केजरीवाल ने आखिर आतिशी को ही क्यों चुना पर्दे के पीछे की इनसाइड स्टोरी
केजरीवाल ने आखिर आतिशी को ही क्यों चुना पर्दे के पीछे की इनसाइड स्टोरी
खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले अरविंद केजरीवाल ने आतिशी को ही दिल्ली का मुख्यमंत्री क्यों चुना? केजरीवाल अब आगे क्या करने वाले हैं? बीते 12 साल में केजरीवाल खुद कैसे बदल गए? पढ़िए इनसाइड स्टोरी...
यह तय हो गया कि आतिशी मार्लेना सिंह दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी. यह कोई चौंकाने वाला नाम नहीं है, लेकिन आम आदमी पार्टी के करीब 12 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि यह पद केजरीवाल के अलावा किसी दूसरे नेता के पास गया हो. भले ही यह किसी राजनीतिक मजबूरी का ही नतीजा हो.
पहले समझते हैं कि आतिशी को ही केजरीवाल की जगह मुख्यमंत्री बनाने के लिए क्यों चुना गया? केजरीवाल मंत्रिमंडल में वह इकलौती महिला मंत्री थीं. पाक-साफ छवि की हैं. विवादों से दूर रही हैं. बतौर मंत्री कई बड़े विभाग संभालने के चलते ज़्यादातर नौकरशाहों के संपर्क में रही हैं और उनसे अच्छा तालमेल बनाने में भी कामयाब रही हैं.
केजरीवाल ने 15 सितंबर को अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए साफ कर दिया था कि वह जनता से ‘ईमानदारी का सर्टिफिकेट’ मांगने के लिए निकलने वाले हैं और ईमानदारी के नाम पर ही आने वाले चुनाव में वोट मांगने वाले हैं. भ्रष्टाचार के आरोप के चलते जेल जा चुके केजरीवाल ने जिन परिस्थितियों में पद छोड़ा है और आगे जिस मुद्दे (ईमानदारी) पर जनता के सामने जाने वाले हैं, उसे देखते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ऐसे व्यक्ति का होना नितांत जरूरी है जो पाक-साफ छवि का हो. साथ ही, जिसकी एक अपील भी हो. सो, आतिशी से बेहतर विकल्प हो नहीं सकता था.
12 साल में बहुत बदल गए केजरीवाल और उनकी राजनीति
12 साल के राजनीतिक जीवन में अरविंद केजरीवाल ने अपने आपको बहुत बदला है. यह बात अलग है कि ये बदलाव उन्हें आम नेताओं के करीब ही ले जाने वाले रहे, उनसे अलग करने वाले नहीं. केजरीवाल जब राजनीति में आए थे तो उन्होंने वादा किया था कि वह अलग तरह की राजनीति करेंगे. उनका कहना था कि वह राजनीति को बदलने के लिए राजनीति में आ रहे हैं. जैसा सब जानते ही हैं कि उन्होंने राजनीति में आने का फैसला तब किया था जब वह एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में नायक बन कर उभरने के बाद अचानक काफी लोकप्रिय हो गए थे. वह उस समय की राजनीति से ऊब चुके लाखों लोगों की उम्मीद बन गए थे.
लोगों ने उनके वादे पर यकीन किया था और माना था कि केजरीवाल के नेतृत्व में उन्हें दिल्ली-देश में एक नई तरह की, साफ-सुथरी और सही मायनों में जनपक्षधर राजनीति देखने को मिलेगी. शुरुआत में उनकी राजनीति देख कर लोगों को ऐसा लगने भी लगा था. लेकिन, बीतते वक़्त के साथ जनता की उम्मीद धुंधली पड़ती गई और केजरीवाल का ‘खास नेता’ से ‘आम नेता’ में ट्रांसफॉरमेशन होता चला गया.
बहुत बदल कर भी दो मामलों में अलग है आप
बीजेपी पर कांग्रेस से भी ज्यादा हमलावर रहने वाले अरविंद केजरीवाल एक परिपक्व नेता बन गए लगते हैं. लेकिन, बहुत कुछ बदल जाने के बावजूद कुछ मामलों में आज भी अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) अलग है.
आम आदमी पार्टी को आप इस मायने में बाकी पार्टियों से अलग रख सकते हैं कि उसकी पहचान किसी जाति विशेष के वोट बैंक से नहीं जुड़ी है. इसकी वजह आप यह मान सकते हैं कि पार्टी दिल्ली केन्द्रित है, जहां जाति का फैक्टर देश के बाकी किसी इलाके की तुलना में कम काम करता है.
दिल्ली की राजनीति का ऐसा मिजाज पहले भी नहीं रहा. सीएसडीएस के संजय कुमार ने 2013 में आई अपनी किताब ‘चेंजिंग इलेक्टोरल पॉलिटिक्स इन डेल्ही फ्रॉम कास्ट टु क्लास’ में लिखा है कि दिल्ली में हमेशा से वोटिंग जाति के बजाय वर्ग के आधार पर होती रही है. आमतौर पर हर जाति के गरीब लोग कांग्रेस और समृद्ध लोग भाजपा के पक्ष में वोटिंग करते रहे हैं.
आप को मिलने वाले वोट प्रतिशत से भी यह साफ है कि उसे मिलने वाला समर्थन जातिगत वोट बैंक से परे है. 2013 में अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में आप ने 37 फीसदी वोट (भाजपा से चार प्रतिशत ज्यादा) हासिल किए थे. इसके बाद 2015 और 2020 में उसे 55 फीसदी से अधिक ही वोट मिले.
शिक्षा के मुद्दे को पार्टी की पहचान से जोड़ा
एक और बात जो आप को अन्य पार्टियों से अलग करती है, वह है शिक्षा का मुद्दा. सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को मुद्दा बना कर इस दिशा में किए गए काम को अपनी सरकार और पार्टी की पहचान से जोड़ देना वाकई आज के राजनीतिक दौर में दिखना दुर्लभ हो गया है.
बाकी आदर्श ‘आर्काइव’ में दफन!
इन दो बड़े मुद्दों को छोड़ दें तो पार्टी को जो बातें बाकी दलों से अलग बनाती थीं वो अब अतीत में दफन हो गई हैं. पार्टी खुद भी उन बातों को याद करना नहीं चाहती. पहले पार्टी अपनी वेबसाइट पर बताया करती थी कि वह बाकी पार्टियों से अलग क्यों और कैसे है? पर अब यह जानकारी आर्काइव में धकेल दी गई है.
खुद को अलग बताने के क्रम में आम आदमी पार्टी अपने को 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का राजनीतिक वारिस बताती थी. आज पार्टी के करीब दर्जन भर बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं और इसी आरोप की वजह से अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी है.
दूसरों से खुद को अलग साबित करने के लिए आम आदमी पार्टी ने जो दूसरा सबूत दिया था, या कहें कारण बताया था, वह था- चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता. उसका कहना था कि आप इकलौती पार्टी है जो चुनाव आयोग और इंकमटैक्स विभाग को प्रत्येक दानदाता की जानकारी देती है, जबकि कानूनन केवल उन्हीं की देनी होती है जिनसे कम से कम 2000 रुपए चंदा लिया हो.
आप का यह दावा भी बदलते वक़्त के साथ विवादों में घिर गया. सितंबर 2018 में चुनाव आयोग ने पार्टी को एक कारण बताओ नोटिस भेजा था. चंदे की रकम छिपाने, हवाला ऑपरेटर्स से पैसे लेने और पार्टी की वेबसाइट और चुनाव आयोग को भेजी गई जानकारी एक जैसी नहीं होने का आरोप लगाते हुए पार्टी को यह नोटिस भेजा गया था. आप ने इन आरोपों को पूरी तरह गलत और नोटिस को राजनीतिक बदले से की गई कार्रवाई बताया था. वैसे सितंबर 2023 में आप ने चंदे की जो रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपी है, उसमें 25-30 रुपए के चंदे का भी जिक्र है. यह बात अलग है कि एक ही आदमी ने कई-कई बार 30 रुपए का चंदा दिया है.
खारिज करने का वादा करके वीआईपी संस्कृति में रच-बस गए
आप ने खुद को अन्य दलों से अलग बताते हुए एक कारण बताया था ‘वीआईपी संस्कृति को खारिज करना’. केजरीवाल शुरुआती दौर में वैगनआर कार में चला करते थे, साधारण घर में रहते थे. पर कुछ समय बाद उनकी कार भी शानदार हो गई और बंगला भी आलीशान बन गया.
इन बदलावों से गुजरकर आप आज एक नए दौर से गुजर रही है. इस दौर का निर्णायक सफर केजरीवाल शुरू करने ही वाले हैं. इसका अंजाम चुनाव के बाद ही पता चलेगा.
Tags: Atishi marlena, CM Arvind Kejriwal, Delhi AAP, Delhi latest newsFIRST PUBLISHED : September 17, 2024, 18:29 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed