‘तलाक-ए-अहसन’ को अवैध घोषित करने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
‘तलाक-ए-अहसन’ को अवैध घोषित करने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को एक याचिका पर केंद्र और अन्य से जवाब मांगा जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत ‘तलाक-ए-अहसन’ और अन्य एकतरफा तरीके से विवाह विच्छेद को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है.
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को एक याचिका पर केंद्र (Central Government) और अन्य से जवाब मांगा जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत ‘तलाक-ए-अहसन’ और अन्य एकतरफा तरीके से विवाह विच्छेद को अवैध और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में केंद्र और अन्य पक्षों को तलाक की प्रक्रिया के लिए लैंगिक और धार्मिक रूप से तटस्थ एकसमान आधार तय करने और दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है. पुणे की एक महिला द्वारा दायर याचिका के अनुसार रीति-रिवाजों और प्रक्रिया के अनुसार ‘तलाक-ए-अहसन’ के तहत एक बार तलाक कहने के बाद अगर तीन महीनों या 90 दिनों तक वैवाहिक संबंध से परहेज किया जाता है तो तलाक हो जाता है.
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई और केंद्र तथा राष्ट्रीय महिला आयोग सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा. अधिवक्ता निर्मल कुमार अंबष्ठ के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि पेशे से इंजीनियर याचिकाकर्ता को उसके पति ने अपने वैवाहिक घर से बाहर करने के बाद ‘तलाक-ए-अहसन’ प्रक्रिया के माध्यम से स्पीड पोस्ट के जरिए एक पत्र भेजकर तलाक दे दिया.
स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक का पत्र भेजा था
याचिका में महिला ने दावा किया कि शादी के दो साल के दौरान कई मौकों पर उसके साथ मारपीट की गई और उसे ससुराल से बाहर निकाल दिया गया, केवल इस कारण से कि वह अपने पति और उसके परिवार द्वारा पैसे की सभी मांगों को पूरा करने के लिए राजी नहीं हुई. याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पति ने उसे 16 जुलाई 2022 को स्पीड पोस्ट के जरिए तलाक का पत्र भेजा था जिसमें उसके खिलाफ विभिन्न आधारहीन और झूठे आरोप लगाए गए थे.
‘तलाक-ए-अहसन’ मुस्लिम विवाहों को भंग करने के लिए एक मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है
याचिका में कहा गया, ‘याचिकाकर्ता ने अपने पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए अत्याचारों और उत्पीड़न तथा एकतरफा तरीके से शादी तोड़ने के खिलाफ स्थानीय पुलिस से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन स्थानीय पुलिस ने इस आधार पर मामला दर्ज नहीं किया कि ‘तलाक-ए-अहसन’ मुस्लिम विवाहों को भंग करने के लिए एक मान्यता प्राप्त प्रक्रिया है.’ याचिका में कहा गया है कि ‘तलाक-ए-अहसन’ और एकतरफा तरीके से विवाह विच्छेद करने के अन्य सभी रूप संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हैं, जिससे मुस्लिम महिलाओं की गरिमा के अधिकार का हनन होता है. अनुच्छेद 21 जीवन की सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है.
दो अलग-अलग लंबित रिट याचिकाओं के साथ जोड़ दिया
याचिका में अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम, 1937 की धारा 2 संविधान के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है, क्योंकि यह ‘तलाक-ए-अहसन’ और एकतरफा तरीके से विवाह विच्छेद करने की प्रथाओं को मान्य करने का प्रयास करती है. याचिका पर नोटिस जारी करते हुए, शीर्ष अदालत ने इसे दो अलग-अलग लंबित रिट याचिकाओं के साथ जोड़ दिया, जिसमें ‘तलाक-ए-हसन’ के मुद्दे को उठाया गया है. ‘तलाक-ए-हसन’ मुसलमानों में तलाक का एक तरीका है जिसके द्वारा कोई पुरुष तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार तलाक का उच्चारण करके अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है.
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Tags: Central government, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : September 19, 2022, 23:27 IST