उद्धव को लेकर पसोपेश में BJP बाल ठाकरे की दोस्ती का कर्ज उतारेंगे PM मोदी
उद्धव को लेकर पसोपेश में BJP बाल ठाकरे की दोस्ती का कर्ज उतारेंगे PM मोदी
क्या महाराष्ट्र में शिवसेना यूबीटी और बीजेपी के बीच नजदीकी बढ़ने लगी है? महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे की नागपुर में मुलाकात के मायने क्या हैं? क्या बाला साहेब ठाकरे के आरएसएस और बीजेपी के साथ पुराने संबंध को देखते हुए गृह मंत्री अमित शाह और पीएम मोदी का रुख नरम हो जाएगा? पढ़ें यह रिपोर्ट...
नई दिल्ली. देश में आंबेडकर मामले पर हो रहे विवाद के बीच में महाराष्ट्र की राजनीति नई करवट ले सकती है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति गठबंधन की शानदार जीत के बाद शिवसेना उद्धव गुट पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई है. शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे को कहीं न कहीं यह आभास हो गया है कि उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़कर बहुत बड़ी गलती कर दी है. अब उसी गलती को सुधारने के लिए और बेटे आदित्य ठाकरे का राजनीतिक भविष्य के लिए उद्धव ठाकरे बीजेपी का दरवाजा खटखटा रहे हैं. कहा जा रहा है कि आरएसएस और बीजेपी के साथ पुराने रिश्ते का हवाला दिया जा रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह उद्धव के दिए घाव को भूलकर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की दोस्ती का कर्ज उतार देंगे?
महाराष्ट्र के राजनीति विश्लेषक बीते कुछ दिनों से उद्धव ठाकरे और सीएम देवेंद्र फडणवीस की मुलाकात के मायने निकाल रहे हैं. इन विश्लेषकों की मानें तो एक बार फिर से उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए आगे कदम बढ़ा दिया है. अब गेंद बीजेपी के पाले में है. उद्धव ठाकरे का देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात अचानक नहीं हुई है, इसकी पटकथा मुंबई में लिखी गई, लेकिन मुलाकात नागपुर में क्यों हुई? आपको बता दें कि नागपुर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हेडक्वार्टर है. कहा जा रहा है कि इस मुलाकात के पीछे आरएसएस का दिमाग है. आरएसएस चाहती है कि शिवसेना और बीजेपी एक साथ फिर से महाराष्ट्र में आएं. क्योंकि, आरएसएस का शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के साथ पुराना रिश्ता रहा है. बाल ठाकरे का यह रिश्ता पीएम मोदी और अमित शाह से भी रहा है. आरएसएस भी अब उसी रिश्ते को यादकर बीजेपी को मनाने में जुट गई है.
क्या उद्धव ठाकरे की एनडीए में वापसी होगी?
इधर, महाराष्ट्र की राजनीति में भी कुछ न कुछ उल्ट-पुल्टा जरूर हो रहा है. पहले महायुति सरकार बनने में देरी और अब मंत्रिमंडल गठन में देरी के मायने निकाले जा रहे हैं. महायुति में भी सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है. खासकर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कई मौके पर अलग-थलग पड़ रहे हैं. ताजा मामला विधान परिषद के चेयरमैन से जुड़ा है. बुधवार को इस पद के चुनाव के लिए नोमिनेशन भरा गया. इस मौके पर उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कहीं नहीं दिखे. चेयरमैन पद के लिए महायुति ने भाजपा के राम शिंदे को उम्मीदवार बनाया है. राम शिंदे के नामांकन दाखिल करने के वक्त देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार उनके साथ थे, लेकिन एकनाथ शिंदे नहीं थे.
आरएसएस और बीजपी के पुराने रिश्ते आएंगे काम?
दरअसल, राम शिंदे के नामांकन को एकनाथ शिंदे की शिवसेना के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. एकनाथ शिंदे यह पद शिवसेना के लिए चाहते थे. माना जा रहा था कि शिवसेना की नीलम गोरखे इस पद की दावेदार थीं. विधान परिषद के चेयरमैन पद के लिए चुनाव नहीं हो पाया था क्योंकि 2022 और 2023 में शिवसेना और एनसीपी में बंटवारा हो गया था. विधान परिषद में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. लेकिन, शिवसेना चाहती थी कि यहां उसे चेयरमैन का पद मिले, क्योंकि विधानसभा में अध्यक्ष का पद भाजपा के पास है. लेकिन, अब दोनों सदनों में चेयर पर भाजपा के नेता होंगे.
इधर, महाविकास अघाड़ी की राजनीति में भी बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. उद्धव ठाकरे अपनी खिसकती जमीन को बचाये रखने के लिए आरएसएस और बीजेपी के बड़े नेताओं से अपने पिता की नजदीकियों का हवाला देकर एनडीए में आने की तैयारी में जुट गए हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि शिवसेना यीबीटी के सांसद भी बीजेपी में आना चाहते हैं. ऐसे में उद्धव ठाकरे के सामने अब कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है. शायद, यही कारण है कि उन्होंने वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मांगकर राहुल गांधी को टाटा बाय-बाय के संकेत दे दिए हैं.
Tags: Amit shah, BJP, PM Modi, Rashtriya Swayamsevak Sangh, Shiv sena, Uddhav thackerayFIRST PUBLISHED : December 19, 2024, 14:11 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed