मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी कहा-अभियुक्त को राहत के लिए हर अवसर उपलब्ध कराने चाहिए
मौत की सजा पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी कहा-अभियुक्त को राहत के लिए हर अवसर उपलब्ध कराने चाहिए
Supreme court on death penalty: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौत की सजा के मामले में अभियुक्त को इससे राहत के लिए हर तरह के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा अपरिवर्तनीय है इसलिए जिस मामले में मौत की सजा की आशंका है उस मामले में अपराध को कम करने की हरसंभव परिस्थितियों पर विचार करने की तत्काल आवश्यकता है.
हाइलाइट्ससुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा के मामले में अभियुक्त को राहत के लिए हर अवसर उपलब्ध कराने चाहिएसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त का मनौवैज्ञानिक मूल्यांकन जरूरी मौत की सजा मामले में व्यापक जांच का फैसला
नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मृत्युदंड अपरिवर्तनीय है इसलिए अभियुक्त को राहत संबंधी परिस्थितियों को लेकर हर प्रकार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए ताकि अदालत यह निर्णय ले सके कि संबंधित मामले में मृत्युदंड वांछित नहीं है. न्यायमूर्ति यू. यू ललित की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने संभावित राहत देने वाली परिस्थितियों के संबंध में दिशा-निर्देशों पर अपना आदेश सुरक्षित रखा और कहा कि अदालतें उचित रूप से राहत के लिए सजा देने से पहले मामले को स्थगित कर सकती हैं.
न्यायमूर्ति ललित, न्यायमूर्ति एस. आर. भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, ‘‘मृत्युदंड अपरिवर्तनीय है इसलिए अभियुक्त को हर प्रकार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए.’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर अपराध सिद्धांत (थ्योरी) के आधार पर अदालत इस नतीजे पर पहुंचती है कि मौत की सजा जरूरी नहीं है तो उसे उसी दिन उम्र कैद की सजा देने की आजादी होनी चाहिए. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव को नोटिस जारी किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उन परिस्थितियों की व्यापक जांच करने का फैसला किया था जहां एक जज को आजीवन कारावास और मौत की सजा के बीच चयन करना होता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि जिस मामले में मौत की सजा की आशंका है उस मामले में अपराध को कम करने की हरसंभव परिस्थितियों पर विचार करने की तत्काल आवश्यकता है. कोर्ट ने कहा था कि मौत की सजा वाले अपराध में राज्य को तत्परता से आरोपी का मनोवैज्ञानिक आकलन करना चाहिए और इसे सत्र न्यायालय के सामने साक्ष्य के रूप में पेश करना चाहिए.
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Tags: Death penalty, Supreme CourtFIRST PUBLISHED : August 18, 2022, 07:24 IST