Kabir Jayanti 2024: प्रतिमा सकल तो जड़ है बोले नहिं बोलाय देखा- कबीर दास
Kabir Jayanti 2024: प्रतिमा सकल तो जड़ है बोले नहिं बोलाय देखा- कबीर दास
कबीर दास का जन्म 1398 को वाराणसी में हुआ था और उनकी मृत्यु 1518 को मगहर गांव में हुई थी. यह उस समय का दौर था जब सिकंदर लोदी (1458-1517) ने दिल्ली के सिंहासन पर शासन किया था. कबीर उस आदमी से भी मिले थे. लोदी 1498 में वाराणसी पहुंचे थे. रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कबीर के 100 पद के अपने अनुवाद में इसका जिक्र किया था.
मन तू पार उतर कहां जैहौ।
आगे पन्थी पन्थ न कोई कूच मुकाम न पैहौ॥
नहिं तहं नीर नाव नहिं खेवट ना गुण खैचन हारा।
धरणी गगन कल्प कछु नाहीं ना कछु वार न पारा॥
नहिं तन नहिं मन अपन पौ सुन में सुद्ध न पैहौ।
बलीवान होय पैठो घट में वाहीं ठौरें होई हो ॥
बारहि बार विचार देख मन अन्त कहूँ मत जैहौ।
कहैं कबीर सब छाँड़ि कल्पना ज्यों का त्यों ठहरैहौ ।
अरे मन, तुम नदी पारकर, कहां जाना चाहते हो? इस किनारे पर, जहां तुम्हारे साथ कोई पथिक नहीं है और न सामने कोई पथ; वहां न तो कोई गति है, न ही कोई विराम और न कोई किनारा? न तो वहां जल है और न नौका; न तो मल्लाह और न रस्सी और न इसे खींचनेवाले लोग. धरती आकाश, काल वहां कुछ भी नहीं. न तो वहां घाट है और न पार! वहां न तन है और न मन; आत्मा की प्यास जहां शान्ति पा सके, वह स्थान कहां है? तुम्हें उस शून्यता में कुछ भी प्राप्त नहीं होगा. तुम दृढ़ बनकर अपने घट-देह में प्रवेश करो! तुम इसी में अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करोगे. अरे मन, बार-बार विचार कर देखो, कहीं दूसरी जगह मत जाओ! कबीर कहते हैं, “सारी कल्पनाएं छोड़कर जैसे हो, वैसे ही डटे रहो!”
जिससे रहनि अपार जगत में सो प्रीत मुझे पियारा हो॥
जैसे पुरइन रहि जल भीतर जलहिं में करत पसारा हो।
वाके पानी पत्रा न लागै ढरकी चलै जस पारा हो॥
जैसे सती चढ़े अगिन पर प्रेम वचन न टारा हो।
आप जरै औरन को जारै राखै प्रेम मरियादा हो॥
भवसागर एक नदी अगम है अहद अगाह धारा हो।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो बिरले उतरे पारा हो॥
वह प्रेम ही मेरे प्राणों को सबसे प्रिय है. कमल जिस तरह जल में रहकर विकसित और पुष्पित होता है लेकिन उसके पत्तों पर जल नहीं ठहर पाता- वे पत्र जल की पहुंच से परे ऊपर अवस्थित होते हैं. जिस तरह पत्नी आग में प्रवेश कर जाती है किन्तु अपने प्रेमादेश का उल्लंघन नहीं करती, स्वयं तो आग में जल मरती है, अन्य को भी शोकाहत कर देती है और इस प्रकार प्रेम को कभी लांछित नहीं होने देती. यह संसार एक अपार सागर है, इसकी जलराशि असीम और अगाध है. कबीर कहते हैं, “अरे भाई साधो, इसे कोई विरला ही पार कर पाता है.”
तीरथ में तो सब पानी है होबै नहीं कछु अन्हाय देखा।
प्रतिमा सकल तो जड़ है, बोले नहिं, बोलाय देखा॥
पुरान कोरान सब बात है, जा घट का परदा खोल देखा।
अनुभव की बात कबीर कहैं यह सब है झूठी पोल देखा॥
तीर्थों के स्नान घाटों पर तो केवल पानी है और मैं जानता हूं कि वे बेकार हैं— यह मैंने स्नान कर देख लिया है. प्रतिमाएं निर्जीव होती हैं, वे कुछ भी नहीं कहीं- मैंने पुकार कर देख लिया है. पुराण और कुरान तो मात्र शब्द-भंडार हैं; उसी में मैंने पर्दा उठाकर देखा है. कबीर केवल अनुभवजन्य बातें करते हैं; और वह अच्छी तरह जानते हैं कि अन्य सारी बातें खोखली और मिथ्या हैं.
किताब – कबीर के सौ पद
चयन एवं व्याख्या – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
बांग्ला से अनुवाद एवं संपादन – रणजीत साहा
प्रकाशक – राधाकृष्ण प्रकाशन
Tags: Hindi Literature, Hindi WriterFIRST PUBLISHED : June 22, 2024, 16:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed