बीजेपी की कश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था आखिर कैसे बिगड़ा बना बनाया खेल

बीजेपी की कश्ती वहीं डूबी जहां पानी कम था आखिर कैसे बिगड़ा बना बनाया खेल
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी, ये लाइन बीजेपी पर बिल्कुल फिट बैठती है. चुनाव से पहले एक आम धारणा थी कि बुरी स्थिति में भी बीजेपी 272 का आंकड़ा पार कर लेगी और एनडीए का आंकड़ा भी निम्नतम 300 पार होगा. लेकिन जब नतीजे आए तो बीजेपी को उम्मीदों से काफी कम 240 सीट ही मिलीं और एनडीए का नंबर भी 300 के अंदर ही रहा. और ये तब हुआ जब बीजेपी ने मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा की 76 में से 74 सीट पर कब्जा किया. दक्षिण के राज्यों में भी तमिलनाडु को छोड़ बीजेपी का प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक ही रहा. दरअसल बीजेपी का सबसे बड़ा पेच देश के तीन सबसे बड़े सूबे में फंसा. उत्तर प्रदेश (80), महाराष्ट्र (48), पश्चिम बंगाल (42) की कुल 150 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ 54 सीट मिलीं. यानी 2019 के मुकाबले इन तीन राज्यों में 49 सीट कम मिलीं. हालांकि, बीजेपी इन तीन राज्यों से कम से कम 110-120 सीट का उम्मीद लगाए बैठी थी. जाहिर है बीजेपी को बहुमत से दूर रखने में इन तीन राज्यों की सबसे अहम भूमिका रही. खासकर उत्तर प्रदेश में जहां के नतीजों ने बीजेपी को हिलाकर रख दिया. 2019 में बीजेपी को यूपी से 62 सीट मिली थीं. लेकिन इस बार बीजेपी का आंकड़ा 33 पर आकर रुक गया और वो सीट जीतने के मामले में समाजवादी पार्टी के बाद दूसरे नंबर पर पहुंच गई. अब जरा सोचिए जिस अयोध्या में इसी साल श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीराम की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा हुई उसी अयोध्या में बीजेपी के उम्मीदवार लल्लू सिंह चुनाव हार गए. उत्तर प्रदेश के नतीजों ने बीजेपी का सारा बना बनाया खेल ही बिगाड़ दिया. अब सवाल ये उठता है कि बीजेपी का ये हाल क्यों हुआ वो भी तब डबल इंजन की सरकार के दम पर बीजेपी यूपी को सबसे विकसित राज्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही थी. तो विकास के साथ राम मंदिर और दूसरे कई मुद्दे भी थे, तो आखिर कमी कहां रह गई? बीजेपी ने : स्थानीय मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया. मौजूदा सांसदों के खिलाफ नाराजगी को नजरअंदाज किया. देश भर में सबसे कम अनुपात में यूपी के मौजूदा सांसदों के टिकट काटे. दरअसल, बीजेपी ने यूपी में स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज किया. ‘वोकल फोर लोकल’ का नारा लगाने वाली बीजेपी ने टिकट के बंटवारे कुछ स्थानीय मुद्दों की वजह से आम जनता नाराज थी ही साथ ही जब अलोकप्रिय सांसद फिर से चुनावी मैदान में दिखे तो उनका ये गुस्सा डबल हो गया. दरअसल बीजेपी मोदी के चेहरे पर तो चुनाव लड़ रही थी उसमें कोई दिक्कत भी नहीं थी. पीएम मोदी ने ताबड़तोड़ रैली कर बीजेपी समर्थकों में उत्साह भरने में भी कोई कमी नहीं की. लेकिन स्थानीय मुद्दों को लेकर बीजेपी में उतनी संजीदगी नहीं दिखाई जो उसे दिखानी चाहिए थी. विपक्ष बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव पर नैरेटिव गढ़े जा रहा था. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी लोगों को ये भरोसा दिलाने में कामयाब रही कि बीजेपी 400 से ज्यादा सीट संविधान को बदलने के लिए चाहती और इस बार वो आरक्षण को खत्म कर देगी. लेकिन बीजेपी ने विपक्ष को कमजोर आंक कर उन्हें गंभीरता से लिया ही नहीं. लोकल मुद्दों को नजरअंदाज करने की वजह से बीजेपी को भारी नुकसान हुआ और कई सीट उसने बड़े कम अंतर से गंवाए. नतीजा ये हुआ कि 2019 के मुकाबले इस बार यूपी में बीजेपी की सीट आधी रह गईं. सिर्फ यूपी में सीट कम होने से बीजेपी बहुमत के जादुई आंकड़े से दूर रह गई. ऐसा ही हाल पश्चिम बंगाल में हुआ. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस- टीएमसी स्थानीय मुद्दों को आगे कर चुनावी मैदान में ताल ठोक रही थी. हालांकि बीजेपी ने संदेशखाली कांड और भ्रष्टाचार को लेकर ममता बनर्जी को घेरने की तो खूब कोशिश की. लेकिन ममता दीदी चालाकी दिखाते हुए मां, मानुष और माटी के मुद्दे पर जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहीं. और हार के बड़े खतरे के बीच टीएमसी पिछली बार के मुकाबले 7 ज्यादा सीट जीत गईं. इसी तरह महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक में भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाया. प्रधानमंत्री मोदी के अपील को काटने के लिए विपक्षी दलों ने स्थानीय मुद्दों को तो भुनाया ही साथ ही जाति कार्ड भी खूब खेला. बीजेपी केंद्र सरकार के कामों को तो गिनाती रही लेकिन स्थानीय स्तर पर लोगों के मूड को पकड़ने में नाकाम रही. बीजेपी सरकार के 10 साल के एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर शायद भूल गई लेकिन कमजोर दिख रहा विपक्ष ने इसे अपना हथियार बना लिया. इसे विडंबना कहें या कुछ और लेकिन सच तो ये है कि जिस बीजेपी को उत्तर और पश्चिम की पार्टी माना जाता था, वही बीजेपी पहली बार सच्चे मायने में पैन इंडिया पार्टी के तौर पर उभरी. बीजेपी ने पूर्व के दो राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पैर जमाने में सफल हुई. ओडिशा में तो पहली बार बीजेपी की अपनी सरकार बनने जा रही है. दक्षिण में बीजेपी को तेलंगाना में पिछली बार की तुलना में इस बार डबल (8) सफलता मिली. वहीं आंध्र प्रदेश में भी लोकसभा की 3 सीट जीतने के अलावा वहां टीडीपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनने जा रही है. हालांकि तमिलनाडु में को बीजेपी खाता खोलने में भी नाकाम रही लेकिन केरल से पहली बार कोई बीजेपी का लोकसभा सांसद चुना गया है. इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद बीजेपी बहुमत का आंकड़ा नहीं छू पाई. लेकिन पूर्ण बहुमत वाला एनडीए सरकार के गठन के साथ ही पीएम मोदी लगातार तीसरी बार पीएम बनने का इतिहास भी रचेंगे. Tags: BJP, Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Narendra modiFIRST PUBLISHED : June 6, 2024, 20:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed