सेप्टिक टैंक की सफाई क्यों कर रहा PhD स्कॉलरCJI कर चुके इनके पेपर का जिक्र
सेप्टिक टैंक की सफाई क्यों कर रहा PhD स्कॉलरCJI कर चुके इनके पेपर का जिक्र
PhD Cleaning Septic Tanks: तमिलनाडु में एक PhD कर चुका शख्स सेप्टिक टैंक की सफाई के काम में लगा हुआ है. रविचंद्रन बाथरन ने इसके लिए एक कंपनी भी बनाई है. अब उनके रिसर्च पेपर का जिक्र सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में किया है.
चेन्नई. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण के लिए कई वर्गों में बांटे जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त के ऐतिहासिक फैसले के फुटनोट्स में एक नाम छिपा है- रविचंद्रन बाथरन. भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा द्वारा लिखे गए फैसले के खंड डी में दिखाई देने वाले फ़ुटनोट के मुताबिक बाथरन ने एक रिसर्च पेपर लिखा था, जिसका नाम था ‘एक अवधारणा की कई चूकें: अनुसूचित जातियों के बीच भेदभाव.’ हालांकि फ़ुटनोट में यह नहीं बताया गया है कि बाथरन ने जाति व्यवस्था की बेड़ियों को तोड़ने के लिए क्या संघर्ष किया और उन्हें क्यों लगता है कि आरक्षण के लिए दलितों को कई उप-वर्गों में बांटना जरूरी है.
‘सेप्टिक टैंक भाई’
तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कोटागिरी शहर में वह रहते हैं, जहां बाथरन को ‘सेप्टिक टैंक भाई’ के नाम से जाना जाता है. बाथरन ने 2022 में इस्लाम धर्म अपना लिया और अब उन्हें रईस मुहम्मद के नाम से जाना जाता है. बाथरन उर्फ मुहम्मद कहते हैं कि “जैसे डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था, वैसे ही मैंने भी इस्लाम अपनाया.” साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय, दक्षिण अफ्रीका में काम कर चुके पोस्ट-डॉक्टरल फेलो और हैदराबाद के इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज यूनिवर्सिटी (EFLU) से ‘भाषा, जाति और क्षेत्र: दक्षिण भारत में सफाई करने वाली जातियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा’ में पीएचडी करने वाले मुहम्मद पिछले तीन सालों से जीविका के लिए सेप्टिक टैंक साफ कर रहे हैं.
सेप्टिक टैंक सफाई की कंपनी बनाई
रविचंद्रन बाथरन कहते हैं कि एक तरह से सफाई उनकी जाति, तमिलनाडु के अरुणथथियार के लिए तय पेशा है. मुझे एहसास हुआ कि ऐसे लोग हैं जो अरुणथथियार को काम पर रखते हैं और उनके कठिन परिश्रम से पैसे कमाते हैं. मुझे लगा, क्यों न एक कंपनी शुरू की जाए. 2021 में कोटागिरी सेप्टिक टैंक क्लीनिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत करने वाले मुहम्मद कहते हैं कि उन्होंने शुरू में लोगों को सेप्टिक टैंक में जाने से रोकने के लिए सफाई प्रक्रिया को मशीनीकृत करने की योजना बनाई थी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उन्हें एहसास हुआ कि ऐसे नवाचारों में बहुत अधिक निवेश नहीं किया गया है जो हाथ से सेप्टिक टैंक की सफाई की जगह ले सकें. अगर किसी को टैंक में उतरकर उसे साफ करना पड़ता है, तो मैं अपने कर्मचारियों को ऐसा नहीं करने देता. मैं खुद ही यह काम करता हूं.
सेप्टिक टैंक सफाई के पेशे में सम्मान के लिए संघर्ष
मुहम्मद अपने सफाईकर्मियों को 30,000 रुपये और ड्राइवरों को 40,000 रुपये प्रति माह देते हैं. उन्होंने उन सभी के लिए एक समूह चिकित्सा बीमा भी करवाया है, जिसका प्रीमियम 15,000 रुपये सालाना है. वे कहते हैं मैं इस पेशे में सम्मान के लिए तरसता रहा हूं. आप कल्पना नहीं कर सकते कि यह काम कितना अपमानजनक है. एक बार, एक सरकारी अधिकारी ने मुहम्मद से पूछा कि वह एक चक्किलियन है, उसने उसे फोन करने की हिम्मत क्यों की. वे कहते हैं कि मैं एक चक्किलियन हूं, इसलिए मैंने उसे नहीं बताया कि मेरे पास पोस्ट-डॉक्टरेट डिग्री है. चक्किलियन, अरुणथथियार जाति का ही दूसरा नाम है.
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मद्रास विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर रहे बाथरन
सेप्टिक टैंक की सफाई करने से पहले मुहम्मद मद्रास विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में काम कर चुके थे. वे दलित कैमरा नाम से एक यूट्यूब चैनल भी चलाते थे. वे कहते हैं कि उनकी मां अरुकानी और पिता बाथरन दोनों ही सफाईकर्मी के रूप में काम करते थे और उनके हर काम में उनका साथ देते थे. उनकी पत्नी कर्पागम अल्लिमुथु कोटागिरी टाउन पंचायत की पार्षद हैं. मुहम्मद कहते हैं कि “शिक्षक का काम मेरे लिए संतोषजनक नहीं था. मैं हमेशा अपने समुदाय के लिए और अधिक करना चाहता था. मुझे एहसास हुआ कि अरुणथथियारों को संगठित करना महत्वपूर्ण है.” उन्होंने आगे कहा कि अरुणथथियारों को समुदाय के नेताओं की सख्त जरूरत है.
Tags: Supreme Court, Supreme court of india, Tamil Nadu newsFIRST PUBLISHED : August 4, 2024, 10:51 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed