धन के बंटवारे की मार्क्सवादी SC ने कहा- सामुदायिक संसाधनों और निजी
धन के बंटवारे की मार्क्सवादी SC ने कहा- सामुदायिक संसाधनों और निजी
देश में संपत्ति के नए सिरे से बंटवारे के बारे में बढ़ते राजनीतिक विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) की न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर की 1977 की मार्क्सवादी व्याख्या का पक्ष नहीं लेगा.
नई दिल्ली. देश में संपत्ति के नए सिरे से बंटवारे के बारे में बढ़ते राजनीतिक विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) की न्यायमूर्ति वीआर कृष्णा अय्यर की 1977 की मार्क्सवादी व्याख्या का पक्ष नहीं लेगा. जिसमें कहा गया था कि एक समुदाय के ‘भौतिक संसाधनों’ में सामान्य भलाई के लिए नए सिरे से बंटवारे में निजी संपत्तियां भी शामिल होंगी. संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे की व्याख्या करने में लगे हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हृषिकेश रॉय, बीवी नागरत्ना, एस धूलिया, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, आर बिंदल, एससी शर्मा और एजी मसीह की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी के भावी पीढ़ियों के लिए रखे गए सामुदायिक संसाधनों और निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के बीच अंतर होना ही चाहिए.
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हमें 1977 के रंगनाथ रेड्डी मामले में अनुच्छेद 39(बी) की न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की मार्क्सवादी समाजवादी व्याख्या तक जाने की जरूरत नहीं है. लेकिन सामुदायिक संसाधनों में निश्चित रूप से वे संसाधन शामिल होंगे जिन पर वर्तमान पीढ़ी अंतर-पीढ़ीगत समानता के लिए भरोसा करती है.’ उन्होंने कहा कि इस पर ‘दो चरम विचार थे. पहला- मार्क्सवादी समाजवादी दृष्टिकोण यह है कि सब कुछ राज्य और समुदाय का है. पूंजीवादी दृष्टिकोण निजी अधिकारों को महत्व देता है. जबकि पीढ़ियों की समानता की रक्षा के लिए संसाधनों को ट्रस्ट में रखने का गांधीवादी दृष्टिकोण है.’
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संविधान पीठ की ओर से बोलते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने संकेत दिया कि ‘सामुदायिक संपत्ति में प्राकृतिक संसाधन शामिल होंगे. जिनका शोषण सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में सतत विकास मानदंडों के हिसाब से होता है, क्योंकि इन्हें वर्तमान समुदाय द्वारा भविष्य की पीढ़ियों के लिए ट्रस्ट में रखा जाता है.’ हालांकि उन्होंने यह कहते हुए चेतावनी दी कि जंगल, झीलें और खदानें, भले ही निजी संपत्ति के तौर पर रखी गई हों, मगर वे सामुदायिक संसाधनों में शामिल होंगी. जिनसे व्यापक सामान्य भलाई के लिए होने वाले लाभों को निजी अधिकारों की अपील करके रोका नहीं जा सकता है.
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Tags: Property, Property dispute, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : April 25, 2024, 17:04 IST jharkhabar.com India व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें Note - Except for the headline, this story has not been edited by Jhar Khabar staff and is published from a syndicated feed