दास्तान-गो: एयर मार्शल अर्जन सिंह न होते तो शायद आज कश्मीर पाकिस्तान का होता!
दास्तान-गो: एयर मार्शल अर्जन सिंह न होते तो शायद आज कश्मीर पाकिस्तान का होता!
Daastaan-Go; Air Marshal Arjan Singh Death Anniversary Special: एक घंटे से भी कम समय में शाम 5.19 बजे भारतीय वायुसेना का पहला लड़ाकू विमान आसमान में गरज रहा था. दुश्मन के हौसले चकनाचूर करने को. वायुसेना की कमान किस स्तर के व्यक्ति ने संभाल रखी थी, इसी से महज़ अंदाज़ा हो सकता है. अगले दो घंटे तक वायुसेना के विमानों ने दुश्मन के इलाकों में 26 बार हमले किए. वैंपायर और मिस्टरेस जैसे लड़ाकू विमान हुआ करते थे तब, उन्हीं से.
दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक़्ती तौर पर मौज़ूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों, तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज़…
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जनाब, साल 1965 की बात है ये. सितंबर का ही महीना था. एक तारीख. शाम के क़रीब साढ़े चार का वक़्त. तब हिन्दुस्तान के सेना प्रमुख जनरल जेएन चौधरी हुआ करते थे. वे अभी-अभी पठानकोट एयरबेस से वायुसेना के विमान से दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर उतरे थे. दोपहर को उन्होंने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था. वहां 15 कॉर्प्स मुख्यालय में उन्होंने सीमा क्षेत्रों के हालात का जाइज़ा लिया था. ख़ास तौर पर छंब-अखनूर सेक्टर में उन्हें हालात बेहद ख़राब होने की जानकारी मिली थी. बताया गया था कि पाकिस्तान ने पूरी लड़ाई छेड़ दी है. उसकी सेनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं. भारतीय सेना इस रणनीतिक हमले के लिए ठीक से तैयार नहीं थी. वह पूरी ताक़त से दुश्मन का मुक़ाबला कर रही है. फिर भी, कई मायनों में उसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. अगर जल्द कुछ न किया गया तो मुमकिन है, पाकिस्तानी सेना ऐसी रणनीतिक जगह पर पहुंच जाए, जहां से वह जम्मू-कश्मीर को बाकी हिन्दुस्तान से काट दे.
यहां ग़ौर करने की बात ये भी है कि 1965 की यह लड़ाई पाकिस्तान की तरफ़ से पूरी तरह अघोषित थी. पाकिस्तान में राष्ट्रपति के ओहदे पर उस वक़्त जनरल अय्यूब खान बैठे हुए थे. सेना की कमान भी उन्हीं के हाथ में थी. उन्होंने पूरी तरह सोच-समझकर फ़ौजी-मंसूबा बांधा था. शुरुआत उन्होंने उसी साल अप्रैल के महीने से की थी. सबसे पहले कच्छ के रण पर हमला किया था. वहां उन्हें कुछ काम़याबी भी हासिल हुई. इसके बाद कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर चलाया था. इसके जरिए कश्मीर की जनता में विद्रोह भड़काने की कोशिश की गई थी. साथ ही वहां के संचार-तंत्र, परिवहन आदि को नुकसान पहुंचाने की भी. इसके लिए तमाम पाकिस्तानी घुसपैठिए हिन्दुस्तान की सरहद के भीतर दाख़िल कराए गए थे. हालांकि यहां सेना ने स्थिति को कुछ हद तक संभाल लिया था. लेकिन इससे पाकिस्तान की हौसले बलंद हो चुके थे, बड़ा जोख़िम लेने के लिए.
इसी के बाद पाकिस्तान की फ़ौज ने ‘ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम’ के नाम से सीधी लड़ाई छेड़ दी थी. अब तक सेना ही इन तमाम मामलों से सीधा मुक़ाबला कर रही थी. भारतीय वायुसेना को सरकार ने अब तक फ़ौजी दख़लंदाज़ी की इजाज़त नहीं दी थी. यहां तक कि रणनीतिक चर्चाओं में भी भारतीय वायुसेना के प्रमुख को शामिल नहीं किया जा रहा था. लेकिन अब, जबकि छंब-अखनूर सेक्टर में पाकिस्तानी फ़ौज घुस आई तो हालात लगभग क़ाबू से बाहर होने वाले थे. इसीलिए सेना प्रमुख घबराए हुए थे. मुल्क एक और लड़ाई (चीन से 1962 के युद्ध के बाद) और वह भी पाकिस्तान से, हार नहीं सकता था. जम्मू-कश्मीर गंवा नहीं सकता था. इसीलिए जनरल चौधरी ने शायद दिल्ली पहुंचने के रास्ते में ही, मन में तय कर लिया था कि वायुसेना की मदद लेनी है. और वे इस फ़ैसले पर सरकार की मुहर लगवाने के लिए भागते-दौड़ते दिल्ली के कंट्रोल रूम में पहुंचे थे.
हवाई अड्डे पर उतरते वक़्त उन्होंने भारतीय वायुसेना के प्रमुख (सीएएस) को साथ ले लिया. सीएएस अर्जन सिंह. बीते साल एक अगस्त को ही उन्होंने यह ओहदा संभाला था. महज 45 साल की उम्र में. यह वही अर्जन सिंह थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान के आज़ाद होते ही 15 अगस्त 1947 को लाल किले के ऊपर से वायुसेना के सौ से अधिक विमानों की सलामी उड़ान (फ्लाई पास्ट) की अगुवाई की थी. उसी दिन ग्रुप कैप्टन की हैसियत से वायुसेना स्टेशन, अंबाला की कमान संभाली थी. ये वही अर्जन सिंह थे, जिनकी बहादुरी की क़ायल अंग्रेज सरकार भी रही थी. इन्होंने 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के अभियान में जापानी फ़ौज के पैर उखाड़ने में अहम किरदार अदा किया था. तब लड़ाकू विमानों के हमले की अगुवाई की थी. इंफाल में इन्होंने जो ज़ौहर दिखाए उससे ख़ुश होकर उसी साल अंग्रेज सरकार ने इन्हें विशिष्ट फ्लाइंग क्रॉस (डीएफसी) दिया था.
जनरल चौधरी ने उन सीएएस अर्जन सिंह को हवाई अड्डे से डिफेंस हैडक्वार्टर पहुंचने तक रास्ते में जितना भी वक़्त था, उसी में छंब-अखनूर के हालात की कुछ जानकारी दे दी थी. इसके बाद वे दोनों कंट्रोल रूम में रक्षा मंत्री वाईबी चह्वाण से मिलने पहुंचे थे. सीओएएस (चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ) चौधरी ने रक्षा मंत्री को बताया, ‘जनाब, हालात बहुत ख़राब हो रहे हैं. हमें तुरंत ही वायुसेना को पाकिस्तानी इलाकों में हमले का आदेश देना होगा. हमारे पास इतना वक़्त नहीं है कि ईसीसी (इमरजेंसी कमेटी ऑफ कैबिनेट) से भी मशवरा किया जाए. आप ही अपने स्तर पर फ़रमान जारी कर दीजिए. यही, बेहतर होगा’. रक्षा मंत्री चह्वाण ने कुछ देर सोचा और फिर सीएएस अर्जन सिंह की तरफ़ मुख़ातिब होकर बोले, ‘आपकी फ़ौज को तैयारी के लिए कितना वक़्त लगेगा’. ‘एक घंटे जनाब’, बस इतना ही ज़वाब था सीएएस अर्जन सिंह का. बोलते कम, करते ज़्यादा थे वह.
इस वक़्त शाम के लगभग 4.50 हो रहे थे. रक्षा मंत्री ने अपने स्तर पर थोड़ा सोचा और फिर बोले, ‘ठीक है. आप हमले की तैयारी कीजिए’. इतना सुनते ही सीओएएस और सीएएस रक्षा मंत्री के कमरे से बाहर निकल गए. ताकि उन इलाकों की पहचान की जा सके, जहां वायु सेना के लड़ाकू विमानों को बमबारी करनी है. इसी बीच, रक्षा मंत्री ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से मशवरा किया. उन्होंने भी रक्षा मंत्री के फ़ैसले पर अपनी मुहर लगाने में देर नहीं की. मगर हिदायत ज़रूर दी, ‘हमें पाकिस्तान के इलाकों पर क़ब्जे का मंसूबा लेकर हमला नहीं करना है. सिर्फ़ उसकी फ़ौज का हौसला तोड़ना है. बाकी लड़ाई के ध्येय बाद में तय किए जाएंगे’. इसके बाद रक्षा मंत्री के दफ़्तर ने प्रधानमंत्री से हरी झंडी मिलने की इत्तिला सीओएएस और सीएएस तक पहुंचा दी. प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के सलाह-मशवरे में अब तक दस-पंद्रह मिनट का वक़्त और गुज़र चुका था.
लेकिन जनाब, भारतीय वायुसेना के जांबाज़ों का हौसला देखिए. उन्होंने अपने मुखिया की ज़ुबान को मिनटों में सच साबित कर दिखाया. एक घंटे से भी कम समय में शाम 5.19 बजे भारतीय वायुसेना का पहला लड़ाकू विमान आसमान में गरज रहा था. दुश्मन के हौसले चकनाचूर करने को. वायुसेना की कमान किस स्तर पर के व्यक्ति ने संभाल रखी थी, इसी से महज़ अंदाज़ा हो सकता है. अगले दो घंटे तक वायुसेना के विमानों ने दुश्मन के इलाकों में 26 बार हमले किए. वैंपायर और मिस्टरेस जैसे लड़ाकू विमान हुआ करते थे तब, उन्हीं से. छंब, अखनूर और पठानकोट से लगे पाकिस्तानी इलाकों और उसके कब्ज़े वाले इलाके में चुन-चुनकर पाकिस्तानी फ़ौज के ठिकानों को ज़मींदोज़ किया. अलबत्ता उनकी फ़ौज शायद इस हमले के लिए भी तैयार थी. इसीलिए शायद उसे हिन्दुस्तान के चार वैंपायर लड़ाकू विमानों को गिराने में भी कामयाबी हासिल हो गई.
लेकिन वायुसेना का सपोर्ट मिलने पर हिन्दुस्तान की ज़मानी फ़ौज का अब तक हौसला चार गुना बढ़ चुका था. वह भी जोश के साथ दुश्मन के पैर उखाड़ने लगी थी. आसमान और ज़मीन से एक साथ उतरी आफ़त का पाकिस्तानी फ़ौज के लिए सामना कर पाना मुश्किल हो गया. उसके पैर ही नहीं, सांसें भी उखड़ने लगीं. इस बीच, सीओएएस जनरल चौधरी और दूसरे रणनीतिकारों को इधर रणनीति बनाने का पर्याप्त वक़्त मिल गया था. इस सबका मिला-जुला नतीज़ा? हिन्दुस्तान ने न सिर्फ़ जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तानी कब्ज़े में जाने से बचाया, बल्कि आगे चलकर पाकिस्तान को इस लड़ाई में बुरी तरह शिक़स्त भी दी. ऐसी कि जिसे वह अपनी तारीख़ में अब तक भूल नहीं पाया. ऐसे थे, हिन्दुस्तान के इकलौते पांच सितारा एयर मार्शल अर्जन सिंह, जिन्होंने आज की ही तारीख़ में, यानी 16 सितंबर को इस दुनिया से अलविदा कहा था. साल 2017 में.
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(नोट- यह दास्तान लिखने में इंडियन आर्मी डॉट एनआईसी डॉट इन पर मौजूद एयर मार्शल वीके भाटिया के लेख और इंडियन एयरफोर्स डॉट एनआईसी डॉन इन जैसी प्रामाणिक जगहों पर उपलब्ध अन्य सामग्री से मदद ली गई है.)
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Tags: Hindi news, IAF, Indo Pakistan War 1965, Jammu kashmir, up24x7news.com Hindi OriginalsFIRST PUBLISHED : September 16, 2022, 07:11 IST