क्या मोदी को बाहर से समर्थन देंगे नायडू अटल सरकार में नहीं हुए थे शामिल
क्या मोदी को बाहर से समर्थन देंगे नायडू अटल सरकार में नहीं हुए थे शामिल
मोदी सरकार 3.0 में टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू की भूमिका काफी अहम रहने वाली है. सवाल यह है कि क्या वह 1998 जैसा रुख अपनाएंगे या फिर मोदी की कैबिनेट के हिस्सेदार बनेंगे?
केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अगली सरकार के गठन में टीडीपी और जेडीयू की भूमिका काफी अहम रहने वाली है. मौजूदा वक्त में ये दोनों दल एनडीए के हिस्सा हैं. लेकिन, भाजपा के साथ इनके रिश्तों का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. अभी बात टीडीपी की करते हैं. इस चुनाव में टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में बड़ी जीत हासिल की है. उसके 16 सांसद चुने गए हैं. इन सांसदों की बदौलत अगली मोदी सरकार को मजबूती मिलेगी.
मगर क्या यह इतना सहज है जितना दिख रहा है? इस सवाल का जवाब टीडीपी के भाजपा के साथ रिश्तों में छिपा हुआ है. टीडीपी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार वाजपेयी के दौर के एनडीए की साझेदार है. हालांकि, 2018 में मोदी-शाह की भाजपा के साथ उसके रिश्ते बिगड़ गए. उन्होंने एनडीए छोड़ दिया. बात यहां तक पहुंच गई कि वह 2019 से पहले मोदी विरोधी गठबंधन के नेता बनकर उभरे. उस दौरान उन्होंने पीएम मोदी पर कई निजी हमले भी किए. हालांकि 2019 के चुनाव में उनकी बुरी हार ने उनकी राजनीति की धारा एक बार फिर बदल दी.
वाजपेयी का दौर
भाजपा के साथ रिश्तों पर चर्चा के पहले नायडू और वाजपेयी के रिश्तों की बात करनी होगी. बात 1998 की है जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में एनडीए का गठन हुआ. इस गठबंधन में कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाली अधिकतर पार्टियां शामिल हो गईं. उस वक्त एकीकृत आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 42 सीटें होती थीं. टीडीपी वहां की सत्ता में थी. उसकी लड़ाई कांग्रेस से थी. फिर वह स्वाभाविक रूप से केंद्र में एनडीए की सहयोगी बन गई. लेकिन, टीडीपी की अपनी राजनीतिक ताकत और वोट बैंक है. उस वक्त एकीकृत आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति चलती थी और टीडीपी को ठीकठाक मुस्लिमों का भी वोट मिलता था.
इस वोट बैंक को साधे रखने के लिए टीडीपी ने केंद्र की वाजपेयी सरकार को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की. 1998 में जब वाजपेयी सरकार बनी तो उस वक्त टीडीपी के पास 12 सांसद थे. फिर 1999 के चुनाव में उसकी ताकत काफी बढ़ गई. आंध्र प्रदेश की 42 सीटों में से 29 पर उसको जीत मिली थी. इतनी बड़ी जीत के बावजूद चंद्रबाबू नायडू वाजपेयी कैबिनेट में शामिल नहीं हुए. बावजूद इसके कि अटल बिहारी वाजपेयी उनकी पार्टी को सरकार में बड़े ओहदे देने को तैयार थे. राजनीति के जानकार बताते हैं कि इसकी वजह टीडीपी का अपना मुस्लिम वोट बैंक था. साथ उनकी दबाव की अपनी एक राजनीति थी. उस वक्त चंद्रबाबू नायडू देश के पहले हाईटेक सीएम हुआ करते थे. उनका अपना एक विकास मॉडल था. उन्होंने अपने कार्यकार्य में हैदाराबाद में साइबराबाद की नींव रखी. देशभर के मीडिया में उनकी एक अलग ही छवि गढ़ी गई थी.
क्या मोदी सरकार को बाहर से देंगे समर्थन
इस बार भी सबकी चिंता यही है. दरअसल, इस चुनाव में प्रचार के दौरान एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा मुस्लिम समुदाय को मिले चार फीसदी आरक्षण को खत्म करने की बात कर रहे थे वहीं नायडू अपने राज्य में मुस्लिम समुदाय को भरोसा दिला रहे थे कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनेगी तो ऐसा कुछ नहीं होगा. बल्कि मुस्लिम समुदाय को आरक्षण के साथ-साथ कब्रिस्तान के लिए भी जमीन दी जाएगी.
दूसरी स्थिति यह है कि आंध्र प्रदेश के बंटवारे और वाईएसआर रेड्डी के निधन के बाद से राज्य में कांग्रेस करीब-करीब खत्म हो चुकी है. राज्य में टीडीपी की लड़ाई कांग्रेस की बजाय वाईएसआर कांग्रेस से है. ऐसे में नायडू किसी भी हाल में अपने मुस्लिम वोट बैंक के साथ समझौता नहीं करना चाहेंगे. राज्य में करीब 9.5 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
टीडीपी के मौजूदा और पुराने रुख को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है कि उनके साथ मोदी और शाह को बार्गेन करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. बाहर से समर्थन देने की स्थिति में सरकार के स्थायित्व पर सवाल उठेगा.
Tags: Chandrababu Naidu, Loksabha Election 2024, Loksabha ElectionsFIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 16:24 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed