कपिल सिब्बल बोले- SC से मुझे कोई उम्मीद नहीं AIBA ने टिप्पणी को बताया अवमाननापूर्ण
कपिल सिब्बल बोले- SC से मुझे कोई उम्मीद नहीं AIBA ने टिप्पणी को बताया अवमाननापूर्ण
कपिल सिब्बल ने एक फोरम पर अपने की शुरुआत यह कहकर की कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो.
नई दिल्लीः ऑल इंडिया बार एसोसिएशन (AIBA) ने पूर्व केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल के उस बयान को ‘अवमाननापूर्ण’ करार दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में उम्मीद खो दी है. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डाॅ आदिश सी अग्रवाल ने कहा कि एक मजबूत प्रणाली भावनाओं से अलग होती है और केवल कानून से प्रभावित होती है. कपिल सिब्बल वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. न्यायाधीशों और निर्णयों को सिर्फ इसलिए खारिज करना उनके लिए उचित नहीं है, क्योंकि अदालतें उनके या उनके सहयोगियों की दलीलों से सहमत नहीं थीं.
AIBA अध्यक्ष ने कहा, यह एक चलन बन गया है कि जब किसी के खिलाफ मामला तय किया जाता हैए तो वह सोशल मीडिया पर जजों की निंदा करने लगता है कि जज पक्षपाती है या न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है. यह टिप्पणी अवमाननापूर्ण है और कपिल सिब्बल की ओर से आ रही है, जो सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है. अगर कपिल सिब्बल की पसंद का फैसला नहीं दिया गया है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि न्यायिक प्रणाली विफल हो गई है. सिब्बल न्याय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग हैं. हालांकि, अगर वह वास्तव में संस्था में भरोसा खो चुके हैं, तो वह अदालतों के सामने पेश नहीं होने के लिए स्वतंत्र हैं. All India Bar Association (AIBA) has termed “contemptuous” the statement of former Union Minister for Law & Justice Kapil Sibal lamenting that he has lost hope in the Indian judiciary.
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— ANI (@ANI) August 8, 2022
सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों पर नाराजगी जताते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने रविवार को कहा था कि उन्हें इस संस्था (सुप्रीम कोर्ट) से कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने यह टिप्पणी पीपुल्स ट्रिब्यूनल में अपने संबोधन के दौरान की, जो 6 अगस्त 2022 को दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (CJAR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) एंड नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स (NAPM) द्वारा ‘नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक’ पर आयोजित किया गया था. ट्रिब्यूनल का फोकस गुजरात दंगों (2002) और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के नरसंहार (2009) पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले पर था.
सिब्बल ने गुजरात दंगों में राज्य के पदाधिकारियों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की. उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की, जो प्रवर्तन निदेशालय को व्यापक अधिकार देते हैं. वह इन दोनों मामलों में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे.
सुप्रीम कोर्ट में मेरी कोई उम्मीद नहीं बची: सिब्बल
उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहकर की कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो. कपिल सिब्बल ने इस संदर्भ में आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने के फैसले का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि फैसला सुनाए जाने के बावजूद जमीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है. सभा को संबोधित करते हुए सीनियर एडवोकेट ने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें.
स्वतंत्र न्यायपालिका पर क्या बोले कपिल सिब्बल?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, ‘एक अदालत जहां समझौता की प्रक्रिया के माध्यम से न्यायाधीशों की स्थापना की जाती है. एक अदालत जहां यह निर्धारित करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि किस मामले की अध्यक्षता किस पीठ द्वारा की जाएगी, जहां भारत के मुख्य न्यायाधीश तय करते हैं कि किस मामले को किस पीठ द्वारा और कब निपटाया जाएगा. वह अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती.’
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Tags: AIBA, Kapil sibal, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 08, 2022, 14:38 IST