जयपुर ग्रेटर नगर निगम की BJP महापौर सौम्या गुर्जर बर्खास्त 6 साल चुनाव लड़ने पर लगाई रोक
जयपुर ग्रेटर नगर निगम की BJP महापौर सौम्या गुर्जर बर्खास्त 6 साल चुनाव लड़ने पर लगाई रोक
Jaipur News: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जयपुर नगर निगम ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर के मामले में राज्य सरकार को न्यायिक रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई के लिए स्वतंत्र कर दिया था. इसके साथ ही दो दिनों के बाद ही कार्रवाई के निर्देश दिए. अब दो दिनों की अवधि खत्म होने के बाद राज्य सरकार ने सौम्या गुर्जर के खिलाफ ‘एक्शन’ ले लिया और उनका बर्खास्त कर दिया. इससे पहले सरकार ने तीन पार्षदों को भी बर्खास्त कर दिया गया था.
हाइलाइट्सपिछले साल महापौर कक्ष में पार्षद और अधिकारियों से हुआ था विवादन्यायिक जांच में निलंबन के बाद सौम्या को हाई कोर्ट ने स्टे देने से किया था इनकार
जयपुर. राजस्थान में तेजी से घटित हो रहे सियासी घमासान (Political battle) के बीच ही राज्य सरकार (State Government) ने बड़ा फैसला लेते हुए जयपुर के ग्रेटर नगर निगम की महापौर सौम्या गुर्जर (Mayor Somya Gurjar) बर्खास्त कर दिया है. स्वायत शासन विभाग की ओर से जारी आदेश में भाजपा (BJP) के बोर्ड में चुनी गई महापौर गुर्जर को पद से बर्खास्त (sacked) करने के साथ ही अगले 6 साल तक उनके चुनाव लड़ने पर रोक (Banned from contesting election) भी लगा दी गई है. जयपुर ग्रेटर के वार्ड 87 से पार्षद और फिर मेयर बनी सौम्या गुर्जर के खिलाफ यह मामला 2021 का है. स्वायत्त शासन विभाग ने न्यायिक जांच के बाद सदस्यता और मेयर पद से बर्खास्त करने की तत्काल प्रभाव से कार्रवाई की है.
राज्य सरकार ने प्रथमदृष्टया दोषी पाये जाने पर राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 की धारा 39 के अन्तर्गत प्रकरण की न्यायिक जांच करवाई. न्यायिक जांच अधिकारी की ओर से सौम्या गुर्जर को अधिनियम-2009 की धारा 39 (1) (घ) (ii) (ii) (vi) के अन्तर्गत दोषी पाया गया. ऐसे में सरकार ने धारा 39 (4), 41 एवं 43 के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए सौम्या गुर्जर को महापौर और वार्ड 87 पार्षद पद से हटाते हुए आगामी 6 वर्ष की कालावधि तक पुर्ननिवार्चन के लिए भी निर्योग्य घोषित किया है.
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पिछले साल महापौर कक्ष में हुआ था विवाद
काबिलेगौर है कि 4 जून 2021 को नगर निगम मुख्यालय में महापौर के कक्ष में एक बैठक चल रही थी, जिसमें तत्कालीन सीईओ यज्ञ मित्र देव सिंह और पार्षद मौजूद थे. आरोप था कि किसी फाइल पर हस्ताक्षर करने को लेकर पार्षदों और अधिकारियों के बीच में विवाद हो गया. पार्षदों की सीईओ के साथ में काफी बहस हुई और धक्का-मुक्की हुई. इसके बाद कमिश्नर ने महापौर और पार्षदों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई.
निलंबन के बाद हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत
इस मामले में 5 जून को सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए महापौर और पार्षदों के खिलाफ मिली शिकायत की जांच स्वायत शासन विभाग को सौंप दी, जिसकी रिपोर्ट में चारों को दोषी माना गया और इसके आधार पर पार्षदों को पहले निलंबित कर दिया गया. राज्य सरकार ने शील धाबाई को कार्यवाहक महापौर बना दिया. निलंबन के फैसले को सौम्या गुर्जर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 28 जून को हाईकोर्ट ने निलंबित किए जाने के आदेश पर स्टे देने से मना कर दिया. इसके बाद में सौम्या गुर्जर ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी.
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