चिराग और तेजस्वी के साथ मांझी जी की भी सुनिये कोटा में कोटा पर क्या कहते हैं

Quota within quota in reservation: रिजर्वेशन में कोटा के अंदर कोटा वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर राजनीति गर्म है. राजद नेता तेजस्वी यादव और लोजपाआर के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान जैसे नेता इसको लेकर विरोध कर रहे हैं. चिराग पासवान ने तो यहां तक कहा है कि उनकी पार्टी इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी. वहीं, केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थन में खुलकर खड़े हैं. ऐसे में आइये एक्सपर्ट की भी राय जानते हैं.

चिराग और तेजस्वी के साथ मांझी जी की भी सुनिये कोटा में कोटा पर क्या कहते हैं
हाइलाइट्स रिजर्वेशन में कोटा के अंदर कोटा पर एनडीए में अलग-अलग सुर. चिराग पासवान और तेजस्वी यादव एससी के फैसले के विरोध में. जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का खुला समर्थन किया. पटना. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है. मुख्य न्यायाधीश डी .वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों वाली पीठ द्वारा एससी एसटी में कोटा के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी गई है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी मिल गई है. मतलब एससी एसटी कोटा में उप वर्गीकरण को स्वीकृति मिल गई. लेकिन, इसको लेकर राजनीति गर्म है. विशेषकर बिहार में राजद और एलजेपी रामविलास जैसी पार्टियां इस वर्गीकरण के विरोध में खड़ी हो गई हैं, लेकिन जीतन राम मांझी जैसे नेता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े हैं. बता दें कि, राजद नेता तेजस्वी यादव और लोजपाआर के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान जैसे नेता इसको लेकर विरोध कर रहे हैं. चिराग पासवान ने तो यहां तक कहा है कि उनकी पार्टी इस फैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी. चिराग पासवान का कहना है कि आरक्षण का फैसला सामाजिक परिस्थितियों के कारण किया गया था और इसकी बड़ी वजह गैरबराबरी और छुआछूत थी. सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर दोबारा सोचना चाहिये. वहीं सर्वोच्च न्यायायलय के फैसले से राज्यों में दलित और आदिवासी आरक्षण पर बहस छिड़ गई है. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी जैसे नेता सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के साथ खड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ खड़े मांझी जीतन राम मांझी ने तो साफ तौर पर कहा है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय का जो भी विरोध कर रहे हैं वे स्वार्थी लोग हैं. भुइयां, मुसहर, डोम, मेहतर जैसे अनुसूचित जाति लोग काफी पीछे हैं. आप आंकड़ा निकाल लीजिये कि इन समाज से कितने आईएएस अफसर हैं. जो चार प्रमुख जातियां इसका विरोध व्यक्त कर रहे हैं, तो क्या वही आरक्षण का लाभ लेते रहें, हम लोग नहीं लें. जीतन राम मांझी ने आगे कहा, समाज में जो आदमी बढ़ गया है वह बढ़ते रहे, लेकिन जो पीछे है उसका केयर नहीं किया गया है, इसीलिए हम हर हालत में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हैं. भुइयां, मुसहर, मेहतर और नट को नहीं मिला लाभ-मांझी जीतन मांझी ने आगे कहा, यह जो सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आया है यह 10 साल पहले आना चाहिए था. शेड्यूल कास्ट का सबसे कम 30% साक्षरता दर है. इसमें भुइयां, मुसहर, मेहतर और नट जैसी जातियों की साक्षरता दर 7 से 8 प्रतिशत है, उनको सुविधा मिलनी चाहिए और उनको ज्यादा पुश करना ही चाहिए. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जो आदेश दिया हैउ सके साथ हैं. बता दें कि बिहार में अनुसूचित जाति की आबादी 19.5% है. इनमें एक प्रतिशत से अधिक आबादी वाली जाति दुसाध, मुसहर, रविदास और पासी है. महादलित तो बनाया पर ओबीसी जैसा लाभ नहीं मिला-मांझी गौरतलब है कि वर्ष 2007 में नीतीश सरकार इसके वर्गीकरण के लिए महादलित आयोग बनाया था जिसने पहले 18 अनुसूचित जातियों को महादलित फिर इसमें तीन और धोबी, पासी और चर्मकार को जोड़ा गया. इस प्रकार के दुसाध को छोड़कर सभी अनुसूचित जाति है. इन्हें माध्यमिक मान लिया गया और उनके लिए विशेष योजनाएं बनीं, लेकिन ओबीसी जैसा आरक्षण नहीं मिला. हालांकि अब बिहार में दुसाध जाति भी महादलित वर्ग का हिस्सा है और इन जातियों के लोर उन सारी सुवधिओं का हकदार हैं जो महादलितों को मिलते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विशेषज्ञ की राय भी जानिये इस पूरे मामले को लेकर अधिवक्ता और इस मामले के जाने-माने विशेषज्ञ विराग गुप्ता की मानें तो केंद्र में गठबंधन सरकार बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के दो फसलों से राज्य के संवैधानिक अधिकारों को नई मजबूती मिलेगी. पहले फैसले से माईनिंग में रॉयल्टी के माध्यम से राज्यों को टैक्स वसूली का अधिकार मिला है, जबकि दूसरे फैसले से आरक्षण मामले में राज्यों को जातियों की वर्गीकरण का अधिकार मिल गया है. संवैधानिक प्रावधान और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के साथ नए फैसले का विशेषण करने पर सरकार को नई चुनौतियों को से जूझना पड़ सकता है. वंचित जातियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट क सराहनीय फैसला विराग गुप्ता कहते हैं कि सामाजिक और शैक्षिक विक्षेपण (Deflection) के नाम पर किए जा रहे हैं. आरक्षण की बुनियाद उन जातियों पर जा टिकी है जिसपर प्रशंसा में संसद में तीखी बहस हो सकती है. संविधान विशेषज्ञों की मानें तो अब कोटे में कोटा मतलब आरक्षण में आरक्षण के लिए संवैधानिक रास्ता खुल गया है. अनुच्छेद 341 में अनुसूचित जाती 342 में अनुसूचित जनजाति को अधिसूचित करने के बारे में ससद और राष्ट्रपति को स्पष्ट अधिकार दिए गए हैं. तीन दशक पहले आंध्र प्रदेश में अनुसूचित जातियों के भीतर समूह के वर्गीकरण के लिए कानून बनाया गया था, जिसे साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने दो दशक पहले के फेसले को पलट दिया बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सात जजों वाली संविधान पीठ ने ईवी चिन्नईया के 2004 के उसे फैसले को पलट दिया है, जिसमें अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उपजातियां को विशेष लाभ देने से इनकार कर दिया गया था. साल 2004 में ही चिड़िया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में पांच जजों की संविधान पिट्स ने यह तय किया था कि अनुसूचित जाति यानी एससी और अनुसूचित जनजाति यानी एसटी के सदस्य एक समान समूह है, जिन्हें आगे किसी उप समूह या वर्गीकरण में बांटना संभव नहीं है. समय के साथ किसी भी कानून का पुनर्विचार जरूरी ईवी चिन्नय्या के फैसले में तय किया गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों को फिर से वारीकृत करना विपरीत भेदभाव के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सामानता के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा. वर्ष 2020 में न्यायमूर्तिअरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि ईवी चिन्नय्या फैसले पर फैसले पर एक बड़ी पीठ द्वारा दोबारा विचार किए जाने की आवश्यकता है. आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद और गरीब लोगों तक नहीं पहुंच रहा है, इसलिए इस पर फिर से विचार होना चाहिए. समर्थन और विरोध की राजनीति पुरजोर है… बता दें कि उच्चतम न्यायालय, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें 2006 के पंजाबी अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग अधिनियम को रद्द कर दिया गया था. इसके अंतर्गत अनुसूचित जाति कोटि के तहत वाल्मीकि और मजामी सिख जातियों को प्रथम वरीयता दी गई थी. बहरहाल, अब जब सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है और इसको लेकर राज्य सरकारों से कहा है कि वह अपने यहां वर्गीकरण कर सकती है. हालांकि, राज्य सरकारों का रुख अभी सामने आना बाकी है, लेकिन अभी फिलहाल इस पर राजनीति पुरजोर है. Tags: Bihar News, Caste Reservation, Chirag Paswan, Jitan ram Manjhi, RJD leader Tejaswi YadavFIRST PUBLISHED : August 6, 2024, 19:06 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed