JPC के पास चला गया वफ्फ बोर्ड ब‍िल तो क्‍या होगा अब

Waqf Board Bill: वफ्फ बोर्ड बिल जेपीसी को सौंपे जाने के बाद अब इसके स्वरूप- प्ररूप पर वही विचार करेगी. जरुरी होने पर जेपीसी बिल में कुछ संशोधनों के साथ इसे सदन में रखेगी. विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहे हैं. अब क्या होगा बिल का भविष्य पढ़िए-

JPC के पास चला गया वफ्फ बोर्ड ब‍िल तो क्‍या होगा अब
संसद में सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी बहस के बाद वफ्फ बिल जेपीसी के हवाले करने का फैसला ले लिया गया. अब दुबारा ये बिल सदन में कब आएगा और इसका स्वरूप क्या होगा, इस बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता. जेपीसी का मतलब होता है ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी. प्रक्रिया ये है कि एक बार बिल जेपीसी को सौंपने का फैसला होने के बाद स्पीकर जेपीसी का गठन करते हैं. इसमें राज्य सभा और लोकसभा दोनों सदनों के सदस्यों को शामिल किया जाता है. ये समिति बिल पर उठाई गई आपत्तियों पर विचार कर, जरुरी होने पर संशोधन के साथ फिर से सदन को विचार के लिए सौंपती है. JPC सदस्यों की संख्या जेपीसी में लोकसभा सदस्यों की संख्या राज्य सभा के सदस्यों से दूनी होती है. यानी अगर राज्यसभा के 5 सदस्य होंगे तो लोकसभा के 10. इस तरह से 15 सदस्यों की जेपीसी बनाई जाती है. इसमें सदन में दलों के सदस्यों को अनुपात के मुताबिक प्रतिनिधित्व दिया जाता है. मतलब जिस पार्टी के जितने सांसद सदन में होते हैं उनकी भागीदारी उसी अनुपात में जेपीसी में भी होती है. JPC का कार्यकाल स्पीकर अपने सचिवालय की सलाह से जेपीसी सदस्यों की संख्या तय करते हैं. इसके बाद जेपीसी के गठन की अधिसूचना जारी की जाती है. आम तौर पर जेपीसी को लोकसभा के अगले सत्र में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होती है. अगर अगल सत्र में जेपीसी अपनी रिपोर्ट नहीं पेश कर पाती तो उसका कार्यकाल बढ़ाया भी जा सकता है. सदन से इसकी स्वीकृति लेनी होती है. वैसे स्पीकर को ये भी अधिकार है कि वे कमेटी बनाते समय ही उसके लिए कार्यकाल का निर्धारण कर दें. जेपीसी को विधेयक के प्रारुप पर विचार करने के अलावा किसी मामले की जांच का काम भी सौंपा जाता है. JPC के काम बहुत से विवादित और महत्वपूर्ण घोटालों की जांच भी संसद या विधान सभाओं की संयुक्त समितियों से कराई जाती है. 1987 में बोफोर्स घोटाले की जांच भी जेपीसी के जरिए कराई गई थी. राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान ये घोटाला हुआ था. उस समय के विपक्षी दलों ने इस मसले पर सरकार को बुरी तरह घेर लिया था. कई बार लंबा समय भी लिया है JPC ने कई मामले ऐसे भी देखे गए हैं जब जेपीसी ने जांच या विचार में बहुत लंबा समय लिया है. दरअसल, छोटे आकार में ये भी संसद की ही तरह होती है. अलग अलग दलों से इसमें शामिल हुए सदस्यों में अक्कर सहमति नहीं बन पाती. इस कारण भी कभी कभी मसले लंबा खिच जाते हैं. फिलहाल, तो कमेटी के गठन की अधिसूचना जारी होने के बाद ही आगे की कार्यवाही होनी है.os Tags: BJP, Congress, Monsoon Session of ParliamentFIRST PUBLISHED : August 8, 2024, 17:08 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें
Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed