छावला गैंगरेप मर्डर केस: सजा-ए-मौत पाए 3 दोषियों की क्यों हुई रिहाई सुप्रीम कोर्ट ने बताया कारण
छावला गैंगरेप मर्डर केस: सजा-ए-मौत पाए 3 दोषियों की क्यों हुई रिहाई सुप्रीम कोर्ट ने बताया कारण
राजधानी दिल्ली के छावला में युवती के अपहरण के 3 दिनों बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था. पुलिस को उसके शव पर चोट के कई गहरे निशान मिले थे. आगे जांच और ऑटोप्सी में पता चला कि उस पर कार के औजारों और कई हथियारों से हमला किया गया तथा उसके गुप्तांगों में कांच की बोतल डाली गई थी. पुलिस के अनुसार उसके साथ दुष्कर्म भी किया गया. फरवरी 2012 की इस घटना के मामले में तीन दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी.
हाइलाइट्सदिल्ली के छावला में युवती के अपहरण के 3 दिनों बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था.उस पर कार के औजारों से हमला किया गया तथा गुप्तांगों में कांच की बोतलें डाली गई थीं.2012 की इस घटना में 3 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई थी, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया.
नई दिल्ली. दिल्ली के छावला इलाके में वर्ष 2012 में 19 साल की युवती के साथ हुए गैंगरेप और फिर उसकी निर्मम हत्या के मामले में तीन दोषियों को बरी किए जाने से हर कोई स्तब्ध है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कई सवाल भी उठ रहे हैं. हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ स्पष्ट सबूत पेश नहीं कर सका, जिनमें डीएनए प्रोफाइल और कॉल रिकार्ड (सीडीआर) से जुड़े सबूत शामिल हैं.
बता दें कि छावला में युवती के अपहरण के 3 दिनों बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था. पुलिस को उसके शव पर चोट के कई गहरे निशान मिले थे. आगे जांच और ऑटोप्सी में पता चला कि उस पर कार के औजारों और कई हथियारों से हमला किया गया तथा उसके गुप्तांगों में कांच की बोतल डाली गई थी. पुलिस के अनुसार उसके साथ दुष्कर्म भी किया गया. फरवरी 2012 की इस घटना के मामले में तीन दोषियों को पहले निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. फिर इन दोषियों ने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी, जहां कोर्ट ने उन्हें सड़क पर घूमने वाले दरिंदों की संज्ञा देते हुए मौत की सज़ा को बरकरार रखा था.
‘दोष साबित करने के लिए पक्के सबूतों का अभाव’
हालांकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट्ट तथा जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने सोमवार को 40 पन्नों के आदेश में दोषियों को बरी कर दिया. बेंच ने कहा, ‘आरोपियों की गिरफ्तारी, उनकी पहचान, आपत्तिजनक सामग्रियां मिलने, कार की पहचान, नमूने एकत्र करने, चिकित्सकीय और वैज्ञानिक सबूत, डीएनए प्रोफाइलिंग रिपोर्ट, सीडीआर से संबंधित सबूत आदि को अभियोजन पक्ष ने महत्वपूर्ण, प्रभावी तथा स्पष्ट सबूतों के जरिये साबित नहीं किया.’
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सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि इन एकत्र नमूनों से छेड़छाड़ की आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता. बेंच ने कहा, ‘अभियोजन पक्ष को उनके खिलाफ लगाये गये आरोपों को संदेह से परे साबित करना होता है और इस मामले में अभियोजन पक्ष ऐसा नहीं कर सका और परिणाम स्वरूप अदालत के पास आरोपियों को बरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता, भले ही वे बहुत जघन्य अपराध में शामिल रहे हों.’
‘शक के आधार पर दंडित करने की इजाजत नहीं’
बेंच ने कहा कि यह बात सच हो सकती है कि अगर किसी जघन्य अपराध में शामिल आरोपी को सजा नहीं मिलती या बरी किया जाता है तो आमतौर समाज में और विशेष रूप से पीड़ित के परिवार में एक तरह का गुस्सा और हताशा जन्म ले सकती है. हालांकि कानून अदालतों को नैतिक दोषारोपण या केवल संदेह के आधार पर आरोपियों को दंडित करने की अनुमति नहीं देता.
उसने कहा कि अदालत इन टिप्पणियों को करने के लिए विवश है क्योंकि अदालत ने मुकदमे के दौरान कई स्पष्ट खामियां देखी हैं. रिकॉर्ड से यह देखा गया है कि अभियोजन पक्ष द्वारा जिन गवाहों से पूछताछ की गयी उनमें से 10 प्रमुख गवाहों से जिरह नहीं की गई थी और कई अन्य महत्वपूर्ण गवाहों से बचाव पक्ष के वकील द्वारा पर्याप्त रूप से जिरह नहीं की गई थी.
बेंच ने कहा कि यह याद किया जा सकता है कि भारतीय सबूत अधिनियम की धारा 165 निचली अदालतों को सच्चाई जानने के लिए गवाहों से किसी भी स्तर पर कोई भी सवाल करने के लिए अत्यधिक शक्तियां प्रदान करती है. हालांकि, बेंच ने कहा कि पीड़िता के परिजनों को आरोपियों को बरी किये जाने के बाद भी मुआवजा पाने का अधिकार है.
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Tags: Gang Rape, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : November 08, 2022, 21:49 IST