कांग्रेस के बाद देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी शिरोमणि अकाली दल पर अब संकट के ‘बादल’ छाए हुए है. कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अकाली दल पर संकट के बादल नहीं बल्कि खुद बादल संकट बनकर बरस रहे हैं और जल्द ही इस बादल को दूर नहीं किया गया तो पार्टी गर्त में जा सकती है. सिखों के प्रमुख प्रतिनिधि के तौर पर 14 दिसंबर, 1920 को अकाली दल का गठन किया गया था.
पिछले 3 दशक से शिरोमणि अकाली दल पर बादल परिवार का कब्जा है. ताजा मामला यह है कि SAD के अध्यक्ष सुखबीर बादल के खिलाफ उनके ही दल के बड़े नेताओं बगावत का बिगुल फूंक दिया है. बगावती अकाली नेताओं ने आपातकाल की बरसी के दिन 25 जून अलग-अलग जगहें बैठकें कर सुखबीर सिंह बादल को अध्यक्ष पद छोड़ने को कहा. उधर, सुखबीर सिंह का आरोप है कि यह सब भारतीय जनता पार्टी का किया धरा है. बीजेपी ही अकाली दल के नेताओं को भड़का रही है.
चुनाव में लगातार मिलती हार और बादल परिवार
मामला दरअसल ये है कि लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल को करारी हार मिली थी. शिअद को 13 में से केवल एक सीट पर ही जीत हासिल हुई थी. लोकसभा चुनाव से पहले 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में भी अकाली दल को बुरी तरह से हाल मिली थी. हालांकि पार्टी अध्यक्ष सुखबीर के खिलाफ बगावती सुर तो विधानसभा चुनाव के बाद से ही फूटने शुरू हो गए थे. 2022 में विधानसभा चुनाव के बाद शिरोमणि अकाली दल में संगठनात्मक ढांचे में बदलाव की आवाज उठी थी. संगठन में फेरबदल की जरूरत के बारे में पता लगाने के लिए पूर्व विधायक इकबाल सिंह झूंदा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सुखबीर सिंह बादल ने संगठनात्मक ढांचा तो भंग कर दिया, लेकिन खुद अध्यक्ष बने रहे.
लेकिन लोकसभा चुनाव की हार ने इसमें आग में घी डालने का काम किया. लोकसभा चुनाव की हार से अकाली दल के नेताओं को अपने पैरों तले जमीन खिसकती नजर आ रही है और यही वजह है कि अब दल के कुछ नेता संगठन में बदलाव की मांग कर रहे हैं. जालंधर में हुई बैठक में बागी नेताओं ने कहा कि 1 जुलाई से शिरोमणि अकाली दल बचाओ आंदोलन चलाया जाएगा. इस बैठक में पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर, पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा सहित कई नेता शामिल हुए.
इन नेताओं का तर्क है कि अब सुखबीर सिंह बादल में नेतृत्व क्षमता लगातार कमजोर हो रही है. ऐसे में उन्हें अपने पद को त्याग कर किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में कमान देनी चाहिए जो संगठन को फिर से एकजुट करके राजनीति में पुराना दर्जा दिला सके.
3 दशक से बादल परिवार का कब्जा
शिरोमणि अकाली दल पर पिछले 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा है. 1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रमुख बने थे. इस पद पर वे 2008 तक बने रहे. 2008 के बाद शिअद की कमान उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई.
अकेला पड़ता अकाली दल
किसी जमाने में पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में अकाली दल की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभुत्व समाप्त होता चला गया. आलम ये है कि अब इसके पास लोकसभा की केवल एक सीट है. विधानसभा में भी इसका प्रभाव लगातार खत्म हो रहा है.
1996 से 2019 तक शिरोमणि अकाली दल पंजाब में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ता रहा. 2007 से 2017 तक दोनों दलों ने मिलकर पंजाब में सरकार चलाई. लेकिन किसानों के मुद्दे पर दोनों दलों के बीच खटास आ गई और दोनों की राह भी अलग-अलग हो गई. 2022 में शिअद ने बीजेपी से नाता तोड़कर बीएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. लगातार राजनीतिक जमीन खोता शिरोमणि अकाली दल अब इस बगावत से कैसे निपटेगा यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि अब नेतृत्व परिवर्तन का समय आ गया है.
Tags: Akali dal, Punjab news, Shiromani Akali Dal, Sukhbir singh badalFIRST PUBLISHED : June 26, 2024, 14:55 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed