बलिया में फूल छोड़ साइकिल की सवारी करेंगे बाबाजी सबसे अहम सवाल

Ballia Lok Sabha Election- जाति का मसला तो बहुत सारी लोक सभा सीटों के लिए बहुत अहम है, लेकिन बलिया में ये सवाल परीक्षा के पर्चे के पहले सवाल जैसा अनिवार्य हो गया है. शनिवार को वोटर किस बात को ध्यान में रख कर वोट करने जाएंगे, इससे भी ज्यादा अहम हो गई जिले के मतदाताओं की जातिगत रुझान की मीमांसा. जातियां अपने मूल पार्टियों की तरफ ही रहेगी, या अपने दलों को छोड़ कर चौंका देंगी.

बलिया में फूल छोड़ साइकिल की सवारी करेंगे बाबाजी सबसे अहम सवाल
हाइलाइट्स राममंदिर निर्माण पर खुश था ब्राह्मण वर्ग बीजेपी की जगह एसपी से लड़ रहे हैं सनातन पांडेय ब्रह्मणों की उपेक्षा का नैरिटिव क्या वोटिंग पैटर्न बदल देगा बलिया उत्तर प्रदेश की आखिरी लोकसभा सीट है. उसके बाद गंगा पार से बिहार शुरु हो जाता है. बलिया भी उन 57 लोकसभा सीटों में शामिल है, जहां आखिरी चरण में शनिवार को मतदान होने हैं. बीजेपी से नीरज शेखर और एसपी से सनातन पांडेय इंडी गठबंधन के उम्मीदवार हैं. बलिया के बारे में बहुत सारी अच्छी बाते सुनने कहने के लिए हैं, लेकिन एक तकलीफ बलिया के लोगों को हमेशा रहती है. इस जिले में किसी को किसी भी तरह की जटिल बीमारी हो जाए तो उन्हें बनारस या लखनऊ जा कर इलाज करना पड़ता है. इस बार का लोक सभा चुनाव भी कुछ ऐसा दिख रहा है. बीजेपी के नीरज शेखर का भी बनारस या लखनऊ यानी पीएम नरेंद्र मोदी या फिर योगी आदित्य नाथ का ही ज्यादा भरोसा है. ये भी पढ़ें : यूपी के पूर्वांचल में सत्ता की चाबी दलित-पिछड़ों के हाथ! जानें 13 सीटों का जातीय समीकरण ‘जनेऊ तोड़ो’ अभियान की धरती ! इसकी वजह भी बहुत रोचक है. बलिया ही वो जगह है जहां जेपी यानी जयप्रकाश नारायण ने जातिगत समानता के लिए सातवें दशक में “जनेउ तोड़ो” का नारा दिया था. पुराने लोग बताते हैं कि जनेऊ तोड़े गए थे. लेकिन इस बार चुनाव में जातियां अपनी टोली बना कर दोनो और लामबंद होती दिख रही है. किसी से भी बात की जाय वो इसकी तसदीक करता है. वैसे पूरे पूर्वांचल में ठाकुर-ब्राह्मण की पेशबंदी रही है. दलित और पिछड़ी जातियां तो अपनी अस्मिता के लिए के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से जुड़ी ही रही हैं. ब्राह्मणों के भरोसे एसपी बलिया एक ऐसी लोकसभा सीट रही है, जिसे ब्रह्मण बहुल बताया जाता है. दावा किया जाता है कि इस पूरे लोक सभा में 15 फीसदी वोटर ब्रह्मण हैं. लेकिन ये भी एक हकीकत है कि यहां से कभी भी कोई ब्राह्मण सांसद नहीं रहा है. 1977 से 2007 के बीच नीरज शेखर के पिता चंद्रशेखर अकेले ही इस सीट से 8 बार सांसद रह चुके हैं. अगर यहां से चुने जाने वाले सांसदों की जाति की चर्चा की जाए तो शुरुआती दौर में तीन बार कायस्थ समुदाय के नेताओं को यहां से सांसद बनने का मौका मिला. जबकि 14 बार क्षत्रीय यानी राजपूत समुदाय के और एक दफा यादव समुदाय के जगन्नाथ चौधरी सांसद हुए हैं. कहने का आशय ये है कि यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी कभी नहीं जीता है. इस बार इस जुमले को भी ब्रह्मणों को लामबंद करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. ब्राह्मणों को उकसाने की कोशिश दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार उमेश चतुर्वेदी बलिया के रहने वाले हैं. वे अपने आंकलन के तौर पर बताते हैं -“कांग्रेस से मुंह मोड़ने के बाद ब्राह्मण बीजेपी के साथ जुड़ गए. लेकिन बीजेपी ने भी हाल के चुनावों में ब्राह्मण उम्मीदवार नहीं दिया. इसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया में ब्राह्मण बीजेपी से खुश नहीं हैं.वर्ग की उपेक्षा के नाम पर उन्हें उकसाया जा रहा है. ” जबकि समाजवादी पार्टी ने सनातन पांडेय के तौर पर ब्राह्मण कंडिडेट दिया है. एसपी का ‘बटन दबाएंगे’ ब्रह्मण ? तो क्या ब्राह्मण समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ गए हैं, इस सवाल पर उमेश कहते हैं -“देखिए, मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी की जो राजनीति करते रहे हैं, उसमें ब्रह्मण समाजवादी पार्टी के साथ नहीं जाता है.” फिर भी वे याद दिलाते हैं कि पिछले चुनाव में सनातन पांडेय बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त से महज 15 हजार वोटों से हारे थे. ऐसे में ब्राह्मणों को हर तरह से उकसा कर समाजवादी पार्टी उन्हें अपने साथ जोड़ने में लगी है. ‘नारद इफेक्ट’ समाजवादी पार्टी को झटका देते हुए पार्टी के विधायक रहे नारद राय ने चुनाव के आखिरी दौर में पाला बदल लिया. अब वे बीजेपी में चले गए हैं. इस लोकसभा सीट में ग़ाज़ीपुर की मोहम्दाबाद और जहूराबाद विधान सभा सीटें भी आती है. ये दोनों ही सीटें नारद की जाति भूमिहार मतदाताओं के असर वाली हैं. हालांकि उमेश चतुर्वेदी दावा करते हैं कि इन सबको मिला कर भूमिहार मतदाताओं की बहुलता नहीं है. वे कहते हैं – “शिक्षित, खेतिहर और संपन्न होने के कारण इस जाति प्रभावशाली जरूर होती है” वैसे छात्र राजनीति के बैकग्राउंड वाले नारद राय को एक अच्छा रणनीतिकार माना जाता है. उनकी रणनीति का फायदा नीरज शेखर को मिल सकता है. बलिया की पहचान रहे नीरज के पिता चंद्रशेखर नीरज शेखर के पिता चंद्रशेखर कभी मंत्री नहीं बने. कांग्रेस के विरोध में जेपी आंदोलन के दौरान बनी जनता पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए और तब से उन्हें अध्यक्ष जी के संबोधन से जाना पहचाना जाता था. फिर कांग्रेस के ही सपोर्ट से प्रधानमंत्री बने तो जिले के लोगों के मन में उनका आदर बढ़ गया. बलिया वाले बहुत शान से इसे बागी बलिया कहते हैं. वजह चाहे भृगु का विष्णु को लात मारना रहा या फिर मंगल पांडेय का सैनिक विद्रोह, या फिर देश की आजादी के पहले बलिया जिले को आजाद करा लेना. जिले के पहचान बागी के तौर पर बनी. ये पहचान चंद्रशेखर की अपनी राजनीतिक शैली इस बगावत की राह पर ही चली. उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें युवा तुर्क भी कहा जाता रहा. इस वजह से भी चंद्रशेखर बलिया की पहचान बन गए थे. नीरज की राजनीति नीरज के पास ऐसा कोई अपनी पहचान नहीं है. मतदाता सोशल मीडिया पर ये भी शिकायत करते दिख रहे हैं कि नीरज ने क्षेत्र में उस तरह से ध्यान नहीं दिया जैसा अपेक्षित था. वे यहां से लोकसभा चुनाव 2014 में हार गए थे. उस समय वे समाजवादी पार्टी के टिकट पर थे. उन्हें हराया था राजपूत उम्मीदवार भरत सिंह ने. ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि उस समय भरत सिंह मोदी लहर में जीते थे. 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला. फिर वे बीजेपी में आ गए और राज्यसभा से सांसद बन गए. यानी दो राजपूतों के लड़ने पर भी एक राजपूत जीत चुका है. बलिया में राजपूत समुदाय के वोटरों की संख्या कुल मतदाताओं में 13 फीसदी मानी जाती है. जबकि दलित मतदाता 15 फ़ीसदी के आस-पास हैं. यादव मतदाता लगभग 12 फ़ीसदी, मुस्लिम मतदाता लगभग 8 फ़ीसदी और बनिया मतदाता लगभग 8 फ़ीसदी हैं. मुसलमानों की बात की जाय तो वे भी 7 फीसदी के आस पास बताए जाते हैं. समाजवादी पार्टी को मुसलिम मतदाताओं से भी खासी उम्मीद है. बहुजन समाज पार्टी ने भी यहां एक रिटायर फौजी को लल्लन सिह यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. पार्टी को उम्मीद है कि वो अपने परंपरागत वोट बैंक दलितों को गोलबंद रखने में सफल हो जाएगी. इसके लिए बीजेपी के जीतने पर आरक्षण खत्म होने की बात का सहारा लिया जा रहा है. मोदी मैजिक हालांकि ये सारा जातिगत गणित इस कंडिशन पर ही लागू होता है और चलता है कि मोदी इफेक्ट कितना चल रहा या नहीं चल रहा है. अगर मोदी का वैसा ही असर अभी भी है तो सारे जातीय समीकरण ध्वस्त और धराशायी हो जाएंगे. मंदिर को लेकर सबसे ज्यादा खुश होने वाला वर्ग बाबाजी लोगों का ही है. बलिया में ब्राह्मणों को बाबाजी भी कहा जाता है. Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Ballia news, BJP, BSP, Samajwadi partyFIRST PUBLISHED : May 31, 2024, 13:19 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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