पांवों ने टेक दिए घुटने फिर भी अपने पांव पर खड़ा होकर दिखाया व्यास ने पढ़ें प्रेरक स्टोरी
पांवों ने टेक दिए घुटने फिर भी अपने पांव पर खड़ा होकर दिखाया व्यास ने पढ़ें प्रेरक स्टोरी
Motivational Story: व्यास की शारीरिक अपंगता या उनका शिक्षक होना खास नहीं है, खास है उनके पढ़ाने का वह अंदाज जिसके मुरीद हैं गांव के लोग. उनके जज्बे के सामने, उनकी लगन के सामने सब नतमस्तक है. सचमुच, ब्यास की कहानी संघर्ष से तो भरी जरूर है, लेकिन यह संघर्ष दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है, उनकी कहानी मोटिवेशनल है. यही वजह है कि गिद्धौर के लोग उन्हें खुद के लिए प्रेरणा स्रोत मानते हैं.
हाइलाइट्सव्यास जब डेढ़ साल के थे तभी पोलियो ने उनके पांव पर हमला किया. उनके पांव बेजान हो गए. पोलियो की भी अपनी सीमा होती है यह व्यास ने बताया. वह व्यास के सपनों के पर नहीं नोंच पाया.
जमुई. उनके पांव ने बचपन में ही घुटने टेक दिए थे. तब उनकी उम्र कोई डेढ़ साल रही होगी. मां-बाप ने उनके पोलियोग्रस्त पांव का खूब इलाज कराया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन इस शख्स की जिद थी कि कुछ कर दिखाना है. हर हाल में अपने पांव पर खड़े हो जाना है. और आखिरकार आज वो इस मुकाम पर हैं कि खुद तो अपने पांव पर खड़े हैं और दूसरों को भी शिक्षित कर पांव पर खड़ा होने में मदद कर रहे हैं. इस शख्स का नाम है व्यास. पेशे से शिक्षक हैं. जमुई जिले के गिद्धौर प्रखंड के सेवा गांव के सरकारी हाई स्कूल में नियुक्त हैं.
व्यास की शारीरिक अपंगता या उनका शिक्षक होना खास नहीं है, खास है उनके पढ़ाने का वह अंदाज जिसके मुरीद हैं गांव के लोग. उनके जज्बे के सामने, उनकी लगन के सामने सब नतमस्तक है. सचमुच, ब्यास की कहानी संघर्ष से तो भरी जरूर है, लेकिन यह संघर्ष दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है, उनकी कहानी मोटिवेशनल है. यही वजह है कि गिद्धौर के लोग उन्हें खुद के लिए प्रेरणा स्रोत मानते हैं.
उम्र के 35 बसंत देख चुके व्यास. वह जब डेढ़ साल के थे तभी पोलियो ने उनके पांव पर हमला किया. उनके पांव बेजान हो गए. लेकिन पोलियो की भी अपनी सीमा होती है यह व्यास ने बताया. पोलियो व्यास के सपनों के पर नहीं नोंच पाया. कई कठिनाइयां आईं, लेकिन व्यास तो नदी की तरह बहते गए. बहते-बहते बोर्ड की परीक्षा की सीमा लांघी, फिर स्नातक के दरवाजे पर जा खड़े हुए. इकोनॉमिक्स जैसा मुश्किल विषय में चुना, उसे साधा भी और अब सरकारी स्कूल में बतौर शिक्षक नियुक्त हुए.
लेकिन व्यास का मकसद महज नौकरी करना नहीं था, वह तो एक नई लकीर खींचना चाहते थे. इसलिए शिक्षक बनकर एक बार फिर अपनी अपंगता को चुनौती दी. बगैर बैठे वैशाखी के सहारे खड़े होकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. हिंदी शिक्षक व्यास महज क्लास नहीं लेते, बल्कि बच्चों से प्रार्थना करवाना हो या उन्हें खेलकूद के लिए मोटिवेट करना, वे इसके लिए कैंपस में इस कोने से उस कोने तक बहुत सहज भाव से आते-जाते दिख जाते हैं.
व्यास का कहना है कि बचपन में कुछ लोग उन्हें बोझ मानते थे, लेकिन मां के सहयोग और खुद की मेहनत के बल पर आज उन्हें लगता है कि वह कुछ सार्थक कर रहे हैं. वे बताते हैं कि जब वे छोटे थे तो उनका वजन ठीक-ठाक था और मां उन्हें गोद में लेकर चलने में परेशानी महसूस करती थी. यह देख कुछ लोगों ने मां को सलाह दी थी कि वह मुझे किसी लंबी दूरी वाली ट्रेन में बैठा कर छोड़ आए, वर्ना जीवन भर यह बोझ उठाना पड़ेगा. पर मां ने किसी की नहीं सुनी. मां को दी गई गांववालों की सलाह को गलत साबित करने की ठान ली मैंने. इसी चुनौती ने मुझे हिम्मत दी, साहस दिया. इसी बात को याद रखकर मैंने अपनी पढ़ाई को हथियार बनाया.
कहने की जरूरत नहीं कि व्यास आज अपने परिवार का पालन-पोषण तो कर ही रहे हैं, वह सम्मान भी सबसे पा रहे हैं जो बहुत कम लोगों के नसीब में होता है. व्यास जिस स्कूल में पढ़ाते हैं उसके हेड मास्टर प्रकाश रजक का कहना है कि मिडिल स्कूल के टीचर होने के बावजूद उनकी पढ़ाने की लगन और हिम्मत देखते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारी ने हाई स्कूल के बच्चों को भी पढ़ाने की जिम्मेदारी उन्हें दे दी है. व्यास न सिर्फ बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाते हैं, बल्कि स्कूल मैनेजमेंट में भी एक बड़ी जिम्मेदारी निभाते हैं, जिस कारण स्कूल के बच्चे परीक्षा में बेहतर करने लगे हैं.
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Tags: Bihar News, Jamui news, Motivational StoryFIRST PUBLISHED : August 02, 2022, 23:38 IST