जूनोटिक रोगों से बचाव के लिए सरकार की एडवाइजरी के खिलाफ PIL सुप्रीम कोर्ट में खारिज
जूनोटिक रोगों से बचाव के लिए सरकार की एडवाइजरी के खिलाफ PIL सुप्रीम कोर्ट में खारिज
Supreme Court Zoonotic Diseases: जब विश्व में कोविड का प्रकोप लगातार फैल रहा था, उस दौरान वन्यजीवों के व्यापार और जूनोटिक बीमारियों को लेकर पूरे विश्व में चिंता की लहर थी. उसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने यह एडवाइजरी जारी की थी.
नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2020 में जारी की गई एडवाइजरी का समर्थन करते हुए एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया. सरकार ने यह एडवाइजरी भारत में पक्षियों और जानवरों की विदेशी जीवित प्रजातियों के आयात से निपटने के लिए जारी की थी. जनहित याचिका में ऐसे विदेशी जानवरों/ पक्षियों को भारत में रखने की घोषणा करने की वैधता को चुनौती दी गई थी. एक्जोटिक लाइव स्पीसीज ऐसे जीवित विदेशी जानवर या पौधों की प्रजाति को कहा जाता है जो अपनी मूल जगह से नई जगह पर स्थानांन्तरित की गई हो या उन्हें ले जाया गया है. यह प्रजातियां आमतौर पर इंसानों द्वारा ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाई जाती हैं.
जब विश्व में कोविड का प्रकोप लगातार फैल रहा था, उस दौरान वन्यजीवों के व्यापार और जूनोटिक बीमारियों (ऐसी बीमारी जो जंगली जानवरों से इंसानों में आती है) को लेकर पूरे विश्व में चिंता की लहर थी. उसे ध्यान में रखते हुए यह एडवाइजरी जारी की गई थी. इसमें जीवित विदेशी जानवरों के आयात को सीमा शुल्क अधिनियम के तहत रखा गया था. वहीं विशेषज्ञों ने भारत में पालतू जानवरों के तौर पर रखी गई विदेशी प्रजातियों की संख्या के दस्तावेज और उन्हें विनियमित (रेग्यूलेट) करने के नियमों को सख्त करने और उस पर दिशानिर्देशों की मांग की थी.
विदेशी जानवरों को लेकर क्या एडवाइजरी जारी की गई थी
एडवाइजरी में कौन शामिल है – इस एडवाइजरी में जानवरों की वे प्रजातियां जिनको ‘वन्यजीवों तथा वनस्पतियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ ( Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के तहत लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में शामिल किया गया है. लेकिन ‘वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972‘ (Wild Life (Protection) Act, 1972) के तहत शामिल नहीं किया गया है. यहां आपको यह भी बता दें कि CITES समझौते के हिसाब से जो प्रजातियां खतरे में हैं उनको तीन परिशिष्टों में शामिल किया जाता है. इसमें भी परिशिष्ट (I) में वह प्रजातियां आती हैं जो लुप्तप्राय हैं और जिनका व्यापार करने से उन पर और खतरा हो सकता है.
स्वेच्छा से जानवरों की जानकारी दें – पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ऐसी विदेशी प्रजातियों को रखने वाले लोगों को स्वेच्छा से उनके बारे में जानकारी देने की अनुमति दी है. जानवरों के स्टॉक, नए पैदा हुए जानवर और आयात या अदल-बदल किए गए जानवरों का पंजीकरण किया जाए.
6 महीने के अंदर किया तो कोई दस्तावेज नहीं – अगर जानवर को रखने वाला एडवाइजरी जारी होने की तारीख के 6 महीने के भीतर इन विदेशी प्रजातियों की जानकारी की घोषणा करता है तो उसे जानवर से जुड़े किसी तरह के दस्तावेज दिखाने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन अगर घोषणा 6 महीने के बाद की जाती है तो जानवर रखने वाले को कानून के तहत जिन दस्तावेजों की ज़रूरत होगी वह दिखाना होगा.
इसका क्या फायदा – इससे जहां इन अनमोल प्रजातियों का ठीक से प्रबंधन हो सकेगा, वहीं इन्हें रखने वालों को पशु चिकित्सा, देखभाल, इनके रहन सहन से जुड़ी जानकारी मुहैया कराई जा सकेगी, जो इन प्रजातियों की भलाई के लिए होगा. इस तरह से जो डेटाबेस बनेगा वह जूनोटिक बीमारियों को नियंत्रित करने और उसका प्रबंधन रखने में मददगार साबित होगा. इसी आधार पर जानवरों और इंसानों की सुरक्षा को लेकर वक्त वक्त पर मार्गदर्शन देना भी आसान होगा.
यह काम कैसे करता है – जब कोई जानवरों के होने की घोषणा करता है तो राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य वन्यजीव वॉर्डन (CWLW) उस जानवर को जाकर देखते हैं. यानी उसका भौतिक सत्यापन करते है. उसके बाद वह पशु का पंजीकरण करते हैं और अपने कार्यालय में उसका एक रिकॉर्ड रखते हैं. इसके बाद वह इसे रखने वाले को एक ऑनलाइन प्रमाणपत्र जारी करते हैं. जानवर की जानकारी देने के बाद अगर अधिग्रहण/मृत्यु/व्यापार/कब्जे में परिवर्तन होता है तो उसकी सूचना संबंधित सीडब्ल्यूएलडब्ल्यू को 30 दिनों के भीतर दी जानी चाहिए
विदेशी जीवित जानवर को आयात करने के लिए क्या करना होगा – अगर कोई व्यक्ति किसी जीवित विदेशी जानवर को आयात करना चाह रहा है तो उसे विदेश व्यापार महानिदेशक (Director General of Foreign Trade- DGFT) से लाइसेंस प्राप्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत करना होगा. आयात करने वाले को आवेदन के साथ मुख्य वन्यजीव वार्डन का अनापत्ति प्रमाण पत्र भी लगाना होगा.
मंत्रालय ने ऐसा कदम क्यों उठाया – भारत में बहुत से लोग वन्यजीवों तथा वनस्पतियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार कन्वेंशन में दखल रखते हैं लेकिन राज्य या केंद्रीय स्तर पर लायी गयी प्रजातियों से जुड़ी कोई एकीकृत सूचना मौजूद नहीं है. इस तरह एडवाइजरी देश में मौजूद विदेशी जानवरों की जानकारी जुटाने में मदद करेगी.
इसे लेकर चुनौतिया भी हैं
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि एडवाइजरी से जूनोटिक रोगों को रोका जा सकता है यह सोचना बेमानी है. इसमें आक्रामक प्रजातियों (Invasive Species) के जरिए जूनोटिक बीमारियों के प्रसार पर ध्यान नहीं दिया गया था. यही नहीं वर्तमान में भारत में विदेशी प्रजातियों के घरेलू व्यापार में ही तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसी कई प्रजातियां जैसे शुगर ग्लाइडर्स, मकई सर्प, आदि CITES की सूची में नहीं हैं. इस एडवाइजरी में उन लोगों के बारे में रखरखाव के मानकों को लेकर कोई उल्लेख नहीं है जो कि वन्यजीवों की ब्रीडिंग (Captive Breeding) करते हैं. कैप्टिव ब्रींडिंग यानी वह प्रक्रिया जिसमें पौधों या वन्य जीवों को नियंत्रित वातावरण में चिड़ियाघर, वनस्पति उद्यान में रखा जाता है.
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Tags: Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 19, 2022, 19:19 IST