किसान का बेटा बना खेती का एक्सपर्ट जानें दिलचस्प कहानी
किसान का बेटा बना खेती का एक्सपर्ट जानें दिलचस्प कहानी
Ballia News: बलिया में कृषि महाविद्यालय के एक प्रोफेसर को बचपन से ही खेती करना पसंद था. प्रोफेसर ने बताया कि आज भी वह अपने गांव जाकर खुद ही खेती करते हैं. उनकी निगरानी में अब तक कृषि विज्ञान पर 70 विद्यार्थी शोध भी कर चुके हैं.
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: उत्तर प्रदेश में रसायन विज्ञान के एक प्रोफेसर तन, मन और दिलों दिमाग में कृषि और पर्यावरण में डूबे हुए हैं. हालांकि प्रोफेसर का परिणाम भी बेहद शानदार आया है. प्रोफेसर के घर का प्रमुख व्यवसाय कृषि होने के कारण उन्हें बचपन से खेती करना पसंद था. प्रोफेसर बचपन से ही पिता खेती के साथ पर्यावरण को नजदीक से अनुभव किए थे.
इस वजह से उन्हें बचपन से ही खेती करना पंसद था. अब यही प्रोफेसर खेती के एक्सपर्ट हो चुके हैं. उन्हें खेती से इतना प्रेम हुआ कि पहली बार में आयोग से कृषि विशेषज्ञ बनकर अपने सपने को साकार कर लिया. हम बात कर रहे हैं बलिया के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह की के बारे में.
बलिया के श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के एचओडी प्रो. अशोक कुमार सिंह ने लोकल 18 को बताया कि कृषि और कृषि विज्ञान ऐसा लगता है कि जैसे जन्म से ही जुड़े हुए हैं क्योंकि वह खुद एक किसान का बेटे हैं. वह बचपन से ही खेत खलिहान को देखे, मिट्टी को देखे, मिट्टी के सुगंध को देखा और पानी को देखा. ग्रामीण परिवेश में पालन-पोषण हुआ. प्रोफेसर ने बताया कि उनकी पढ़ाई प्राथमिक विद्यालय से शुरू हुई. बचपन से ही कृषि से अथाह प्रेम था. कृषि से संबंधित अनेकों शोध कर हमेशा चर्चा में बने रहते थे.
पढ़ाई की लगी रहती थी होड़
प्रोफेसर ने बताया कि उनके ही नाम का उनका एक मित्र था. उन दोनों में पढ़ने की होड़ लगी रहती थी. पढ़ाई के दौरान खुद हम लोग अपने हाथों से खेती किसानी करते थे. आज भी भले ही वह प्रोफेसर हैं, लेकिन गांव जाते ही किसानी बनकर खेत में उतर जाते हैं.
जानें कैसे मिलती गई सफलत
प्रोफेसर ने बताया कि वह हाई स्कूल विज्ञान वर्ग से पढ़ाई किए थे, लेकिन इंटर में कृषि विषय का चयन किया. उसके बाद उदय प्रताप महाविद्यालय से बीएससी और एमएससी एजी किया. इसके बाद आगे बढ़ते हुए बीएचयू में मृदा विज्ञान में प्रवेश लिया. कुछ आगे कर जाने की ललक थी. इसलिए रात को 8:00 बजे तक कभी-कभी भोर में भी हम लोग लैब में बैठकर पढ़ाई करते थे. फिर पीएचडी पूरा करने के बाद किसानों के हित में और अन्य तकनीकियों पर काम करना शुरू किया. साथ ही कंप्यूटर के भी कोर्स किए.
पहली बार में ही मिली सफलता
प्रोफेसर ने बताया कि तीन बार नेट पास करने के बाद, पहली बार आयोग (Commission) में अप्लाई किया, जहां उनका चयन बलिया के लिए हुआ. उन्होंने बताया कि अभी तक यहां के 70 छात्र शोध कर चुके हैं. यह एक सपना था कि मुझे लेबोरेटरी अच्छा मिले, उनकी बड़ी प्रयोगशाला तो नहीं है, लेकिन इतने में ही काम कर लेते हैं, जो नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर प्रदर्शित किया जा सके.
Tags: Ballia news, Local18FIRST PUBLISHED : July 22, 2024, 09:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed