यहां होता है 5 नदियों का संगम महाभारत काल से जुड़ा इतिहास

इटावा जिले के लोगों की वर्षों से यह मांग रही है कि पंचनदा को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.

यहां होता है 5 नदियों का संगम महाभारत काल से जुड़ा इतिहास
इटावा: अगर आप देश-दुनिया में पांच नदियों के इकलौते संगम का दीदार करना चाहते हैं, तो आपको उत्तर प्रदेश के इटावा के बीहड़ों में स्थित ‘पंचनदा’ आना होगा. चंबल के खतरनाक बीहड़ों के बीच, जहां पांच नदियों का संगम होता है, इस स्थान को ‘पंचनदा’ के नाम से जाना जाता है. इटावा जिले के लोगों की वर्षों से यह मांग रही है कि पंचनदा को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. पंचनदा, इटावा जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर बिठौली गांव में स्थित है. यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, और राजस्थान से लाखों श्रद्धालु आते हैं. इकलौता स्थान, जहां पांच नदियों का संगम होता है विश्व में दो नदियों का संगम कई स्थानों पर देखा जा सकता है, और तीन नदियों का दुर्लभ संगम प्रयागराज (इलाहाबाद) में स्थित है, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन, इटावा का पंचनदा वह अनोखा स्थान है, जहां पांच नदियों — यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु, और पहुज — का संगम होता है. इसके बावजूद, यह स्थान धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व में प्रयागराज के त्रिवेणी संगम से पीछे रह गया है, जिसे धार्मिक मान्यता प्राप्त है. हालांकि, पंचनदा का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है. माना जाता है कि यह स्थान महाभारतकालीन सभ्यता से जुड़ा हुआ है और पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहां बिताया था. महाकालेश्वर मंदिर और ऐतिहासिक महत्व पंचनदा संगम पर स्थित महाकालेश्वर मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहां साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है. इस मंदिर का इतिहास लगभग 800 ईसा पूर्व तक जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहां महेश्वरी की पूजा करके सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था. इसीलिए हरिद्वार, बनारस, और प्रयागराज से साधु-संत यहां दर्शन के लिए आते हैं. पंचनदा की भौगोलिक और सांस्कृतिक चुनौतियां इस पवित्र स्थल को अब तक अन्य तीर्थस्थलों जैसी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई है, जिसका मुख्य कारण यहां का कठिन भौगोलिक क्षेत्र है. पंचनदा का एक और प्राचीन मंदिर बाबा मुकुंदवन की तपस्थली के रूप में जाना जाता है. कहा जाता है कि संवत 1636 के आसपास, गोस्वामी तुलसीदास यहां पहुंचे थे और बाबा मुकुंदवन ने उन्हें यमुना की तेज धार पर चलकर पानी पिलाया था. स्थानीय विशेषज्ञों की राय इटावा के चौधरी चरण सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य और वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. शैलेंद्र शर्मा का मानना है कि पंचनदा का अपना विशेष महत्व है, और यह स्थान चंबल के बीहड़ों में होने के बावजूद आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इटावा के जिला वन अधिकारी अतुल कांत शुक्ला के अनुसार, पंचनदा पर अथाह जल प्रवाह होता है और यहां विभिन्न प्रकार के दुर्लभ वन्यजीवों को देखा जा सकता है. साथ ही, यहां की शांति भी अद्वितीय है. पंचनदा, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद, आज भी व्यापक मान्यता का इंतजार कर रहा है. इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाना न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा, बल्कि इस अद्वितीय स्थान को वैश्विक पटल पर भी पहचान दिलाएगा. Tags: Local18, Religion 18FIRST PUBLISHED : August 17, 2024, 11:20 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ेंDisclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed