मां -बाप थे गरीबी नालियों की सफाई कर की पढ़ाई फिर एक साथ मिली तीन सफलता

ननिहाल में कक्षा आठवीं की पढ़ाई संपन्न होने के बाद 9वीं और 10 वीं की पढ़ाई शहर के टाउन इंटर कॉलेज से  हुई. जब मेरा एडमिशन 11 वीं में हुआ तो ननिहाल से कुछ लेना अच्छा नहीं लग रहा था.

मां -बाप थे गरीबी नालियों की सफाई कर की पढ़ाई फिर एक साथ मिली तीन सफलता
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: एक ऐसा सरकारी शिक्षक जिसकीसफलता की कहानी बड़ी इमोशनल और संघर्षशील है. पढ़ने के समय में मां-बाप के गरीब होने के कारण इस बेटे ने ननिहाल में रहकर पढ़ाई की. हम बात कर रहे हैं पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक शंकर कुमार रावत की, जिसने पढ़ाई करने के लिए नालियों की सफाई तक की. अंत में फीस देने का पैसा न होने की स्थिति में अपने क्लास के दोस्तों से सहयोग लेकर पढ़ाई को जारी रखा. फिर एक बार में तीन-तीन सफलता पाकर कहीं न कहीं इस शिक्षक ने साबित करने का प्रयास किया कि एक गरीब का बच्चा भी हर ऊंचाई को छू सकता है. पूर्व माध्यमिक विद्यालय शेरवां कला गड़वार बलिया के प्रभारी प्रधानाध्यापक शंकर कुमार रावत ने बताया कि मेरी सफलता के पीछे बहुत भावुक कर देने वाला  संघर्ष है. मैं मूल निवासी बलिया जनपद के सिकंदरपुर का हूं. लेकिन मेरे गरीब मां-बाप मुझे पढ़ाने में असमर्थ थे. तो मेरी पढ़ाई ननिहाल (बलिया के मिड्ढा) में हुई. ऐसे की पढ़ाई  ननिहाल में कक्षा आठवीं की पढ़ाई संपन्न होने के बाद 9वीं और 10 वीं की पढ़ाई शहर के टाउन इंटर कॉलेज से  हुई. जब मेरा एडमिशन 11 वीं में हुआ तो ननिहाल से कुछ लेना अच्छा नहीं लग रहा था. पढ़ाई के लिए नाली सफाई से लेकर हर काम किया कक्षा 11वीं के बाद संघर्ष की कहानी शुरू हुई और मैंने ट्यूशन के साथ मजदूरी करना शुरू किया. आज भी बलिया में ऐसी तमाम सड़कें  सबूत हैं, जिनके निर्माण में मैंने काम किया है. मजदूरी के साथ साथ तरह तरह के श्रम कार्य जैसे वन विभाग में पौधों की कटाई, सड़क निर्माण में कोलतार गिराना, नाली सफाई, मनरेगा में कार्य करना, जलकल गाड़ना, गांव गांव में त्रिलोकीनाथ कथा का वाचन करना, कुछ दिन पीसीओ और मेडिकल की दुकान पर रहना, बैण्ड पार्टी और ताशा पार्टी में काम करना, यहां तक कि इज्जतघर तक की सफ़ाई का कार्य करना. कर्म ही पूजा है के सिद्धांत पर चलते हुए पढ़ाई जारी रखी . इन्हीं संघर्षों के साथ 2008 में बीएससी का दूसरा साल था कि मां का साया भी सर से उठ गया. पढ़ाई के दौरान दो सेट कपड़े लेकर घर से निकलता था… बलिया के गडहा मोहल्ला में मैं मजदूरी कर रहा था, बीएससी की परीक्षा नजदीक थी, उस समय मैं आधा समय काम कराता था और आधा समय पढ़ाई के लिए निकालता था. मैं घर से दो कपड़े लेकर निकलता था. एक काम करने के लिए एक पढ़ाई करने के लिए. आज भी मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक  सरकारी शिक्षक हूं.  ऐसे समझ आई पैसों की अहमियत… वन विभाग में कुछ दिनों तक काम किया, पौधे को काटकर जड़ निकलना होता था और एक जड़ का 25 पैसा मिलता था. पूरे दिन में ₹8 कमाता था. उस दिन पैसे की कीमत बहुत समझ में आई थी. कभी नहीं मिली शंकर रावत को असफलता मेरे भाई ने प्रेरित  किया तो मैंने b.Ed का फॉर्म भर दिया. भाग्यवश एक ही बार में प्रवेश परीक्षा निकल में निकल गया और मथुरा से b.Ed किया. मेरे पास फीस देने के पैसे नहीं थे पिताजी के ₹7000 सैलरी थी. उस समय मेरे b.Ed के पार्टनर सतीश, रामसागर, अजय गुप्ता और पंकज ने बहुत सहयोग किया. एक साथ मिली तीन सफलता सन 2011 में पहली बार UPTET आया था, इस दौरान मैंने प्राथमिक वर्ग और जूनियर वर्ग दोनों में परीक्षा दी और दोनों में सफलता मिली. प्राथमिक में देवरिया में हो गया. उसके बाद जूनियर में बलिया में हो गया. अभी ये सब चल ही रहा था तब तक स्टेशन मास्टर में भी मेरा हो गया. बड़ा संकोच में पड़ गया, क्या करू. कई लोगों के राय के बाद मैंने बलिया में ज्वाइन किया. आज पूर्व माध्यमिक विद्यालय में प्रभारी प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हूं. Tags: Hindi news, Local18, Success StoryFIRST PUBLISHED : July 7, 2024, 14:52 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed