हास्यास्पद बना लिया था. आत्मदाह करने वाले प्रभाकर शर्मा ने पत्र में क्या लिखा प्रभाकर शर्मा ने आत्मदाह से ठीक पहले इंदिरा गांधी को जो पत्र लिखा, उसके मजमून पढ़ कर आप खुद इमरजेंसी के दौरान की स्थिति का आकलन कर सकते हैं. उन्होंने लिखा- ‘इंदिरा जी, मैं आपके पापी राज्य में (जिन्दा) नहीं रहना चाहता….. क्या आपका मीसा (दमनकारी कानून) ईश्वर पर भी लागू होगा ? आपके पापी शरीर के छूटने पर आपके पिट्ठू और रक्षक साथ नहीं जाएंगे. अतः अच्छा तो यही है कि आप प्रायश्चितपूर्वक हृदय से भारतीय जनता से अपने अक्षम्य अपराधों के लिए क्षमा मांगें.’ प्रभाकर शर्मा ने उसके बाद 14 अक्तूबर 1976 को महाराष्ट्र के वर्धा के निकट सुरगांव में अपने शरीर पर तेल छिड़क कर आत्मदाह कर लिया था. (ओमप्रकाश अश्क स्वतंत्र पत्रकार हैं. आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं) Tags: Akhilesh yadav, Emergency 1975, Rahul gadhiFIRST PUBLISHED : June 28, 2024, 18:49 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed