सब जगह सफाया लेकिन कांग्रेस के इस किले में सेंध नहीं लगा पाई कोई पार्टी!

मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट को कांग्रेस का एक सबसे सुरक्षित गढ़ समझा जाता है. लेकिन, पश्चिम बंगाल में भी एक ऐसी सीट है जहां कांग्रेस के एक उम्मीदवार बीते ढाई दशक से अधिक समय से जीतते आ रहे हैं.

सब जगह सफाया लेकिन कांग्रेस के इस किले में सेंध नहीं लगा पाई कोई पार्टी!
पूरे देश में लोकसभा चुनाव 2024 की सरगर्मियां जोरों पर है. अब तक तीन चरण की वोटिंग हो चुकी है. चौथे दौर की वोटिंग 13 मई को है. इस बीच राजनीतिक रूप से एक सबसे अहम राज्य पश्चिम बंगाल पर सबकी नजर है. यहां लोकसभा की 42 सीटें हैं और पूरे सात चरण में यहां मतदान होगा. यहां की अधिकतर सीटों पर मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच है. बीते 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से वामदलों का सफाया हो गया. कांग्रेस भी मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी. इसके अलावा तृणमूल 22 और भाजपा को 18 सीटें मिली थीं. कांग्रेस पार्टी ने जिन दो सीटों पर जीत हासिल की थी उसमें से एक सीट बहरामपुर थी. यह बीते ढाई दशक से अधिक समय से पार्टी का गढ़ है. यहां से लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी 1999 से चुनाव जीतते आ रहे हैं. राज्य की दूसरी सीट मालदा दक्षिण है जहां से कांग्रेस के नेता अबू हसन खान चौधरी भी लंबे समय से चुनाव जीतते आ रहे हैं. इस बार के चुनाव में हसन खान के बेटे इशा खान चौधरी यहां से मैदान में हैं. 1999 से कांग्रेस का कब्जा आज बात करते हैं बहरामपुर सीट की. यहां से अधीर रंजन चौधरी 1999 से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. वह राज्य में तृणमूल कांग्रेस के कट्टर विरोध की राजनीति करते हैं. इसी चुनाव में उन्होंने कई बार ऐसे बयान दिए हैं जिससे कि विवाद पैदा हो गया. पिछले दिनों अधीर रंजन ने यहां तक कह दिया कि अगर कोई मतदाता उनको वोट नहीं करता है तो वह बेहतर होगा कि भाजपा को वोट कर दे लेकिन किसी भी कीमत पर तृणमूल को वोट न करे. दूसरी तरह तृणमूल भी उनको लेकर बेहद आक्रामक रहती है. तृणमूल ने इस सीट से क्रिकेटर यूसुफ पठान को अपना उम्मीदवार बनाया है. यूसुफ लंबे समय तक आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए खेलते रहे हैं. वह गुजरात में वडोदरा के रहने वाले हैं. बहरामपुर से भाजपा ने निर्मल कुमार साहा को मैदान में उतारा है. राज्य में वाम दल और कांग्रेस के बीच गठबंधन है. दूसरी तरफ ममता बनर्जी की तृणमूल और भाजपा सभी 42 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है. बंगाल में ‘इंडिया’ गठबंधन टूटने से भाजपा को नुकसान; इस सीट के गणित ने बढ़ा दी भगवा खेमे की चिंता? आसान नहीं जंग बहरामपुर में निश्चिततौर पर बीते ढाई दशक से अधिक समय से अधीर रंजन जीतते आ रहे हैं, लेकिन यहां की लड़ाई को एकतरफा नहीं कहा जा सकता. यह लोकसभा सीट मुर्शिदाबाद जिले में आता है और यहां विधानसभा की कुल सात सीटें हैं. इन सात में से छह सीटों पर तृणमूल का कब्जा है. खुद बहरामपुर विधानसभा सीट पर भाजपा को जीत मिली है. 2019 के चुनाव की बात करें तो उस वक्त अधीर रंजन को 80,696 वोटों से जीत मिली थी. तृणमूल के उम्मीदवार अपुर्बा सरकार को 5.10 लाख से अधिक वोट मिले थे. ऐसे में इस बार तृणमूल में एक मुस्लिम को उम्मीदवार बनाकार यहां की लड़ाई को और दिलचस्प कर दिया है. इस सीट पर भाजपा का भी ठीकठाक वोट है. 2019 में भाजपा उम्मीदवार कृष्णा जुआर्दार आर्य को भी 1.43 लाख से अधिक वोट मिले थे. मुस्लिम बहुल इलाका बहरामपुर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है. यहां करीब 66.27 फीसदी मुस्लिम वोटर है. ऐसे में कांग्रेस और तृणमूल का मुख्य फोकस ये मतादाता हैं. यहां करीब 12.6 फीसदी दलित और 1.3 फीसदी आदिवासी वोटर्स भी हैं. इस तरह यहां केवल 20 फीसदी ही अन्य जातियों के वोटर्स हैं. तृणमूल को कभी नहीं मिली जीत बहरामपुर लोकसभा सीट का इतिहास देखें तो पाएंगे कि यहां से आज तक केवल दो पार्टियों के नेता ही चुनाव जीते हैं. इसमें एक है वामपंथी दल रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP) और दूसरी कांग्रेस. देश के पहले चुनाव यानी 1951 से 1998 के बीच केवल एक बार 1984 को छोड़कर यहां से हर बार आरएसपी को जीत मिली. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में यहां से पहली बार कांग्रेस जीती थी. फिर 1999 से यहां से कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी जीतते आ रहे हैं. Tags: Adhir Ranjan Chaudhary, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : May 10, 2024, 13:28 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
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