Kargil Vijay Diwas: पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले वीर सपूत की कहानी

सेवानिवृत्त नायक सुरेंद्र सिंह आज भी जब कारगिल युद्ध की कहानी बयां करते है तो 25 साल पहले वाला जोश और जुनून उनके शरीर में भर जाता है. सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि कैसे गोली लगने के बाद भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 25 से 30 पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लिया.

Kargil Vijay Diwas: पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले वीर सपूत की कहानी
राजकुमार सिंह/वैशाली. 25 साल पहले कारगिल युद्ध में बिहार के कई बेटों ने भी अपनी कुर्बानी दी. कई बेटों ने जान हथेली में लेकर पाकिस्तानी सैनिकों से ना सिर्फ लोहा लिया बल्कि पाकिस्तान को करारी शिकस्त भी दी. बिहार के दूसरे जिलों की तरह वैशाली से भी कई वीर सपूतों ने अपने देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया, जिसमें एक नाम हाजीपुर प्रखंड क्षेत्र चांदी गांव निवासी स्व.प्रदीप सिंह के बड़े पुत्र नायक सुरेंद्र सिंह का भी शामिल है. सेवानिवृत्त नायक सुरेंद्र सिंह आज भी जब कारगिल युद्ध की कहानी बयां करते है तो 25 साल पहले वाला जोश और जुनून उनके शरीर में भर जाता है. सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि कैसे गोली लगने के बाद भी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 25 से 30 पाकिस्तानी सैनिकों से लोहा लिया. उन्होंने बताया कि कारगिल से बटालिक के लिए 9 प्लाटून को भेजा जाना था क्योंकि मेजर शर्मा नंद को जानकारी मिली थी कि बटालिक में 4 से 5 दुश्मन मौजूद हैं. फिर क्या था मेजर शर्मानंद के साथ हम लोग एक प्लाटून बटालिक के लिए निकल पड़े. लेकिन वहां पहुंचने के बाद पता चला कि दुश्मन 4 या 5 नहीं बल्कि 25 से 30 है. हाथ में गोली लगने के बाद नहीं मानी हार लिहाजा हमने मेजर के नेतृत्व में मोर्चा संभाल लिया और दोनों ओर से गोलियां चलने लगी. कुछ देर बाद ही मेजर और जवान गणेश शहीद हो गए लेकिन फिर भी हम लोग चोटी पर घात लगाकर बैठे दुश्मनों से लोहा लेते रहे. इसी दौरान मेरे दाहिने हाथ में भी गोली लग गई लेकिन फिर भी पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे. चार पांच दिन भूखे प्यासे किसी तरह कैंप पहुंचा तब इलाज शुरू हुआ. उन्होंने कहा कि एक हाथ जख्मी होने के बाद भी एक हाथ से ही दुश्मनों से लोहा लेते रहे और उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया. सेवानिवृत्त नायक सुरेंद्र सिंह आज भी अपने एक हाथ में फंसी गोली को महसूस करते हुए कारगिल युद्ध को याद करते हैं. युद्ध में पहने वर्दी और घायल होने के बाद हाथ से निकल रहे खून को रोकने के लिए इस्तेमाल किया गया पाग यानी काला कपड़ा सहेज कर रखे हुए हैं. सरकार से नहीं मिली कोई मदद दरअसल, सुरेंद्र सिंह 1982 में फौज में भर्ती हुए थे और 17 साल बाद कारगिल युद्ध में मिट्टी का कर्ज उतारने का मौका मिला. बिहार रेजिमेंट की इस टुकड़ी ने तमाम बाधाओं और पाकिस्तानी सैनिकों से घिरे होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी और कई पाक सैनिकों को मार गिराया. सबसे हैरत की बात तो यह है कि जिस सपूत ने अपनी जान पर खेल कर देश की हिफाजत की उस सैनिक के साथ सरकार और प्रशासन ने भी खिलवाड़ किया. आर्थिक परेशानी से जूझ रहे और बदहाली में जीवन जीने को मजबूर सुरेंद्र सिंह को सरकार से आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिला है. उन्होंने बताया कि तत्कालीन डीएम के आश्वासन पर गांव की एक एकड़ गैर मजरुआ जमीन को आवंटित करने के लिए आवेदन दिया था जिसपर त्वरित कार्रवाई भी हुई. डीएम के माध्यम से सीओ ने उक्त जमीन को उनके नाम से आवंटित करने की अनुशंसा कर भूमि विभाग को भेजा. लेकिन आज तक वह फाइल सरकारी कार्यालय में धूल फांक रही है. बहरहाल भूमिहीन सैनिक के ऊपर पांच बच्चों की शिक्षा और शादी विवाह के साथ-साथ भरण पोषण की जिम्मेदारी है लेकिन सरकार व प्रशासन अब इनकी सुध तक नहीं लेता है. Tags: Bihar News, Kargil day, Kargil war, Local18, Vaishali newsFIRST PUBLISHED : July 25, 2024, 12:31 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed