1400 साल पुराने तीर और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले

वर्तमान में इस पुरातात्विक स्थल की देखरेख की कोई उचित व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण यह स्थल पूरी तरह से घास-फूस से ढक गया है और इसकी ईंटों का उपयोग स्थानीय लोग अपने निजी कार्यों में कर रहे हैं.

1400 साल पुराने तीर और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले
बलिया: उत्तर प्रदेश के बलिया में स्थित एक ऐतिहासिक किला, जिसे “पक्का कोट” के नाम से जाना जाता है, अपनी पुरातात्विक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. तमाम सर्वेक्षणों के अनुसार, यह स्थल कोषाण काल का एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल है, जहां कई प्राचीन अवशेष पाए गए हैं. प्रख्यात इतिहासकारों के मुताबिक, यह किला एक “स्कंधागार” था, जो अस्त्र-शस्त्रों को सुरक्षित रखने का स्थान था. हालांकि, देखरेख की उचित व्यवस्था न होने के कारण यह किला अब घास-फूस से ढक गया है और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है. फेफना रेलवे स्टेशन से पश्चिम दिशा में लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस किले के ध्वंसावशेष लकड़ा और छोटी सरयू नदी के बीच दिखाई देते हैं. स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि लगभग 50 वर्ष पहले यह किला इतना ऊंचा था कि इसका ऊपरी हिस्सा नीचे से दिखाई नहीं देता था. बलिया की विरासत में दर्ज इस ऐतिहासिक स्थल का उल्लेख बलिया गजेटियर में भी किया गया है. क्या बोले इतिहासकार प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार, इस किले से जुड़ी किंवदंती है कि यह बाणासुर का किला था. जब भगवान बुद्ध बलिया आए, तो ह्वेन त्सांग (एक चीनी बौद्ध तीर्थयात्री) के अनुसार, यह क्षेत्र अविद्धकरण विहार के निकट था. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों द्वारा किए गए आंशिक उत्खनन के अनुसार, यह कोषाण काल का एक स्कंधागार था. इस किले के भीतर भी कई कमरे बनाए गए थे, जो इसे और भी विशेष बनाते हैं. खुदाई से मिले अनमोल अवशेष यहां की खुदाई में बौद्ध काल और लगभग 1400 साल पुराने तीर और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले हैं. यह तथ्य इस स्थल के ऐतिहासिक महत्व को और भी बढ़ाते हैं. लेकिन, वर्तमान में इस पुरातात्विक स्थल की देखरेख की कोई उचित व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण यह स्थल पूरी तरह से घास-फूस से ढक गया है और इसकी ईंटों का उपयोग स्थानीय लोग अपने निजी कार्यों में कर रहे हैं. ईंटों की विशेषता पक्का कोट की ईंटें भी बहुत खास हैं. सर्वेक्षण के अनुसार, इस किले में परकोटा और सुरंगें भी हैं, जो इसे और भी अद्वितीय बनाती हैं. यहां की ईंटें लगभग 18 इंच लंबी, 10 इंच चौड़ी और 3 इंच मोटी हैं, जो आज भी मजबूती से बनी हुई हैं. यह बलिया का एक ऐतिहासिक पुरातात्विक स्थल है, जिसकी सुरक्षा और संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि इसकी धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह सके.. Tags: History of India, Local18FIRST PUBLISHED : August 16, 2024, 15:30 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed